सुबह से नित्या परेशान थी ,प्रमोद जी ने विवाह वाले दिन आने का वायदा किया था किन्तु उनकी प्रतीक्षा करते -करते सुबह से शाम हो गयी, फोन करने पर भी वो फोन नहीं उठा रहे हैं ,चिंतित होते हुए कहती है - ''आखिर क्या कारण हो सकता है ?वो आये क्यों नहीं, तब उसने एक रिश्तेदार के लड़के बंटू से उन्हें देखकर आने के लिए ,जरा बाहर देखकर तो आना ,तेरे जीजाजी अभी आये या नहीं ,कहीं तेरे जीजाजी दिखलाई दें, तो उन्हें साथ ले आना।
कुछ देर पश्चात जब बंटू आता है, तो बताता है -'जीजाजी आ गए हैं किन्तु बारात के साथ आये हैं और वहीं पर नाच रहे हैं , ऐसा कैसे हो सकता है ? कहते हुए नित्या , शिल्पा को वहीं छोड़कर बाहर आई और शीघ्रता से सीढ़ियां चढ़ते हुए छत पर पहुंच गई , उसे लग रहा था मैं यहां से अच्छे से देख सकती हूं। चढ़त हो रही थी , उसे इस बात का आश्चर्य था, कि वो बारात के साथ आ रहे हैं। उन्हें कैसे मालूम कि बारात कहां से आ रही है ?या कहीं ऐसा ना हो, पहले ही आ गए हो और मुझसे न मिल पाए हों, वहां से ठीक से कुछ भी नहीं दिख रहा था। अनेक अटकलें लगाते हुए वह नीचे उतर कर आ गई,किन्तु इस बात की संतुष्टि थी ,वो आ गए। कुछ देर में, दूल्हे की स्वागत की तैयारी हो रही थी।
तब एक महिला बोली -हमारे यहां दूल्हे का स्वागत या तो लड़की की भाभी करती है, या फिर उसकी बहन करती है , अब यह कार्य नित्या को भी करना होगा, कहते हुए नित्या को आरती का थाल पकड़ा दिया गया । नित्या घबराई और बोली -मैंने आज तक किसी का आरता नहीं किया है, यह सब मुझे नहीं आता।
क्यों? तुम्हारा विवाह तो हो चुका है,जैसा तुम्हारा हुआ ,ऐसा ही करना है, हम भी तो तेरे साथ चल रहे हैं, जैसा हम कहें , वैसे ही करती जाना। जैसे ही नित्या दरवाजे पर पहुंची, रंजन और प्रमोद उसे दोनों ही साथ में खड़े दिखाई दिए वे मुस्कुरा रहे थे। नित्या को प्रमोद पर क्रोध आया वो सोच रही थी -अब आए हैं, मुझसे आकर मिले भी नहीं ,मैं यहां इनके लिए सुबह से परेशान हो रही थी और अब दिखे भी हैं तो दूल्हे की तरफ खड़े हैं , उसने प्रमोद को गुस्से से घूरा किन्तु प्रमोद मुस्कुरा दिया।
रंजन अपलक नित्या को देख रहा था, उसने देखा, विवाह के पश्चात तो यह और भी निखर गई है, इस लाल जोड़े में कितनी खूबसूरत लग रही है ? नित्या को देखकर उसका दिल किया कि वह यहां से वापस चला जाए किंतु उसकी मति ने उसे रोक लिया-' मूर्ख ! ये तू यह क्या करने जा रहा है ?अब वह किसी की पत्नी है उसका विवाह हो चुका है , तूने उसके साथ और उसके पास रहने का यही तो बहाना ढूंढा था। नित्या के समीप भी रहेगा उसकी खोज -खबर में मिलती रहेगी , शिल्पा को ही तो माध्यम बनाया था फिर भी वह मन ही मन कट कर रह गया।
नित्या ने, रंजन के माथे पर तिलक लगाया, और पूछा - दूल्हे राजा कैसे हैं?
जिसके आप जैसी साली हो, वह तो खुश ही रहेगा , प्रमोद ने जवाब दिया, उनका जवाब सुनकर सभी हंस दिए, जो नित्या के विवाह में गए थे, वह तो जानते थे- कि प्रमोद कौन है? किंतु उसे दूल्हे की तरफ देखकर पहचान भी नहीं पाए, और कुछ जानते ही नहीं थे।
नित्या भी अनजान बनते हुए बोली -जवाब आपसे नहीं मांगा है , हम दूल्हे राजा से पूछ रहे हैं। आप इनका जवाब देने वाले कौन होते हैं? क्या आप इनकी नौकरी करते हैं ?
