देता हूँ ,तुमको आज मैं ,ये पुष्प गुच्छ उपहार !
तुम जब से जीवन में आईं ,बदला है ,व्यवहार !
आज खड़ा, देखता हूँ मैं ,अपना आचार -विचार !
जब तक तुम जीवन में न थीं ,पहले रहा बेकार !
तुम्हारे आते ही ,इस जीवन में बढ़ा सदाचार !
रहता था ,थोड़ा लापरवाह ! बनाया ज़िम्मेदार !
तुम मेरी शिक्षक , नचाती रहीं अपने इशारों पर !
जब से तुम जीवन में आई, हुए मेरे शुद्ध विचार !
इधर -उधर तनिक न झांक सकूं ,वरना पड़ती मार !
सहनशील बना ,विद्रोह का तनिक न आता विचार !
कैसे उठना ,कैसे बैठना?सिखाया तुमने, कैसा अत्याचार !
तुम मेरे जीवन की शिक्षक बन,शिक्षित करो हर बार !
नमन तुम्हें है ,हे नारी ! इस शिक्षा के उदगार हैं ,चार !
तुम मेरी शिक्षक ,प्रेरणा मेरी ,मिलता रहे ,तुमसे प्यार !
धन्य है !नारी ,सिखाया जीवन जीना सहकर अत्याचार !
उसने अपने साहस ,प्रेम ,त्याग से रचा ,समस्त संसार !
