Shrapit kahaniyan [part 100]

सुबोध से संपूर्ण कहानी सुनने के पश्चात  प्रभा,मालिनी जी से मिलने जाती है , और उसके मन में उठ रहे कुछ सवालों के प्रश्न चाहती है। तब मालिनी जी उसे बताती हैं- यह जरूरी नहीं कि दीपशिखा रही ही ना हो, सकता है, अपनी शक्तियों के बल पर वो बच गई हो। इस समस्या के समाधान के लिए, तुम्हें दीपशिखा की  कोई तस्वीर या कोई वस्तु लानी होगी। तब वह ''तनेजा परिवार ''की जानकारी प्रभा से लेना चाहती हैं , जब प्रभा उन्हें बताती है, कि उस घर में उसके साथ क्या हुआ ? 

प्रभा की बातें ,सुनकर वह आश्चर्यचकित रह जाती हैं और कहती हैं -यह बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताई ? तब वह बताती हैं , कि'' तनेजा परिवार'' के घर के अंदर एक प्रेत है , जो उस घर की बहू और पोते  के लिए भेजा गया था। लौटते समय प्रभा के हाथ में ,एक पुड़िया देती हैं और कहती हैं -जब कभी भी ''तनेजा परिवार'' में जाना हो तो मुझ मुझे फोन कर लेना। 

सुबोध ! क्या तुम मेरे साथ चल रहे हो ?


 नहीं, आज मुझे समय नहीं है , तुम अपने आप चली जाओ !अब तो मैंने उस परिवार से तुम्हारी जान -पहचान करा दी है , अब तुम स्वयं भी जा सकती हो। सुबोध ने अपनी मजबूरी जतलाई। 

अच्छा एक बात समझ में नहीं आई , उसे घटना के पश्चात, शेफाली का क्या हुआ ? उसका तो तुमने कोई जिक्र ही नहीं किया। 

कैसे करता ? जैसे ही दीपशिखा का अंत हुआ , शेफाली हमारी नजरों से ओझल हो चुकी थी , न ही  उसने हमसे कुछ कहा, शायद, अपना कार्य पूर्ण करके चली गई, शायद, इसी कार्य के लिए ही वापस आई थी।

 किंतु उसे ''श्राप से मुक्ति'' तो नहीं मिली होगी , आज कल जैसे समय चल रहा है , उसको देखते हुए ,दस  प्रेमी जोड़े मिलाना बहुत मुश्किल है। 

हां वह तो है , शायद वह हमें, कभी दिखलाई दे जाए , तब हम उसकी सहायता कर सकेंगे। 

वह एक सच्ची और अद्भुत शक्ति थी , ऐसी शक्तियां हर किसी को नजर नहीं आतीं। इसके लिए भी मेरे पास एक उपाय है किंतु पहले मुझे'' तनेजा परिवार'' से मिलने जाना है , आकर तब बताऊंगी। तैयार होते हुए पूछती  है तुम्हारी उस कहानी की' कात्यायनी 'का क्या हुआ ?

अभी वह शांत है ,मैंने कहानी बीच में ही रोक दी। 

नहीं ,उसे इस तरह मध्य में रोकना नहीं है , उसे मुक्ति देनी है , उसे अपने गुनहगारों से बदला लेना है , जब तक उसका बदला पूर्ण  नहीं हो जाता उसे मुक्ति नहीं मिलेगी। तुम्हारी कहानी के कारण, मरने के पश्चात भी हो जीवित है ,यानी उसकी आत्मा अभी भी भटक रही है। 

यह तुम इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकती हो ?

मैं उसे अस्पताल में गई थी , जहां पर उसका शरीर था , किंतु अचानक ही वह वहां से गायब हो गया। तुम्हारी कहानी पूर्ण होते ही, वह अपने स्थान पर पुनः आ जाएगी , कहते हुए ,वह बाहर निकल गई। जब वह'  तनेजा' परिवार के द्वार पर पहुंची ,तब उसे एक तेज झटका लगा ,जैसे कोई उसे देखते ही परेशान हो गया है और वो नहीं चाहता कि प्रभा उस घर में कदम भी रखे ,किन्तु मालिनी जी के कहेनुसार , प्रभा ने , यहां आने से पहले उन्हें फोन कर लिया था , तब उन्होंने उसे बताया- उन्होंने जो पुड़िया उसे दी है , उसको अपने साथ लेकर जाना। उसके अंदर अभिमंत्रित भभूत है , और उससे पहले अपने माथे पर भी, उसका टीका लगाना, यह कार्य करते हुए ,तुम्हें कोई टोके नहीं ,इसीलिए प्रभा ने सुबोध से बात करते हुए चुपचाप टीका लगाया और पुड़िया अपनी पर्स की जेब में रखी और बाहर निकल गई। जिसका असर उसे इस घर के द्वार पर ही देखने को मिल गया। यदि उसने यह भभूत  न लगाई  होती , तो शायद ,वह प्रेत उसे इस द्वार पर कदम भी न रखना देता ,न जाने उसका क्या हाल करता ? 

