Shrapit kahaniyan [part 82]

आज की रात्रि शेफाली, फिर से बाबा से संपर्क साधना चाहती है , किंतु बाबा से संपर्क नहीं हो पाता है , तब वह अगले दिन बाबा से मिलने के लिए , उन बर्फीली घाटियों में जाने के लिए सोचती है। रमा के घर की खिड़की में ,एक साया मंडराता है ,रमा उसे देखकर डर जाती है , जब उसने खिड़की की तरफ देखा तो दीपशिखा खड़ी झांक रही थी ,उसकी तरफ देखकर बोली -कब तक कॉलिज नहीं आओगी ?किन्तु दीपशिखा जो चाहती है ,वो करके छोड़ती है ,अपनी मौत से भला आज तक कोई भाग सका है। कहते हुए हँसती है -हा हा हा !

मम्मी..... रमा चीखी। 


रमा और चिराग पर दीपशिखा की काली नजर पड़ चुकी थी ,दीपशिखा से दोनों को ही खतरा था। रमा उसके ड़र से, डर -डरकर जी रही थी, किन्तु किसी से कुछ भी कह नहीं पा रही थी ,डॉक्टर को भी ,उसकी बीमारी का पता नहीं चल पा  रहा था। रमा ने किसी से कुछ भी नहीं कहा। ' स्वर्ण लता 'की मौत के विषय में ,वह जानती थी, किंतु दीपशिखा के भय से, किसी को कुछ नहीं बताया, फिर भी ,दीपशिखा उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी। अब दीपशिखा को लोगों को तंग करने में ,उन्हें परेशान करने में ,उसे  मजा आने लगा। अपने घर में भी, उसने ऐसा कवच और जाल बिछाया कि  कोई भी उसको कुछ कहता ही नहीं था। 

अर्ध रात्रि को वह , रमा पर ''मारक शक्ति ''का प्रयोग कर रही थी। रमा अपने बिस्तर पर सोई हुई थी , तभी उसे अपने हाथों पर कुछ गीला -गीला सा अनुभव होता है , आसपास कुछ-कुछ सरसराहट सी महसूस होती है , किसी की तीव्र स्वाँसें  उसे महसूस होती हैं। डरावनी सी गुर्राहट उसे सुनाई पड़ती है ,भय  से ,उसने अपनी आँखें नहीं खोली और जो हाथ बाहर थे ,वो भी अपनी ओढ़ी हुई चादर के अंदर कर लिए , वो अपनी ओढ़ी हुई चादर को ,कसकर पकड़ लेती है ,और चारों तरफ से दबा देती है। किन्तु वो जितना उस कपड़े को दबाती ,वो उतना ही बाहर ,की तरफ खींचा जाता। आखिर उसने अपनी आँखें खोलकर ,बाहर देखा तो ,उसी हालत खराब हो गयी ,मुँह से आवाज ही नहीं निकली ,आँखें फटी की फटी रह गयीं। दो  चुड़ैलें ,उसे घूर रहीं थीं ,और उसके बेहद करीब आती हैं ,अपनी  लम्बी जीभ से उसे चाटती हैं। रमा को इस सबसे घिन्न आ रही है किन्तु वो कुछ भी नहीं कर पा रही है। 

अपने  लम्बे तीखे नुकीले दाँत ,उसके शरीर में गड़ा देती हैं ,जिससे रमा को कमजोरी छाने लगती है और वो बेहोश हो जाती है। उसके पश्चात क्या हुआ ? वह नहीं जानती , सुबह जब उठी तो वह बहुत कमजोरी महसूस कर रही थी , उससे उठा ही नहीं जा रहा था , रात्रि वाली घटना स्मरण करके , वह सिहर उठी , उसने सोचा -सपना होगा किंतु जब अपने शरीर पर , निशान देखे तो, समझ गई वह सपना नहीं ,सच था। कहते हैं ,न......  ज्यादा डर से भी इंसान का डर खत्म हो जाता है। रमा ने भी यही सोचा -वह कब तक उससे डरती रहेगी ?आज रमा ने  सोच लिया था , शायद वह उसे नहीं जिंदा नहीं छोड़ेगी , मरना तो एक न एक दिन है ही इसीलिए मम्मी को सब बता देगी , कम से कम माता-पिता को मालूम तो हो , कि उनकी बेटी क्यों परेशान थी ?

उधर शेफाली बर्फीली वादियों में पहुंच गई थी , उस जगह पर लोग- बाग दिखलाई दे रहे थे ,पहले की तरह सूनापन नहीं था, बर्फ आज भी जमी थी ,किंतु उसमें बच्चे खेलते नजर आ रहे थे। बर्फ की परत को हटाकर, कुछ मछलियां पकड़ रहे थे , आज वह गांव जी  उठा था। शेफाली मंदिर के अंदर गई , बाबा !बाबा ! आप कहां हैं ? मंदिर के प्रांगण  से एक बुजुर्ग बाहर आए, शेफाली ने देखा , दस बरस का असर उनके तन  पर दिख रहा था , अब बाबा पहले से और अधिक बुजुर्ग हो गए हैं , दाढ़ी पहले से ज्यादा सफेद हो गई है , हिम  की तरह ही श्वेत , अब उनकी नजरें भी शायद कमजोर हो चुकी हैं , क्योंकि उनके चेहरे पर ,एक ऐनक ने अपना स्थान जो बना लिया था। बाहर आकर बोले -कौन ?

