प्रभा के मुख से ,अपने बेटे की मौत का कारण जानकर , प्रीति को बहुत दुख हुआ। जब उसे पता चला, कि उसके बेटे की मौत किसी बीमारी के कारण नहीं , वरन किसी की ईर्ष्या के कारण हुई है। कौन उसका ऐसा दुश्मन होगा ?जो उसे और उसके बेटे को मारना चाहेगा और उस अजनबी दुश्मन का भेजा हुआ ,'प्रेत 'उसे अभी भी तंग कर रहा है। तब वह प्रभा से कहती है -तुम उन मैडम को ले आओ ! मैं भी जानना चाहती हूं कि हमारी जान का दुश्मन कौन है ?
किंतु 'करण' तो इन बातों में विश्वास करता ही नहीं है , क्या वह उन्हें , इस घर में आने देगा।
क्यों ?नहीं आने देगा ,जब मैं उन्हें बतलाऊंगी, कि मालिनी जी के भेजे हुए यंत्र के कारण ही , आज मैं स्वस्थ हूं , उन्हें विश्वास करना पड़ेगा और मेरी जान बचाने के लिए मालिनी जी को बुलाना भी पड़ेगा प्रीति विश्वास से बोली।
प्रीति से बातचीत करके प्रभा वहां से निकल जाती है। तभी न जाने, प्रीति के सास को क्या होता है ? वह अपना सर जोर-जोर से दीवार पर पटकने लगती है। प्रीति अपने कमरे से बाहर आना नहीं चाहती थी , वह जान गई थी, कि वह प्रेत उसको उस कमरे से बाहर निकालना चाहता है , जैसे ही, वह कमरे से बाहर निकलेगी ,तो वह उस पर आक्रमण कर देगा किंतु उसने अपने कमरे की खिड़की से ही देखा ,उसकी सास लगातार, अपना सिर दीवार पर मार रही है। इस समय घर पर कोई नहीं था , जो उसकी सास को बचा सके। उसकी सास के सर से खून बहने लगा , अब प्रीति से यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वह अपना कमरा खोलकर, बाहर आ गई और दौड़कर अपनी सास को पकड़ा , जैसे ही वह अपनी सास के करीब पहुंची , उसकी सास स्थिर खड़ी हो गई। प्रीति ने देखा ,उनके सर से खून बह रहा है , बुढ़ापे की चोट है, प्रेत ने उन्हें छोड़ दिया , प्रेत के छोड़ते ही, वह जमीन पर धड़ाम से गिर गईं क्योंकि अब उन्हें दर्द का एहसास हो रहा था और उनका सर भी चकराने लगा था।
उसने अपनी सास को बिस्तर पर लिटाया और पानी पिलाया , जब वह इन सब कार्यों को कर चुकी , तब उसे एहसास हुआ, कि उसने जोश में आकर ,अपना कमरा तो छोड़ दिया है , और अब प्रेत उसे नहीं छोड़ेगा , यह सोचकर उसे घबराहट होने लगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। प्रीति ने सोचा , कहीं वह चला तो नहीं गया , वह आसपास घूमी, अपने कमरे की तरफ बढ़ी , किंतु उसे किसी की नाराजगी का एहसास तो हो रहा था। रसोई घर में, बर्तनों की उठा -पटक हो रही थी यानी वह प्रेत क्रोध में बर्तनों को फेंक रहा था। अपना क्रोध उन पर निकाल रहा था। अपने कमरे में भी जाकर उसने देखा , उसने देखा पहले की तरह दरवाजा भी बंद नहीं हुआ। बहुत सोचने के पश्चात उसे यह लगा ,शायद उस प्रेत को अंदाजा हो गया है ,उसका दाना -पानी उठने वाला है। यह सोचकर प्रीति ने गहरी सांस ली।
अब उसे घर में, उसे प्रेत के होने का और कोई भी एहसास नहीं हो रहा था , वह निश्चिंत होकर लेटने ही वाली थी , अभी इतनी लंबी बीमारी से उठी है इसीलिए जल्दी थकावट हो जाती है। तभी उसे नीचे फिर से कुछ उठापटक की आवाज सुनाई दी , वह सीढ़ियों से नीचे आई , तो क्या देखती है? उसकी सास अपने पलंग से, दो फीट ऊंचे हवा में, लटकी हुई है। यह देखकर प्रीति फिर आगे बढ़ी और बोली -मम्मी जी ! आप ऊपर कैसे पहुंच गईं ? प्रीति उन्हें नीचे उतारने का प्रयास करती है , किंतु वह और ऊपर हो जाती हैं। प्रयास करते-करते वह थक गई।
अब वह इतना तो समझ ही गई थी ,कि वह प्रेत उसे तंग न करके, उसकी सास से बदला ले रहा है। या उसको डराने के लिए उसकी सास को माध्यम बनाया है। प्रीति चिल्लाई-आखिर तुम चाहते क्या हो ,क्यों हमारी जान के पीछे पड़े हो ? तुम्हें मुझसे बदला लेना है तो मुझे बदल लो , इन बेचारी को , इस उम्र में क्यों तंग कर रहे हो ? प्रीति को तभी प्रभा का स्मरण हो गया और उसने प्रभा के घर पर फोन कर दिया।
कुछ देर ,घंटी बजने के पश्चात, प्रभा ने फोन उठाया -हेलो !
