Jail 2 [part 15]

यह है ,''ह्यूमन बॉडी '' आज के विषय में हम यही पढ़ेंगे ! ह्यूमन मतलब ,''मानव शरीर '' इसकी संरचना कैसे होती है ?स्त्री और पुरुष के  शरीर में क्या -क्या अंतर् होते हैं ?आज हम इनको जानेंगे। 

बरखा ने अपनी पुस्तक के पेज ,पलटे ,वो तो कम से कम अध्याय संख्या बारह  है , मास्टर जी !अभी तक यह पाठ हमारे'' त्रेमासिक परीक्षा ''में नहीं आएगा। अभी तो हम तीसरे अध्याय पर ही चल रहे हैं , अभी और भी छात्र नहीं आए हैं ,उन्हें आने दीजिए ,तब हम पढ़ते हैं। 

तू पगली है ,क्या ?समझती नहीं है , एक बार को मास्टरजी झल्लाए। देख !मैंने, तुझे उनसे अलग से बुलाया है ,अभी वह बच्चे नहीं आएंगे ,मैं चाहता हूं -तू पढ़ ,मेहनत कर और उनसे आगे बढ़ जा, तू होशियार लड़की है ,समझदार है। उनसे से पहले ही, यह सब चैप्टर पूरे कर ले , उनके साथ तेरा अभ्यास भी हो जाएगा। 

ठीक है ,मास्टर जी !कहते हुए बरखा, उनके समीप बैठ जाती है। 



बता पहले ,किसके शरीर की संरचना की जानकारी तुझे लेनी है ,वैसे तो अपने शरीर के विषय में तो तू जानती ही होगी। नारी का तन कितना कोमल ,सुंदर ,और विचित्रताओं से भरा है ? इस तन के कारण ,बड़े -बड़े ऋषि ,मुनि भी अपने आपको नहीं संभाल पाए ,जानती है क्यों ?

बरखा अपनी किताब के पेज़ पलटकर जानना चाह रही थी ,जो चीजें मास्टरजी बता रहे हैं ,कहाँ लिखी हैं ?

बरखा को इस तरह पन्ने पलटते देखकर, मास्टर जी को गुस्सा आता है , तब वह कहते हैं -इसमें क्या देख रही है ? जो चीज में समझा रहा हूं, वह इस किताब में नहीं मिलेगा ,कहते हुए ,उसका हाथ पकड़ते हैं और कहते है -देख ! ये तेरे हाथ कितने नरम ,नाजुक हैं ?त्वचा से ही हम, पता लगा सकते हैं ,ये तन एक बालिका का है ,या फिर किसी पुरुष का। अब तुम मेरा हाथ पकड़कर ,इसे महसूस करो ,तब तुम्हें किस तरह का एहसास होता है ?मुझे बताओ !

बरखा मास्टरजी का हाथ छूना भी नहीं चाहती ,तब कहती है -मास्टरजी !इतना तो मैं जानती हूँ ,मैं ,मेरी माँ ,मेरी बहन हम'' स्त्रीलिंग'' में आते हैं ,और मेरे पिता ,मेरे दोनों भाई ''पुल्लिंग''में आते हैं ,ये सब हमने हिंदी की किताब में पढ़ लिया है। 

तुम तो बड़ी होशियार हो ,किन्तु साइंस में अलग तरीके से पढ़ा जाता है। इसमें हम शरीर के अंगों की जानकारी लेंगे , उनके विषय में विस्तार से पढेंगे। अब ये देखो ! हमारा दिल जो जोरों से धड़कता है ,जिसका कार्य हमारे शरीर के अंदर जो रक्त बह रहा है ,उसकी सफाई करने का कार्य करता है किन्तु यही दिल जब किसी स्त्री ,नारी को देखता है ,तो स्वतः ही इसकी गति तेज हो जाती है ,ऐसा क्यों ?