करण की मम्मी जी, ने ही दरवाजा खोला -पहले से कमजोर नजर आ रही थीं , शायद अपनी लक्ष्य की पूर्ति के लिए वह उनके शरीर का भी इस्तेमाल कर रहा था। अब बुजुर्ग महिला तन , शायद प्रेत की शक्ति  को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थीं। अपनी सुरक्षा के लिए, प्रभा ने दरवाजे पर ही पुड़िया खोलकर, अपने हाथ में उस भभूत को ले लिया था, और जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रही थी वैसे-वैसे ही , उसकी लाइन बनाती जा रही थी। घर में अभी कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ था। आप ठीक तो हैं , काफी कमजोर लग रही हैं प्रभा ने प्रश्न किया।  

हां जी ,हां जी ! ठीक ही हूं , किंतु न जाने कैसे ?आजकल थकावट बहुत महसूस हो रही है। 

वह मैं समझ सकती हूं , प्रीति कैसी है,अब उसकी तबीयत कैसी है ?

क्या बताएं ? अपने कमरे में तो स्वस्थ नजर आती है , बाहर आते ही न जाने उसे क्या हो जाता है ? यह बीमारी ,यह बुढ़ापा, इस घर की दोहरी जिम्मेदारी , अब इस सबसे में थक चुकी हूं , धीरे-धीरे उनका क्रोध बढ़ने लगा। प्रभा समझ रही थी ,वह उन पर हावी होने का प्रयास कर रहा है , तभी प्रभा ने अपना हाथ , आगे बढ़कर उनका हाथ, अपने हाथ में ले लिया , जिसमें पहले से ही भभूत लगी हुई थी। हाथ मिलाते ही , वह धीरे-धीरे शांत होने लगीं।

 तब प्रभा उनसे उनकी बहू प्रीति से मिलने की स्वीकृति लेकर , प्रीति के कमरे में गई।  प्रीति अपने कमरे में शांत, बैठी हुई थी।  प्रभा को देखते ही , बिस्तर से उठ खड़ी हुई। यह देखकर प्रभा को अच्छा लगा - कि अब वह पहले से स्वस्थ है।

 प्रभा ने प्रीति से पूछा ,तुम अपने कमरे से बाहर क्यों नहीं निकल पा रही हो? क्या तुम्हें कुछ महसूस होता है ?

हां, जैसे ही मैं अपने कमरे से बाहर निकलने का प्रयास करती हूं ,मुझे ऐसा लगता है ,जैसे कोई मुझे बाहर की तरफ खींच रहा है और मेरी तबीयत बिगड़ रही है। एक दिन तो, उसने मेरे कमरे का दरवाजा ही बंद कर दिया। कोई ऐसी शक्ति इस घर में है ,जो मुझे मार देना चाहती है। पहले तो उसने मुझे सीढ़ियों  से गिरा दिया। वहां संभली , कुछ आगे चलकर न जाने कहां से, पानी आ गया और मैं उस पर फिसलती  चली गई। मुझे लग रहा था ,जैसे कोई मेरी जान के पीछे पड़ा है , मैं अपने कमरे की तरफ भागी , कमरे का दरवाजा बंद हो गया ,लेकिन मैंने उसका कुंडा अपने हाथों से नहीं छोड़ा। एक तरफ से मेरा कोई हाथ खींच रहा था, दूसरे हाथ से मैंने उस कुंदे को पकड़ा हुआ था। ऐसा लग रहा था ,जैसे मेरे हाथ ,मेरे तन से अलग हो जाएंगे। मैं भगवान से प्रार्थना कर रही थी , हे भगवान ! मुझे इस दुष्ट से बचा लो ! न जाने मेरे कौन से पुण्य कर्म थे , या फिर ईश्वर ने मेरी प्रार्थना सुन ली, अचानक से दरवाजा खुला और मैं इस कमरे में आ गई। तब से मुझे इस कमरे से बाहर निकलने में डर लगता है। 

प्रभा ने उसकी बात सुनकर पूछा -क्या तुम्हें याद है , मैं तुम्हारे तकिए के नीचे एक यंत्र रखकर गई थी , या तुम उसे भूल गईं। 



तब कुछ सोचते हुए प्रीति बोली -उस समय मेरी तबीयत बहुत खराब थी , किंतु मुझे लगता है ,शायद तभी से मेरी तबीयत सुधारनी आरंभ हुई थी। उस यंत्र का तो मुझे स्मरण ही नहीं रहा ,कहते हुए उसने अपने बिस्तर के पास जाकर , तकिए को उठाया। सच में ही वहां एक यंत्र था , तब प्रभा ने उसे ,मालिनी जी से मिलने वाली , उनके द्वारा यंत्र भेजे जाने वाली संपूर्ण बातें प्रीति को बतलाई। उन बातों को सुनकर प्रीति को बहुत ही आश्चर्य हुआ , क्या ऐसा भी कुछ हो सकता है ? उसने बड़े ही श्रद्धा भाव से, उसे यंत्र को अपने हाथ में ले लिया। तब प्रभा ने कहा- इस यंत्र को , तुम जैसे भी चाहो , अपने पास रख सकती हो , इसके कारण तुम्हें कुछ नहीं होगा। किंतु मैं एक बात पूछना चाहती हूं , इस बीमारी को जड़ से ही समाप्त करना होगा , वरना तुम जीवन में आगे नहीं बढ़ पाओगी। तब प्रभा ने उसे इस घर में एक प्रेत के रहने की बात बतला दी। और उसके बेटे की मौत का कारण भी उसे बतला दिया।

 उन बातों को सुनकर, प्रीति में आत्मविश्वास जगा , मालिनी जी के प्रति विश्वास भाव जगा और उसने सहर्ष  मालिनी जी को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। वह भी जानना चाहती थी, किसने उस प्रेत को उसके बेटे और उसे मारने के लिए भेजा है। वह क्यों उनका दुश्मन बना हुआ है ? 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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