भूतों के विद्यालय में ,खेल चल रहे हैं ,उनके खेल भी ,उन ''भूतों की दुनिया ''की तरह ही ,विशिष्ट हैं। आज भूत विद्यार्थियों को ,''हपस की खोपड़ी '' में अपना हाथ आजमाना है। इस प्रतियोगिया में ,सूरज ने सहर्ष भाग लिया है। उसे पूरी उम्मीद है ,कि वह इस प्रतियोगिता को जीत लेगा किन्तु कुछ भूतों का मानना है -''रूद्र समूह '' के छात्र जीतेंगे ,क्योंकि पिछले दो वर्षों से वही समूह जीत रहा है। दूसरे ने ''शूल समूह ''के जीतने की अधिक संभावनाएं दर्शाई।'' कपाली समूह '' के विषय में तो ,कोई सोच भी नहीं रहा था किन्तु जैसे ही सूरज की 'खोपड़ी', एक ही बार में आधी भर गयी। उसने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। ''कपाली समूह'' के छात्रों का उत्साह दूना हो गया। अब वे सभी उत्साहित होकर ,नाचने लगे , किन्तु विरोधी समूह के लोग ,सूरज से खतरा भांपकर ,उसके विरुद्ध हो गए ,अपने डरावने -डरावने चेहरे लेकर उसके सामने आये ,ताकि वो उनसे ड़र जाये किन्तु सूरज जब से इस ''भूत योनि '' में आया है ,तब से उसने डरावने चेहरे ही देखे हैं। अब उसे इन चीजों से ड़र नहीं लगता। तब दो विरोधी समूह एक हो जाते हैं ,ताकि सूरज को फंसा सकें और वो जीत न सके।
उनका ये इरादा ,उनके'' कपाली समूह ''के बड़े छात्रों ने भांप लिया ,जिसके कारण उस समूह के बड़े यानि सीनियर छात्र को क्रोध आ गया ,वो अपने समूह का भयानक प्रेत था। वो कूदकर ,उसी खेल के मैदान में आ गया ,ताकि अपने समूह में जीतते सूरज पर ,कोई आंच न आये। इसी कारण खेल के मध्य में ही ,वो आ जाता है। ये खेल छोटे बच्चों का था ,इस तरह किसी बड़े बच्चे का आना ,विद्यालय के अध्यापकों व प्रधानाध्यापक को भी ,पसंद नहीं आया। किन्तु वो प्रेत भी कहाँ मानने वाला था ?उसने कह दिया -यदि उसके समूह के किसी भी छात्र को ,दूसरे समूह के किसी भी छात्र ने हानी पहुंचाने का प्रयास किया तो छोड़ेगा नहीं......
तब उस विद्यालय के'' प्रधानाध्यापक नटवरलाल '' ने अपना रौद्र रूप दिखाया , और'' कपाली समूह ''के , उस बड़े प्रेत से कहा -तुम्हें कोई भी, कार्य अपने हाथ में लेने की आवश्यकता नहीं है , अभी हम इस विद्यालय के' प्रधानाध्यापक' हैं , हमारे रहते , यहां कुछ भी अनुचित नहीं होगा।
क्षमा करें ,प्रधानाध्यापक जी !मैंने अपनी शक्ति से जाना ,ये लोग मिलकर ,उस नए छात्र को घेरना चाहते हैं ,जिसने इस विद्यालय में ,सबसे आश्चर्यजनक कार्य किया है। आज तक कोई भी इस ''हपस की खोपड़ी ''को नहीं भर सका ,भरना तो दूर आधी भी नहीं भर सका और इस छात्र ने एक फेरे में ही ,यह खोपड़ी आधी भर दी।
ये हम जानते हैं ,हम भी देख रहे हैं और हम यही चाहते हैं ,कि यह खेल पूरी तरह से खेला जाए किसी भी प्रकार की कोई अड़चन ना आए , इसलिए हम कह रहे हैं आप अपनी जगह पर जाकर बैठ जाइये। ये ''वार्षिक खेलोत्स्व ''है खेल -खेल में ही ,खेलों का मजा लीजिए। सबसे इशारा करके अपने - अपने स्थान पर बैठने के लिए कह दिया गया और खेल आरंभ करने के लिए कहा गया।