बरखा ने ' नहीं 'में गर्दन हिलाई। 

पगली ! वो ही बतला रहा हूँ ,कहते हुए ,मास्टरजी ने उसके गालों को थपथपाया और बोले -क्योंकि हमारा दिल भी जानने लगता है ,जो हमारे सम्पर्क में आई है वो एक नारी है ,दिल उसके स्वागत में ,प्रसन्नता के कारण ,जोर -जोर से धड़कने लगता है। हमारे खून को साफ करने की, उसकी रफ़्तार बढ़ जाती है। जब कोई चीज आराम से चल रही  है ,और अचानक ही उसकी गति तीव्र हो जाये ,तब क्या होगा ?

पता नहीं ,बरखा ने जबाब दिया। 

मुझे लग ही रहा था ,तू नहीं जानती होगी ,कहते हुए उन्होंने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया और अपने दिल के करीब ले गए ,और उसे अपने दिल की धड़कने सुनाने लगे ,देखो !कुछ महसूस हुआ। 

हाँ ,मास्टरजी !आपका दिल धड़क रहा है ,बरखा बोली -इस तरह तो मेरा दिल भी धड़क रहा है ,कहते हुए ,उसने अपना हाथ अपने सीने पर रखा। तभी मास्टरजी ने भी ,मोेके का लाभ उठाया ,और बोले -जरा मैं भी तो तुम्हारे दिल की धड़कन सुनूं ,कहते हुए ,उसके सीने पर हाथ रख दिया ,इससे पहले की वो कुछ समझ पाती ,मास्टरजी का हाथ ,ऐसे स्थान पर था ,जिसे महसूस करते ही वो पीछे हट गयी क्योंकि मास्टरजी ने अपने हाथों का स्पर्श उसे कुछ ज्यादा ही करा दिया था। उसके पीछे हटने पर ढीटता से मुस्कुराते हुए बोले -यही  एहसास तो मैं, तुझे कराना चाहता था। जब किसी स्त्री का शरीर, किसी पुरुष के शरीर से स्पर्श  करता है , तब हमारा दिल और तेजी से धड़कने लगता है , देखो जरा !मेरा दिल कितनी जोरों  से धड़क रहा है ,कहते हुए, मास्टर जी ने उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ाया किंतु अब बरखा थोड़ी सतर्क हो गई थी ,वो और पीछे हट गई। आओ देखो !मेरे करीब आओ !

 नहीं ,मास्टर जी ! मैं समझ गई। 

क्या ,खाक समझ गई ? जब तक तुम इस दिल को स्पर्श नहीं करोगी ,तब तक तुम्हें कैसे पता चलेगा ?कि मेरी धड़कनें  कितनी तेज हो गई हैं ?और मेरा मानना है ,तुम्हारी धड़कन भी तेज हो गई होंगी। इसी से तो स्त्री और पुरुष के बीच का अंतर नजर समझ आता है , इस तरह छूने से ,स्पर्श करने से ,चुंबन करने से , हमारे दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं ,लहू तेज हो जाता है इसी को तो कहते हैं ,''गर्म खून ''हमारा खून गर्म हो जाता है। तभी मास्टर जी ने एक अध्यापिका को उधर आते हुए देख लिया और बोले-हां ,तो यही मैं तुम्हें आज की मानव संरचना के विषय में बताना चाह रहा था। स्त्री और पुरुष की रचना अलग-अलग होती है , इसका आभास हमारे अंगों को भी हो जाता है।

 तब तक वो अध्यापिका ,करीब आ चुकी थी , उन्हें देख कर बोली- मास्टर जी अन्य बच्चे नहीं हैं ,इसे  अकेली को ही पढ़ा रहे हैं। 

दांत दिखा कर हंसते हुए मास्टर जी बोले -आजकल बच्चों का पढ़ने में मन ही कहाँ है ?बुलाया था ,आए नहीं अब ये अकेली आ गई , हमें तो पढ़ाने से मतलब है,अब मैंने सोचा -ये पढ़ने में तो होशियार है लड़की कम से कम हमारे स्कूल से एक लड़की ही आगे बढ़े ,हमारे स्कूल का नाम रोशन करेगी। सरकारी स्कूलों की तो हालत ही यही है, आधे बच्चे तो आते ही नहीं ,जो आते हैं वह पढ़ने ही नहीं बैठते हैं ,तब भी बहाने से मास्टरजी कभी उसके सिर पर हाथ फेरते ,कभी उसके कंधों को पकड़कर दबाते ,कभी गाल थपथपाते।  

