बरखा ने जानबूझकर , विशाल की शिकायत उसके दादी -बाबा से की। किंतु उसने कहानी को तो बिल्कुल ही पलट दिया। हुआ ,क्या था और उसने क्या बताया ? मन ही मन उसकी होशियारी पर वह खुश भी हो रहा था। विशाल की दादी उसे डांटे जा रही थी किंतु वह तो उन यादों में खोया हुआ था , जो अभी कुछ देर पहले, उसके साथ घटित हुआ। जब विशाल की दादी उसे डांट रही थी ,तब बरखा मन ही मन खुश हो रही थी , और आंखों के इशारे से विशाल को बतलाया ,' मुझ से टक्कर लेने का अंजाम!'' अपनी अप्रत्यक्ष मूंछें मरोड़ती हुई , बड़ी अदा से उस कमरे से बाहर निकली। विशाल पर दादी की डांट का कोई असर नहीं हुआ , वह जानता था -दादी, सच में ही नाराज नहीं हुई हैं ,वह बरखा को दिखाने के लिए ऐसे ही ,नाराज होने का अभिनय कर रही हैं। वह अपने पोते से कभी नाराज नहीं हो सकतीं।
विशाल कमरे से उठकर ,बरखा के पास गया और उसने भी घबराने का अभिनय करते हुए ,कहा - तुमने मुझे डांट पड़वाई है ,अब तुम्हें छोडूंगा नहीं ,जाने दो ! दादी को ,तब तुम्हें देखता हूँ।
बरखा बोली -देख लेना ,तब भी ऐसे ही डांट पड़नेवाली है ,मैंने भी कोई चूड़ियां नहीं पहनी हैं।
विशाल अब उसके स्पर्श को, उसके साथ के लिए ,कोई न कोई नया बहाना चाह रहा था ,बरखा भी समझ नहीं पा रही थी कि उसे क्या हो रहा है ? विशाल उसे अच्छा तो लग रहा था ,उसका व्यवहार भी सहज था। इस कारण बरखा अपने आपको ही भूलने लगी ,कि वो इस घर की नौकरानी है। जबसे धनंजय जी ने ,ऐसी ही लड़की के लिए, अपने पोते से विवाह की बात ,अपनी पत्नी से की तबसे ,बरखा को लगने लगा ,जैसे ये उसका अपना ही घर है। आज जो विशाल के साथ ,चुहलबाज़ी ,हंसी -मज़ाक हुआ ,उससे बरखा के मन में ,अजीब सी गुदगुदाहट हो रही थी ,विशाल को बार -बार देखने और छेड़ने की लालसा को ,वो भी नहीं त्याग पा रही थी। बिस्तर पर जब दोनों हाथापाई कर रहे थे ,उस दृश्य को स्मरण कर ,मन ही मन मुस्कुराकर शर्मा जाती। उधर विशाल की हालत भी कुछ ऐसी ही थी ,बरखा का यौवन जैसे उसे अपने करीब आने का निमन्त्रण दे रहा था। दोनों का साथ ,कितना सुखद था ?
बरखा जब भी उसके करीब से होकर गुजरती ,उसके गाल स्वतः ही लाल हो जाते। अपने घर रात्रि में चली जाती किन्तु अब उसका मन अपने घर ,रात्रि में जाने का भी नहीं करता ,लगता यही उसका घर है ,इन्हीं लोगों के साथ रहे और विशाल की बाँहों के झूले में झूलती रहे। किन्तु ऐसा सम्भव नहीं था ,अब उन्हें इस तरह अकेले रहने का मौका भी नहीं मिल पा रहा था किन्तु तड़प दोनों में बराबर थी। जब अपने घर जाती तब उसे अपनी गरीबी का एहसास तो होता किन्तु अब उसे झल्लाहट भी होने लगी। जिस उद्देश्य से उसने कोठी में काम करने का बीड़ा उठाया था ,वो अब डगमगाने लगा। अपने में खोई -खोई से रहने लगी ,कुछ समझ नहीं आ रहा था। एक प्यासी नदी ,अपने सागर से मिलने को उतावली हो रही थी। सागर भी बांहें फैलाये उसकी प्रतीक्षा में था। दोनों ही ,अपनी सीमा को त्यागकर एक दूसरे में समा जाने को आतुर हो रहे थे।एक -दूसरे से नोक -झोंक तो करते रहते किन्तु उससे आगे नहीं बढ़ पा रहे थे।
श्रीमान ,श्रीमती धनंजय शायद ,बच्चों की उम्र को देखते हुए , उनके व्यवहार को देखते हुए शायद ,थोड़ा सतर्क हो गए थे। अनुभवी व्यक्ति थे , क्या बच्चों के व्यवहार को समझेंगे नहीं ? कि दोनों किस तरह एक दूसरे से बातचीत करते हैं , एक दूसरे पर व्यंग करते हैं , दोनों ही लगभग हम उम्र हैं , यह होना स्वाभाविक भी है। विशाल से कहते -'हमारे ही कमरे में सो जाओ !अकेले मन नहीं लगेगा। रात्रि में बरखा अपने घर चली जाती थी।'
एक दिन विशाल के दादाजी ने उससे पूछ ही लिया -बेटा !अब तुम्हें यहां आए हुए, पंद्रह दिन हो गए हैं , तुम्हारी छुट्टियां कब खत्म होंगीं ?