हेलो उधर से घबराई सी आवाज आई, मैं प्रीति बोल रही हूं , जब से तुम गई हो ,न जाने मेरे घर में क्या हो गया है ? मेरी सास पहले तो अपना सर दीवार पर मारती है, और अब हवा में झूल रही हैं। मैं उन्हें कैसे बचाऊं ?
प्रभा कुछ सोच कर बोली -और तुम कैसी हो ? तुम तो ठीक हो। बाहर आ पा रही हो
हां, मैं ठीक हूं , बाहर आई हूं ,तभी तो तुम्हें फोन कर रही हूं ,प्रीति बेचैनी से बोली।
क्या ?अभी भी कुछ नहीं समझीं।
क्या नहीं समझी ?
यही कि वह तुम्हें नुकसान नहीं पहुंच पा रहा है , इसलिए तुम्हारी सास को कष्ट दे रहा है , तुम्हारे पास' यंत्र' तो है ना......
प्रभा की बात सुनकर, प्रीति को जैसे धक्का सा लगा ,ओह ! इस कारण वह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा है ,इसी कारण से नाराज है। तब उसने अपने कपड़े में बंधे यंत्र की तरफ देखा ,वह इसे तो भूल ही गई थी, किंतु अब अपनी सास को कैसे बचाएं ? यही प्रश्न उसने प्रभा से किया।
घबराने की कोई आवश्यकता नहीं, जो ईश्वर करता है अच्छे के लिए ही करता है ,मैं आते समय अपनी वह पुड़िया, तुम्हारे कमरे में ही भूल आई हूं। तुम उस पुड़िया को। उठाकर लाओ ! और उसे अपनी सास के आसपास हवा में उड़ा दो। जो थोड़ी बहुत भभूत बचती है , वह उनके पलंग के चारों तरफ घुमा देना वे सुरक्षित हो जाएंगी , कल हम आ ही रहे हैं।
यही सब बातें , उस प्रेत ने भी सुन लीं। उसे बहुत क्रोध आया , उसने सोचा , प्रीति को ऊपर ही नहीं जाने देना है , इसलिए वह सीढ़ियों पर सामान फेंकने लगा। तब प्रीति ने सोचा -अपना यंत्र यहीं रख देती हूं ताकि मेरी सास को कोई हानि न पहुंचा सके। एक ही यंत्र था या तो स्वयं अपने पास रखें या अपनी सास के पास रखें ,सास से उस प्रेत की कोई दुश्मनी नहीं है। किंतु प्रीति को परेशान करने के लिए, प्रेत ने सास का सहारा लिया। अपनी सास को इसी तरह हवा में लटकते हुए छोड़कर, प्रीति सीढ़ियों की तरफ चल दी , किंतु प्रेत ने उन सीढ़ियों पर , सामान पटकने शुरू कर दिए , वह घर के समान को उठाकर, हवा में लाता और सीढ़ियों पर पटक देता। प्रीति दो सीढ़ी भी नहीं चढ़ पाई। वह नहीं चाहता था, कि वह भभूत उठाकर लाये। प्रीति ने कई बार चढ़ने का प्रयास किया किंतु सामान टूटता रहा। अंत में थक कर , प्रति अपनी सास के बिस्तर पर आ गई, और खड़े होकर उसने अपनी सास को पकड़ने का प्रयास किया ,ताकि वह उन्हें बिस्तर पर ठीक से लिटा सके। तभी प्रीति को एक उपाय सूझा , उसने अपने यंत्र बंधा कपड़ा , अपनी सास की तरफ उछाल दिया , जैसे ही यंत्र ने, उनके तन को छुआ , वह एकदम से नीचे गिरीं। प्रीति भी, उस यंत्र से दूर नहीं जाना चाहती थी। वह इतनी तेजी से बिस्तर पर गिरी थीं , न जाने कहां चोट आई होगी ? किंतु यह तो उनकी बेहोशी टूटने के बाद ही पता चलेगा।

