Shrapit kahaniyan [part 102]

 प्रभा के दिए ' यंत्र 'के कारण , प्रीति स्वस्थ होने लगती है ,लेकिन उस समय वह इतनी बीमार थी कि उसे स्मरण ही नहीं रहा -कि उसके तकिए के नीचे कोई यंत्र है। जब प्रभा, प्रीति से मिलने आई -तब उसी ने उसे बताया -कि उसके स्वस्थ होने की वजह क्या है ? अभी भी प्रीति को अपने कमरे से बाहर निकलने पर डर लगता है।  बातों ही बातों में प्रभा उस यंत्र को उसके कपड़ों में बांध देती है। उसके घर में जो प्रेत भेजा गया है , वह अब प्रीति का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा है , इसीलिए उसने प्रीति की सास को, अपने क्रोध का माध्यम बनाया , और उसकी सास को शारीरिक दंड देने लगा। प्रीति से यह सब देखा नहीं जा रहा था , तब वह अपना यंत्र लेकर अपनी सास के पास आ जाती है। प्रेत द्वारा दिए गए ,दंड के कारण उसकी सास बेहोश हो जाती है, वह प्रेत का क्रोध नहीं झेल पाती है। तब प्रीति उस प्रेत से अपनी सास को बचाना चाहती है , यंत्र एक ही था, उसके सामने उसकी सास और वह स्वयं, खड़े थे। प्रीति की सास को' प्रेत' हवा में उड़ाता है , प्रीति उन्हें , अपने यंत्र द्वारा बचाती है।


 कब तक वह इसी तरह बैठी रहेगी ? वह यही सोच रही थी, मैं अपना बचाव करुं या मम्मी जी का......   इस तरह से तो, रात्रि में जब 'करण 'आएंगे वह उन्हें भी , किसी न किसी तरह से तंग कर सकता है। क्या किया जाए ? ऊपर अपने कमरे में भी नहीं जा सकती क्योंकि सीढ़ियों  पर टूटा सामान पड़ा है , जाने का मार्ग इस प्रेत ने छोड़ा ही नहीं , बैठे-बैठे सोचती रही, तभी उसे अपने घर के मंदिर का स्मरण हो आया।

 वह देवी मां से प्रार्थना करने लगी, हे मां !आप यह हमारी कैसी परीक्षा ले रही हैं ? इस प्रेत से कैसे छुटकारा मिलेगा ? तभी उसे, देवी मां के सिंदूर का स्मरण हो आया , उनके सिंदूर में भी तो शक्ति है ,यह सोचकर उसने , बिना यंत्र के, अपने मंदिर तक जाने का निश्चय किया। मंदिर ज्यादा दूर नहीं था, इससे पहले कि 'प्रेत ' उसकी भावनाओं को भांप सके। वह  निश्चय ले लेती है। प्रीति ने आव देखा न ताव ,वह मंदिर की तरफ , दौड़ लगाती है। उसके इस तरह दौड़ लगाने पर प्रेत समझ गया , उस समय प्रीति के पास यंत्र भी नहीं था। उसकी दौड़ को रोकने के लिए ,उसने एकदम से  हवा में कांच का गिलास उछालकर गिरा दिया , जो टूटकर चकनाचूर हो गया। उसके टुकड़े सम्पूर्ण जमीन पर फैल गए। वह टुकड़ों पर दौड़ती रही , प्रीति के पैरों में कांच घुस रहे थे। 

 न जाने कब से मंदिर के कपाट बंद हैं ? उसकी सास ने ,अपने पोते के जाने के बाद से ,पूजा करना बंद ही कर दिया था। तभी से प्रीति भी बीमार है ,घर में कोई भी पूजा नहीं कर रहा था। आज प्रीति ने साहस करके सोच ही लिया था, अपने घर के मंदिर के कपाट खोलने ही हैं। उसके पैर में कांच घुस गया , उसके दौड़ने में रुकावट आने लगी, किंतु वह दौड़ती रही , अचानक से एक बड़ा कांच उसके पैर में घुसा, जिसका दर्द वह बर्दाश्त नहीं कर पाई ,उसके मुंह से चीख निकली। उसे घबराहट थी, कहीं प्रेत ना आ जाए , या वह कोई और परेशानी ना खड़ी कर दे , उसने अपने पैरों से वह कांच निकाला। अब दौड़ तो नहीं पा रही थी , किंतु चले जा रही थी। लगभग दस कदम ही और जाना था , किंतु पैरों में बहुत दर्द हो रहा था , अब चलने की बजाय वह लेट गई और खिसकने लगी और जोर-जोर से चिल्लाने लगी -जय मां अंबे !जय मां अंबे !