खेल पुनः सतर्कता के साथ, प्रारंभ कर दिया गया , सभी की दृष्टि उन छात्रों पर टिकी हुई थी , सभी ने रक्त से परिपूरित अपनी -अपनी खोपड़ी संभाल ली थी।सब यह देखकर आश्चर्यचकित हो रहे थे ,सूरज तीव्र गति से आगे बढ़ा जा रहा था।सभी भूत -प्रेत ,जितने भी दर्शक थे ,उसे ''नन्हा शैतान ''कहकर उसका उत्साहवर्धन कर रहे थे। रास्ते में अन्य बाधाएं भी आईं ,किंतु परिणाम तो जैसे सभी के सामने नजर आ रहा था और इस विद्यालय का आज एक नया रिकॉर्ड बना। '' कपाली समूह '' जीत गया था। जीत तो वो , लगभग पहले ही गया था क्योंकि किसी की भी आधी खोपड़ी तक नहीं भरी थी। उस खोपड़ी के भरते ही सम्पूर्ण ''भूत वर्ग '' प्रसन्नता से उछल पड़ा।
प्रधानाध्यापक नटवरलाल जी मंच पर आए , और उन्होंने सूरज से पूछा -यह तुमने कैसे किया ? आज तक कोई भी ,इस खोपड़ी को नहीं भर सका है।
श्रीमान !मैंने पहले इसके विषय में जानना चाहा ,कि यह भरती क्यों नहीं है ? हपस यानि ''इच्छा शक्ति '' जब मनुष्य अपनी इच्छा शक्ति कम कर लेगा , या सीमित कर लेगा , तब यह स्वतः ही भर जाएगी ,ये एक शानदार खेल है और हमें एक संदेश भी देता है , किंतु किसी ने इसका उद्देश्य ही नहीं जाना , इसीलिए किसी की भी खोपड़ी नहीं भरती थी। इंसान तो इंसान हम भूतों का भी यही हाल है , हम इंसान रहकर भी संतुष्ट नहीं थे और अब भूत बन गए हैं ,तब भी ,हम लोगों की ''इच्छा शक्ति ''आज तक समाप्त नहीं हुई है । कोई ''बदले'' के लिए भूत बना है, कोई'' मजे ''के लिए भूत बना है , कोई दूसरों को ''दर्द देने के लिए'' भूत बना है। कोई ज्यादा ''शक्ति'' प्राप्त करने के लिए इस योनि में है ,किन्तु मुझे ,ऐसी कोई भी इच्छा नहीं है इसीलिए यह खोपड़ी इतनी शीघ्र भर गई।
इस बच्चे ने बहुत ही सुंदर बात कही है , और हमें गर्व है कि हमारी भूत योनि में भी , ऐसे कुछ छात्र हैं , जो स्वयं ही सच्ची राह पर नहीं चल रहे बल्कि दूसरों को भी अच्छी राह दिखा रहे हैं। इतने वर्षों से यह खेल चलता रहा है , किंतु इसका आज तक कोई भी ,इसका सही उद्देश्य नहीं जान पाया , और आज इस बच्चे ने इस खेल को समझा और जीता भी ,सभी इस बच्चे के लिए तालियां बजाएंगे। ब्रह्म मुहूर्त होने वाला है ,अब हम सभी अपने अपने स्थानों पर , चले जाएंगे और कल किसी दूसरे खेल के साथ, हम फिर से यहीं आप लोगों से मिलेंगे , कहते हुए ,नटवरलाल जी ने, उस आयोजन की समाप्ति की।
अपने स्थान पर आकर, सूरज के सभी दोस्तों ने उसे सराहा -क्या बेहतरीन प्रदर्शन किया ? तुमने तो कमाल ही कर दिया , रोहित खुश होते हुए बोला।
धन्यवाद दोस्तों !यह सब मैंने आप लोगों के कारण ही किया ,आप सभी इतने अच्छे हैं , अच्छा प्रदर्शन तो होना ही था। कल बहुत ही खतरनाक खेल होने वाला है , उसकी तैयारी कौन कर रहा है ?सूरज ने पूछा।
कौन सा खेल है ? अफरोज ने पूछा।
क्या तुम नहीं जानते ? कल'' अग्नि शक्ति ''का प्रयोग होगा।
यह किस तरह का खेल है ? टॉम ने पूछा।
यह खेल बहुत ही खतरनाक है इसमें जान जाने का भी खतरा है रोहित ने बताया -इस खेल में कोई भी अध्यापक, हमारी तरफ ' अग्नि गोला ''फेंकेंगा। हमें उस गोले से बचकर उस गोले को दुश्मन की तरफ फेंकना है यानी कि विरोधी समूह को , यदि वह बोला तुम्हारे , इस भूतिया शरीर को लग गया , तो यह तन वहीं गायब हो जाएगा ,यानी वह तो गया.......
बाप रे ! इतना खतरनाक खेल, हम तो अभी बच्चे हैं ,हममें से तो कोई नहीं खेल रहा है ,ना.....
नहीं, हम बच्चे हैं ,तो क्या हुआ ? इस खेल का मैंने बहुत अभ्यास किया है , और मैंने इसमें अपना नाम भी लिखवा दिया है, रोहित ने बताया।
क्या...... सभी बच्चों के मुंह आश्चर्य से खुले रह गए।