अपने पड़ोसी शंकर के साथ दोनों पति-पत्नी ,'पुलिस स्टेशन 'से हवलदार के साथ अपने बेटे का शव देखने गए।' 'शवगृह ' में जाकर, इतने शव देखकर ,चाचीजी का दिल पहले ही धड़कने लगता है। सम्पूर्ण रास्ते ,गाड़ी में बैठे हुए ,मन ही मन ,अपने ईश्वर से प्रार्थना कर रहीं थीं ,किन्तु इस वक्त उस प्रभु का स्मरण ही नहीं रहा। चाचा जी ,जानते हुए भी ,कुछ समझ नहीं पा रहे थे ,ऐसी परिस्थिति में क्या किया जाए ?हवलदार को तो इन चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता ,उनका तो रोज का है , वह प्रतिदिन कोई न कोई नई लाश देखते हैं , किंतु वह समय अत्यंत कठिन होता है ,जब किसी अपने की लाश देखनी पड़ जाए। ऐसे समय में तो शायद हवलदार भी ,अपने को ना संभाल पाए , यह तो चाचा -चाची जी का इकलौता'' चिराग ''था। जबकि मैंने अभी तक उसे देखा नहीं था किंतु मैंने अपने को संभाला हुआ था , मेरा पड़ोसी होने के नाते मुझे दुख तो था , किंतु जो अपनेपन का दुख है , वह तो सिर्फ वही महसूस करता है ,जिसका कोई अपना गया है।
हवलदार ने हमें ले जाकर, एक शव के पास खड़ा कर दिया और बोला -यह लाश आज ही आई है ,कहकर वह एक तरफ को हट गया।
चाचा जी ने तो ,उसे पहले भी देखा हुआ था, किंतु अभी भी, उनका साहस ,उनका साथ नहीं दे रहा था कि उस कपड़े को हटाकर ,उसकी पहचान कर सकें। उनके हाथ कांप रहे थे , कभी वह उस कपड़े को देखते , कभी अपनी पत्नी को देखकर, मेरी तरफ देखने लगे। मैंने इशारे से उन्हें हिम्मत बंधाई। वह जानते थे, हो सकता है, यही हो ,किंतु चाची जी का क्या होगा ?यही सोच कर उनके हाथ पीछे हो जाते।
उनकी पत्नी ने कहा- क्यों देर कर रहे हो? घबराने की कोई आवश्यकता नहीं , यह हमारा बेटा चिराग हो ही नहीं सकता , उन्होंने विश्वास से कहा।
चाचा जी की आंखें बंद हो गई, और सोचने लगे काश ! इसका कहा सही हो जाए ,तब साहस करके उन्होंने, वह कपड़ा हटा ही दिया , उस चेहरे को देखकर, एकाएक मुझे भी लगा , मुझे चक्कर आ जाएगा। कितनी भयंकर मौत थी? मैंने अपने आप को संभाला और उन दोनों की तरफ देखने का प्रयास कर ही रहा था , देखा तो वहां, चाचा जी, आंख बंद किए खड़े थे और चाची वहां थी ही नहीं। अचानक चाची कहां गई? यह सोचते हुए ,मैंने इधर -उधर देखा -तो वह वहीं बराबर में,नीचे बेहोश पड़ी थीं। अपने बच्चे की ऐसी हालत देखकर उनका बेहोश होना स्वाभाविक था।
तब तक हवलदार भी करीब आ गया , और बोला -क्या यह वही है ?
मैंने चाची को संभालते हुए ,हवलदार की ओर' हाँ 'में गर्दन हिलाकर इशारा किया। चाचा जी !आइए ,बाहर चलते हैं , देखिए !चाची जी को क्या हो गया? बेटा तो वह पहले ही खो चुके हैं कहीं पत्नी को भी ना खो दें ,इसी डर से मेरे पीछे हो लिए।
हवलदार ने उस शव की हालत देखी , मन ही मन बुदबुदाया - किसी ने बड़ी ही बेरहमी से मारा है , यह कार्य किसी इंसान का तो नहीं हो सकता , सोचते हुए ,बाहर आ गया।
तब तक चाची जी को हमने डॉक्टर को दिखाया , डॉक्टर ने कहा -इन्हें बहुत गहरा सदमा लगा है ! मैंने इन्हें इंजेक्शन दे दिया है , इनके होश आने में अभी समय लगेगा।
चाचा जी की हालत देखकर ,मैं अचंभित था , एक तरफ बेटे की मौत !रो भी नहीं सकते, दूसरी तरफ पत्नी बेहोश , अपने आप को संभालें या पत्नी को ,मैंने उन्हें हिम्मत दी और उनके लिए , एक कप चाय लेकर आया ताकि थोड़ी राहत मिले , जब मैंने उनके हाथों को छुआ ,उनके हाथ काँप रहे थे। मैं मन ही मन घबराया और सोच रहा था -कहीं ,इन्हें कुछ ना हो जाए ! तब दौड़कर डॉक्टर के पास गया और उन्हें सारी स्थिति समझा दी, तब डॉक्टर ने दवाई ,उन्हें देने के लिए दी।
इधर एक घर से दो साए बुरखे में निकल रहे थे , क्योंकि उन्हें अपनी पहचान छुपानी थी , उन्हें भी जान का खतरा था किंतु चिराग की तरह किसी अन्य का इस तरह से हश्र ना हो इसीलिए पुलिस को इन दुर्घटनाओं की जानकारी देनी आवश्यक थी। रमा और रमा की मम्मी, पुलिस स्टेशन में जाकर अपने बुरखे उतारती हैं और इंस्पेक्टर साहब से , वार्तालाप के लिए , थोड़ा समय मांगती हैं।
कौन हैं ?आप ! यहां इस तरह से ,यहाँ क्यों आई हो ? हवलदार ने ,डपटते हुए पूछा।
हमें इंस्पेक्टर साहब से मिलना है और उनसे मिलकर ,उन्हें कोई जानकारी देनी है।
क्या जानकारी देनी है ?मुझे बता दीजिए।
नहीं ,यह जानकारी बहुत ही महत्वपूर्ण है और हम उन्हीं से बात करेंगे , रमा ने जवाब दिया।
इंस्पेक्टर साहब तो यहां........ अभी हवलदार पूरा वाक्य भी नहीं कर पाया था , तभी इंस्पेक्टर साहब ने प्रवेश किया और पूछा - यहां क्या हो रहा है ?