मैं शेफाली ! आप मुझे भूल गए , बाबा ! या अभी भी याद है। 

तुम्हें कैसे भूल सकता हूं ? उनके चेहरे पर मुस्कान आई , उनका गुलाबी रंग खिल उठा था। झुर्रियाँ  बढ़ गई थीं किंतु उनके चेहरे पर अभी भी तेज था। असीम शांति का....... इतने दिनों बाद कैसे ,कहां चली गई थीं ? बाबा को एक बार भी स्मरण  नहीं किया , उलाहना देते हुए बोले। 

अब क्या करती? मुझे तो श्राप से मुक्त होना था इसीलिए मैं ,यहां से चली गई थी। शेफाली ने अपनी दुविधा बतलाई। 

कुछ हुआ , बाबा ने पूछा। 

प्रयास कर रही हूं , किंतु जो भी करने चलती हूं ,गलत ही हो जाता है , उदास स्वर में शेफाली बोली - मैं एक  बात से बहुत परेशान हूं , बाबा आप तो कहते थे -'मेरे अंदर बहुत शक्तियां हैं ,जब उन शक्तियों का उपयोग करना चाहती हूं तो वह शक्तियां काम नहीं कर रही हैं ,मैं किसी की कोई सहायता नहीं कर पा रही हूं , मैं जानना चाहती हूं कि मेरी शक्तियां कहां है ? या मैं एक झूठ के सहारे जी रही थी। मैंने आपसे बहुत बार ,मानसिक सम्पर्क साधना चाहा किन्तु आपसे भी सम्पर्क नहीं हो पाया ,आप तो मेरी सभी समस्याओं को चुटकी में हल कर दिया करते थे ,अब क्या हुआ ?उतावलेपन से शेफाली ने प्रश्न किये।  

क्या दस वर्षों के प्रश्न अभी पूछ डालोगी , थोड़ा शांत रहो ! कहते हुए ,बाबा ने उसके मस्तक की तरफ देखा, और बोले शापित जीवन लिए हुए हो , इससे कैसे, कोई अच्छा कार्य कर सकती हो ? जब तुम्हें कुंभर्क ने श्राप दिया था , तभी तुम्हारी शक्तियां भी बंध गई थीं , इसी कारण उनका तुम प्रयोग नहीं कर पा रही हो , फिर मुस्कुरा कर बोले -मेरा आशीर्वाद तो कार्य कर रहा है ना...... 

जी बाबा ! किंतु क्या आप जानते हैं ?'चंडालिका '' ने पुनर्जन्म  ले लिया है , आरंभ में तो वह एक सीधी लड़की थी , किंतु जैसे ही उसे अपनी शक्तियों का आभास हुआ , उसने अपनी शक्तियां जागृत की और अब अपने आसपास के लोगों का जीवन उसने दुभर बनाया हुआ है। तब शेफाली ने बाबा को उस दीपशिखा से मुलाकात की सारी बात विस्तार से बतला दीं ।


 संपूर्ण बातें सुनकर ,बाबा के चेहरे पर गंभीरता छा गई , और  बोले -यह तो बहुत ही बुरा हुआ , तुम उसे किसी भी तरह से कमजोर मत समझना वह काली शक्तियों के पुजारी की बहन है। 

जी बाबा ! यह मैंने महसूस किया है , जैसे-जैसे शक्तियां बढ़ रही हैं, उसका अहंकार भी बढ़ता जा रहा है , अपने सामने किसी को कुछ समझती ही नहीं , जो वह चाहती है , वह करके छोड़ती है , फिर चाहे किसी की जान पर ही ,क्यों ना बन आएं ? आरंभ में तो मैं उसे सीधी और सच्ची लड़की समझ कर ही , उसकी सहायता कर रही थी , किंतु धीरे-धीरे मुझे उसकी हैवानियत का एहसास होने लगा। जब मैं उसके सताए लोगों की सहायता करने के लिए आगे बढ़ी तो मेरे पास शक्तियां ही नहीं थीं। अब बताइए !मैं उन लोगों को ,उसके  जादुई जाल से कैसे बचाउ ं ? क्या मैं अपने सामने यह अनर्थ होते देखती रहूं ? इस शापित जीवन को लिए इसी तरह भटकती रहूँ , इस तरह तो मेरा' श्राप ' कभी भी दूर नहीं होगा। ना ही मैं ,किसी की कोई  सहायता कर पाऊंगी , अपनी आंखों से अनाचार होते नहीं देख सकती , कृपया मुझे बतलाइए ! इसका कोई उपाय है या नहीं।

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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