जिसका स्वार्थ जहाँ सिद्ध होता है ,
वह वहीं.. ' सफेद झूठ' बोलता है।
समाज पर. गहरी नजर रखता है।
अच्छे औ तीखे व्यंग्य भी कसता है।
जैसा स्वार्थ ,वैसा ही झूठ भी सजता है।
झूठ चूहे -बिल्ली सा खेल खेलता ,
पकड़ा भी गया कभी ,
झूठ बोल ,बच निकलता है।
नेता हो या आम जनता ,
झूठ सभी पर ,जमता है।
इसका कहाँ नहीं ,बोलबाला है ?
नौकरी ,व्यापार सभी में झूठ चलता है।
कभी लेखक , अपने को टटोलता है।
असल ज़िंदगी में ,वो भी झूठ बोलता है।
जिस झूठ से बचती है ,जान किसी की ,
वो झूठ कहाँ कहलाता है ?
भांति -भांति के लोग यहां ,
भांति -भांति के झूठ हैं।
जामा ओ वर्ण कोई हो ,
झूठ के तो विभिन्न रंग है।
इंसान को स्वयं टटोलना है ,
उसे कितना झूठ कब बोलना है ?
अंत में ,सच्चाई को सामने आना है ,
जब झूठ नंगा हो जाना है।
झूठ की थाली -
झूठ के हैं ,रूप अनेक !
स्वाद , इसके भिन्न -भिन्न हैं।
झूठ की थाली में ,
परोसे जाते, विभिन्न व्यंजन हैं।
झूठ की थाली कितनी सुहानी ?
उसमे है ,मीठी झूठों की रानी !
अपनी मिठास से मन बहलाती है।
पता ही नहीं चलता ,झूठ का
उसकी मिठास निराली है।
सच ही लगता है ,कभी -कभी,
ऐसा झूठ भी बोला जाता है।
झूठ का आदि , इतना हो जाता है ,
कभी -कभी इंसान ,
अपने आप से झूठ बोल जाता है।
तीखा झूठ ,दर्द बहुत दे जाता है।
झूठ की थाली में ,
हमेशा रूप कोई हो ,
रंग और स्वाद कोई हो ,
झूठ ही परोसा जाता है।