जय हिंद ,साहब ! यह लोग आपसे मिलने आई हैं।
किस सिलसिले में ? ' एफ आई आर' लिखवानी है तो ,लिख देते।
जी नहीं ,इन्हें कोई , ' एफ आई आर 'नहीं लिखवानी है , इन्हें आपसे मिलना है।
इंस्पेक्टर ने उनकी तरफ देखते हुए ,पूछा - मुझसे क्यों मिलना चाहती हैं ? बताइए !
नहीं सर ! पहले आप अपने केबिन में चलिए , यह बात सबके सामने बताने की नहीं है , रमा की मम्मी ने कहा।
एक नजर उन दोनों को देखा और बोला - आइए ! अपनी कुर्सी पर बैठ कर बोला- आप लोग मुझसे ऐसी क्या बात करना चाहती हैं ?
इंस्पेक्टर साहब ! कॉलेज में ,जो स्वर्ण लता का खून हुआ था और अब चिराग का खून हुआ है उसी सिलसिले में मैं ,आपसे बात करना चाहती हूं।
रमा की बात सुनकर ,इंस्पेक्टर अपनी कुर्सी से उछल पड़ा और बोला -क्या चिराग का भी खून हुआ है ?
जी, और मेरी जान को भी खतरा है रमा ने बताया।
किस तरह से और किससे ?
दीपशिखा है वह लड़की ! रमा की मम्मी ने जोश में आकर कहा -वह इंसानी रूप में चुड़ैल है।
यह सब आप क्या कह रही हैं ? उस लड़की को तो मैं जानता हूं , अच्छे प्रतिष्ठित परिवार से है , उसने ऐसा क्या किया है ?
जो वह कर रही है, उसके परिवार वाले भी नहीं जानते होंगे , वह तांत्रिक सिद्धियां करती है, उस पर अनेक शक्तियां हैं , उसने 'स्वर्ण लता 'नाम की लड़की को मार दिया।
यह आप इतने विश्वास से कैसे कह सकती हैं ?
क्योंकि उसे मारते हुए ,मेरी बेटी ने देखा है , और अब वह मेरी बेटी के पीछे पड़ी हुई है , उसके डर से मेरी बेटी ,पिछले बीस दिनों से कॉलेज नहीं गई।
यह क्या कह रही हैं?आप ! अचंभित होते हुए इंस्पेक्टर ने पूछा।
जी, मैं सही कह रही हूं , और अभी कुछ दिन पहले, जिस लड़के की मृत्यु हुई है, वह भी उसी कॉलेज का है। उसको भी उसने बड़ी बेदर्दी से मार डाला। बेचारा !अपने मां-बाप की इकलौती संतान थी ,सुनकर बहुत दुख हुआ , उनके तो बुढ़ापे का सहारा चला गया। तब मैंने निश्चय किया कि आपको मैं इन बातों से अवगत करा दूं। हम दोनों भी यहां ,बुर्का पहनकर इसीलिए आए हैं , न जाने कब हम पर वार कर दे ? तांत्रिक का दिया हुआ, यह लॉकेट भी हमने पहना हुआ है।हमारी भी जान को खतरा है इसीलिए आप अपने तरीके से जल्द से जल्द इस केस को सुलझाइए ,कहते हुए दोनों मां बेटी ने,अपने-अपने बुर्के पहने और चुपचाप वहां से निकल गईं।
हवलदार, इंस्पेक्टर के करीब आकर बोला -साहब! ये क्या कह रही थीं ?
कुछ समझ नहीं आया,क्या ,ऐसा हो सकता है ?
क्या समझ नहीं आया ?और क्या हो सकता है ?
यही, कि आज के समय में, तंत्र मंत्र भी होते हैं।