ठीक है ,मास्टर जी ! मैं भी अपनी कक्षा में जाकर देखती हूं , जो दो चार बच्चे आए हैं उन्हें ही पढ़ा कर देखती हूँ ,करने वाले तो ये कुछ हैं, नहीं , इनका कुछ होगा भी नहीं ,हमें तो अपना उत्तदायित्व पूर्ण करना है  एहसान सा दिखाते हुए वह अध्यापिका चली गईं। 

उसके जाते ही ,मास्टर जी बोले - इतनी अच्छी पढ़ाई चल रही थी, क्या मूड बन रहा था ?आते ही ,सब खराब कर दिया, चलो ! अब दोबारा से शुरू करते हैं। 

नहीं ,मास्टर जी !अब मैं अपने घर जा रही हूं ,माँ ने कहा था -आज जल्दी आ जाना ,कहते हुए बरखा ,वहां से उठ कर चली , तभी मास्टर जी बोले-पढ़ाई में तुम्हारा बिल्कुल भी ध्यान नहीं है , इस तरह लापरवाही करोगी तो किस तरह आगे बढ़ोगी ?इस तरह तुमसे, घर के कार्य करवाएगी तो तुम कैसे पढ़ पाओगी ? आज हमने दिल के विषय में बताया था, अभी हमारे शरीर में और भी अंग है जिनकी जानकारी तुम्हें लेना है , कल सही समय पर आ जाना। 



ठीक है कहते हुए , बरखा वहां से निकलती है , उसके सीने में हल्का दर्द सा हो रहा था , मास्टर जी ने हाथ ही जोर से लगाया था। पंद्रह  बरस की हो गई है ,अब छोटी भी तो नहीं रही , कुछ -कुछ समझने भी लगी है। सच में ही, उसके सीने में अजीब सी स्फुरण सी होने लगी थी , सोचकर ही ,उसके गाल लाल हो गए थे। किंतु मास्टर जी का इस तरह छूना उसे अच्छा नहीं लगा था। वह सोच रही थी -यह बात मां से बताऊं कि नहीं। कहीं मेरी पढ़ाई बंद ना हो जाए , सोचा ,नहीं बताती हूं। यहीं पर मैंने गलती कर दी , मेरी चुप्पी को उस मास्टर ने , मेरा निमंत्रण समझ लिया था। किसी ना किसी बहाने से , मुझे छूने का प्रयास करता , मैं इतनी नासमझ भी नहीं थी , कोई लड़का शायद मेरे साथ इस तरह का व्यवहार करता तो शायद मैं भी उसके प्यार में बहक जाती किंतु यह तो अधेड़ उम्र का मास्टर था , उसका छूना मुझे ,मेरे अंदर अजीब सी घिन्न पैदा कर देता , जब मैं उस मास्टर की हरकतों से तंग आ गई , तब मैंने स्कूल जाना बंद कर दिया। माँ ने  कई बार पूछा -क्या तू ,अब स्कूल नहीं जाती ?

किंतु मैंने मां को वह  सब नहीं बताया और कहा -मेरा पढ़ाई में मन नहीं है ,  यदि मैं यह सब मां को बता देती , तब हो सकता है , यह लोग स्कूल में जाते और उस मास्टर को कुछ कहते ,जिसके कारण मेरे छोटे भाई बहनों की पढ़ाई में अड़चन आ सकती थी। तब मैंने एक कोठी में काम करने का निर्णय लिया , कोठी तो बहुत बड़ी थी , किंतु मेरा उत्साह ,उससे कहीं अधिक बड़ा था। उस कोठी में , अधेड़ उम्र के दंपति रहते थे। उनका बेटा बाहर कहीं नौकरी करता था, और उन्हें खर्चे के लिए पैसे भेज देता था। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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