हम तो आपकी भी नौकरी कर लेंगे, कोई हमें नौकरी दे तो सही , इसी तरह की हंसी- मजाक के साथ दूल्हे का स्वागत हुआ और जयमाला की रस्म के लिए, दूल्हे को मंच पर बैठा दिया गया। जब सभी अपने कार्यों में व्यस्त हो गए थोड़ी भीड़ कम हुई तब नित्या ने इशारे से प्रमोद को एकांत में बुलाया -प्रमोद चुपचाप नित्या के पीछे चल दिया। एकांत मिलते ही नित्या ने पूछा - आप अब आ रहे हैं , यह कोई आने का समय है , जब आपसे कहा था -कि आपको सुबह ही आ जाना चाहिए था।
नाराज क्यों हो रही हो , क्या करता ? मेरे दफ्तर में एक सहयोगी का भी विवाह था, उसने भी मुझे बुलाया था , उसके यहां जाना भी आवश्यक था, वह मुझे बहुत मानता है , उसके यहां भी तो जाना था।
साली की शादी में आना आवश्यक था या फिर उस सहकर्मी के विवाह में.... तो फिर यहां क्यों आए हैं, वही क्यों नहीं गए चले गए ? रूठते हुए नित्या ने कहा।
वहीं तो आया हूं, प्रमोद ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
क्या मतलब ? नित्या ने पूछा।
तब मुस्कुराते हुए प्रमोद बोला -वह सहकर्मी और कोई नहीं, यह रंजन ही तो है , मेरे साथ ही काम करता है।
प्रमोद की यह बात सुनकर, नित्या अंदर तक हिल गई और सोचने लगी -ऐसा कैसे हो सकता है ? क्या यह मात्र एक संयोग है या नियति अपना कुछ खेल खेल रही है। प्रमोद अपनी बात जारी रखते हुए बोला -जिस दिन तुमने कहा था, कि 23 तारीख को विवाह में आना है, उससे अगले दिन रंजन ने मुझे एक कार्ड दिया। जिसमें 23 तारीख को विवाह में जाना था, पहले तो मैंने लापरवाही से उस कार्ड को देखा और रंजन से कहा -शायद मैं नहीं आ पाऊंगा, मुझे कहीं जाना है।
सर ! यह आप क्या कह रहे हैं ? आपको मेरे विवाह में अवश्य ही आना होगा।
ठीक है, मैं प्रयास करता हूं, मैंने उसका मन रखने के लिए उससे कह दिया। जिस दिन तुमने मुझे, यहां का पता दिया था , तब मैंने कार्ड में भी देखा,मैं सोच रहा था -'दोनों जगह जाना आवश्यक है ,इसीलिए यह देखने के लिए कि ये शादियां कहाँ -कहाँ हो रहीं हैं ?यह देखते ही मेरी समस्या एकदम से सुलझ गयी। यह विवाह तो उसी जगह पर है''अरोमा फॉर्म हॉउस '' तब मैंने उस कार्ड को दोबारा पढ़ा और पता चला -यह साहब तो हमारी साली साहिबा के ही पति बनने जा रहे हैं , तब अपने को भी थोड़ी सी मस्ती सूझ गई और तुम्हें जानबूझकर बताया नहीं , सोच रहा था -उन्हें बारात के साथ पहुंच कर अचंभित कर दूंगा। बताओ !क्या तुम्हें, मुझे बारात के साथ देखकर आश्चर्य हुआ या नहीं..... प्रमोद ने मुस्कुराते हुए पूछा।
नित्या ने हाँ में गर्दन हिलाई फिर पूछा - क्या रंजन भी इस बात को जानता है ?
नहीं, जानता तो नहीं था, किंतु जब मैं उसके साथ आ रहा था तब उसने पूछा था -सर !आप तो कहीं और जाने वाले थे।
हाँ , मैं वहीं जा रहा हूं, मैंने जवाब दिया।
क्या मतलब ? कुछ भी न समझते हुए, रंजन ने पूछा।