उनके इतना कहते ही, विशाल तो जैसे आसमान से नीचे गिर पड़ा , कल्पना की दुनिया से बाहर निकल आया , उसे लगा ,जैसे वह कोई सपना देख रहा था। फिर भी लापरवाही से बोला -मेरा कॉलेज है, दादा जी !चला जाऊंगा, पढ़ाई तो मुझे ही करनी है। कहते हुए, वह थोड़ा अनमना सा हो गया। अचानक उसका दिल उचट गया और बोला -दादाजी !चला ही जाता हूं ,कल ही चला जाऊंगा। कहते हुए ,अपने कमरे में चला गया।
कॉफी देने के बहाने,बरखा भी उसके पीछे ही चली आयी और बोली -इतनी जल्दी चले जाएंगे।
और क्या करना है ?जाना तो है ही ,सोचता हूँ ,देर करने से क्या लाभ !
आप क्या किसी लाभ के लिए रुके थे ? बरखा निराश स्वर में बोली।
बरखा का उदास चेहरा देखकर ,विशाल बोला -ऐ ,तुम क्यों उदास हो रही हो ?
पता नहीं, कहते हुए बरखा रो दी उसे रोते देख ,विशाल ने कॉफी का मग मेज पर रखा और उसे खींचकर अपने गले लगा लिया ,पगली ! रो क्यों रही हो ? मेरे दिल का भी तो यही हाल है, इसीलिए जा रहा हूँ ,तुम तो रो दोगी ,मैं तो किसी से कह भी नहीं सकता। तब बरखा का चेहरा अपनी हथेलियों में भरकर बोला -क्या मुझसे प्यार करती हो ?
बरखा ने अपनी आँखें मूँद लीं ,और अपनी गर्दन हाँ में हिलाई ,विशाल ने उसके गाल पर बहते आंसुओं को चूमा और उसके होंठो पर एक चुंबन जड़ दिया ,उसे अब ऐसा एहसास हो रहा था ,जैसे बरखा अब उसकी है ,उसकी अमानत उसी के लिए है ,उसमें स्वतः ही अधिकार की भावना आ गयी और ये अधिकार उसे बरखा ने स्वयं ही दे दिया। जाना तो मुझे है ही ,तुम कहो ! तो आज की रात्रि रुक जाऊँ ! कहते हुए ,बरखा की आँखों में झाँका।
किन्तु मैं तो यहाँ नहीं होऊंगी।
जब सब सो जाएँ ,तुम मेरे पास आ जाना ,मैं दरवाजा खोल दूंगा।
किन्तु तुम तो ,दादाजी के साथ सोते हो।
आज उनसे कह दूंगा ,मुझे नींद नहीं आ रही कहकर अपने कमरे में चला आऊंगा।
दो प्रेमी अपने प्रेम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए ,कैसे झूठ का सहारा ले रहे हैं ?अपने प्रेम को पाने के लिए ,किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
क्या दोनों मिल पाएंगे ?दोनों के प्रेम का अंजाम क्या होगा ?बरखा किस कारण से ''जेल ''आती है ,यदि वो कह रही है ,उसने कत्ल नहीं किया , तब कत्ल किसने किसका किया ? तब बरखा ''जेल ''में क्यों है ?क्या उस इंसान का पता चल पाया ,जो जेल से ही लड़कियों को गायब कर रहा है ,क्या सत्तो का शक़ सही है ?जानने के लिए ,पढ़ते रहिये -जेल २