इन शब्दों ने, उसके अंदर चेतना भर दी , दिन के समय भूत -प्रेतों  की शक्तियां भी कमजोर होती हैं , उन शब्दों को वह सुन नहीं पा रहा था ,न जाने घर के किस कोने में चला गया ? मां का जयकारा लगाते हुए , प्रीति ने , घर के मंदिर के कपाट खोल दिए , अपनी आंखों में अश्रु लिए, देर तक वहीं बैठी रोती रही , जैसे एक बेटी ,अपनी मां से बरसों से बिछुड़ने के बाद मिली हो। मंदिर में उसने , ज्योत प्रज्वलित की और वहां से सिंदूर उठाया , दोनों मुट्ठियों में भर लिया। अब निडर होकर वापस, अपनी सास के करीब आई , जिन्हें उसने पहले ही,' यंत्र 'से सुरक्षित कर दिया था। उस सिंदूर को उसने अपने माथे पर ,अपनी सास के माथे पर लगाया। उसे सिंदूर की एक रेखा, उनके बिस्तर के चारों ओर बना दी। अपना यंत्र अपने वस्त्रों  में फिर से बांध लिया।

 शाम होने ही वाली थी, मंदिर में अभी भी ज्योत प्रज्वलित हो रही थी। करण ने, अपने घर का दरवाजा खटखटाया। उम्मीद के विरुद्ध ,आज  दरवाजा माँ ने नहीं बल्कि प्रीति ने खोला था। यह देखकर करण आश्चर्यचकित रह गया ,हालांकि प्रीति अभी भी कमजोर लग रही थी। उसके आते ही प्रीति ने, सबसे पहले उसके माथे पर सिंदूर का तिलक लगा दिया, यह देखकर वह बोला -यह सब तुम क्या कर रही हो। 

 तुम्हारी सुरक्षा कर रही हूं ,उस प्रेत से, जो हमारे घर में विद्यमान है। 

यह तुम क्या कह रही हो ? तुम ठीक तो हो , यह कैसी बहकी -बहकी बातें कर रही हो ?हमारे घर में' प्रेत' यह कैसे हो सकता है ?

आप अंदर आईये  तो सही,  बैठकर बात करते हैं , संपूर्ण बातें मैं ,आपको समझा दूंगी। 

करण घर के अंदर आया, माँ  को बिस्तर पर लेटा देखकर बोला- इन्हें क्या हुआ ?यह ठीक से तो है , उनके सिर पर यह चोट कैसी ? उसने प्रीति से पूछा। 

 बेहोश हो गई थीं , गिरने के कारण चोट लग गई थी, प्रीति ने जवाब दिया। 

वहां का वातावरण जितना सरल दिख रहा था ,उतना सरल नहीं था कभी भी ,कुछ भी हो सकता था सतर्कता अनिवार्य थी। सीढ़ियों का रास्ता देखकर , करण ने प्रीति से पूछा-यह सब किसने किया ? रसोई घर भी अस्त-व्यस्त था , ऐसे लग रहा था, जैसे भूकंप आया हो। करण को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था , सुबह गया था तब माँ ठीक थी , अब आया है, तब पत्नी ठीक है। यह सब क्या चल रहा है ?

 तब प्रीति उसे बताती है, हमारे घर में किसी का भेजा हुआ' प्रेत' है , जो मेरी और मेरे बच्चे की जान का दुश्मन है। 

भला, कोई प्रेत हमारे घर में कैसे आ सकता है ? और उसकी तुमसे क्या दुश्मनी हो सकती है ? क्यों ,वह तुम्हें मारना चाहेगा ? करण झुँझलाकर प्रीति से कहता है। 

प्रीति उसकी बात से क्रोधित हो जाती है , मन ही मन बुदबुदाती है -' इस इंसान को देखने का पर भी , अंदाजा नहीं  लग रहा है कि घर की हालत क्या हो गई है ?'' कुछ समझना ही नहीं चाहता। अपने क्रोध को अंदर दबाकर , वह कहती है -तुम जानबूझकर भी अनजान क्यों बने रहना चाहते हो ? अपने बच्चे  की जान से तो हाथ धो बैठे हो। क्या अब अपनी मां से या मुझसे भी हाथ धोना चाहते हो ? हमारा बेटा बीमार नहीं था , उसको तांत्रिक शक्तियों द्वारा मारा गया है , यह तुम समझना क्यों नहीं चाहते ?अपने शब्दों पर जोर  देते हुए वह बोली। 



चलो, एक बार में तुम्हारी बात मान भी लूं , कि  कोई हमारे बेटे को, या हमारे परिवार को नुकसान पहुंचाना चाहता है , किंतु कोई ऐसा क्यों करेगा ? मेरे परिवार की 'जान का दुश्मन 'कौन हो सकता है ?

 वही तो मुझे मालूम नहीं है। 

वैसे तुम्हारे अंदर यह फितूर किसने भरा है ? या तुम बीमारी से उठी हो, तभी करण के मन में एक विचार आता है , कहीं , मां को इसने ही तो कुछ नहीं कर दिया , यह लंबी बीमारी से उठी है , मुझे लगता है, इसका मस्तिष्क कार्य नहीं कर रहा है, किंतु प्रत्यक्ष कुछ ना कह सका। 

प्रभा ,करण को समझाने का प्रयास करती है , और अपने कपड़े में बंधा हुआ वह पवित्र 'यंत्र 'करण को दिखलाती  है, और उसे बताती है -आज मैं जो तुम्हारे सामने खड़ी हूं , इसी यंत्र के कारण स्वस्थ हुई हूं। यही मेरी सुरक्षा कर रहा था। 

यह यंत्र तुम्हें किसने ला कर दिया ? करण ने एकाएक प्रश्न किया। 

हमारा ही कोई शुभचिंतक होगा , जो हमारी भलाई चाहता है, तुम इस तरह के प्रश्न क्यों पूछ रहे हो ? अब पूछ ही रहे हो ,तो बता देती  हूं , सुबोध जी की पत्नी , प्रभा जी आई थीं , उन्होंने ही, यह यंत्र मेरे तकिए के नीचे रखा था , जब मैं बहुत बीमार थी , इसके रखने के पश्चात, मैं धीरे-धीरे ठीक होने लगी। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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