Jail 2 [part 27]

दौड़ो !दौड़ो ! भागो ,पकड़ो ! वह जा रहा है, एक कैदी के शोर मचाते ही , अन्य कैदी भी सतर्क हो गए , एक परछाई ,जेल के  उन बल्बों की रौशनी में ,कभी छोटी ,कभी मोटी और कभी पतली दिखाई देती है । वह परछाई तीव्र गति से भाग रही थी। कुछ कैदी नींद में थे, कुछ ऊंघ  रहे थे। इस शोर को सुनकर ,कुछ कैदी बड़बड़ाने लगे -क्या हो रहा है ?इस जेल में ! दिनभर काम करते हैं ,रात्रि को भी आराम नहीं।

 तुम्हें आराम की पड़ी है ,बुढ़ऊ ! देखो ! जेल में, कुछ तो हो रहा है , उसके साथ का कैदी बोला,शोर मच रहा है मुझे लगता है ,शायद, किसी कैदी ने भागने की कोशिश की होगी। 

अब जेल में भी घटनाएं होने लगीं , जेल से भागना कोई नई बात नहीं है। इस पिंजरे में रहना ही, कौन चाहता है ? 

तुम्हारी इतनी उम्र हो गई ?क्या काका ! तुमने कभी भगाने का प्रयास नहीं किया ?

जब उम्र थी, परिवार से मोह था, तो भागता था। 



क्या सफलता नहीं मिली ?

सफलता तो मिली, किंतु परिवार से मोह नहीं रहा , मेरे जेल जाते ही, सब बदल गए , मैं सही हूं या गलत हूं यह भी जानने का प्रयास नहीं किया। उनके हिसाब से तो मैंने , उनकी नाक काट दी थी। उस घर में पहुंच कर भी मुझे वापस ही आना पड़ा , आए दिन, ताने सुनने को मिलते, मुझ पर एहसान दिखाते , कि उन्होंने मुझे पाल-पोसकर, बड़ा करके मुझ पर कितना बड़ा एहसान किया है ? मैं छुपता- छुपाता, धक्के खाते फिर रहा था, तब मुझे एहसास हुआ, किसलिए और किसके लिए, मैं यहां वापस आया हूं ? कोई भी तो अपना नजर नहीं आ रहा। जब शांति पूर्वक यहां रहूंगा , चैन से दो रोटी तो वहां भी मिल जाएंगीं। मेहनत तो वहां रहकर भी करनी है और यहां भी ,'' इस मोह का त्याग करके देखो ! कितना सुकून मिलता है ? इसी के वशीभूत होकर, इंसान रिश्तों  की भूल भुलैया में,भटकता रहता है।'' अपने हाथों को हिलाते हुए, बोला-'' हाथ कुछ नहीं आता ''वह मुस्कुराया। 

क्या तुम इस जेल में नहीं रहते ?इसमें तो ,आए दिन घटनाएं होती रहती हैं। अब इस उम्र में, ज्ञान की बातें झाड़ रहे हो। तुम्हें सोना है तो चुपचाप सो जाओ ! नदीम ने धिक्कारा 

घटनाएं होती तो हैं, पर हमें करना क्या है? जब जेल से बाहर थे , तब इसी तरह, अन्याय के विरुद्ध खड़े हो जाते थे , किंतु जब हमारे साथ अन्याय हुआ तो, हमारे साथ कोई नहीं खड़ा था। बाहर तो समाज और दुनियादारी का ख्याल रहता है किंतु यहां , इन पचड़ों में पड़ने से क्या होगा ? हमारी सजा कम तो नहीं हो जाएगी। सजा कम भी हो गई तो उसे क्या लाभ होगा ? बाहर जाने पर ,कोई हमारे स्वागत के लिए नहीं खड़ा है। कहकर वह बौराया सा हंसने लगा,उसकी हंसी में ,न जाने कितना दर्द छिपा था ? हंसते -हंसते उसकी आंखों में नमी आ गई। 

 हम अच्छा तो नहीं कर सकते , किंतु यह देख और सुन तो सकते हैं, कि  जेल में क्या अनर्थ हो रहा है ?

तुम्हारे देखने से क्या हो जायेगा ?दुनिया में हम होकर भी, नहीं हैं ,क्या दुनिया नहीं चल रही ?तुम देखो! मुझे नहीं देखना, यहां तो आए दिन, अनर्थ ही होता रहता है और जब पता चल जाए तो मुझे भी बता देना , कहकर वह कंबल तानकर फिर से सो गया या सोने का प्रयास करने लगा किसी को भी इस बात को जानने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। 

नदीम अपनी बैरक से बाहर निकला , और पहले से ही उपस्थित कैदियों से पूछता है- कि क्या हो गया ? 

अरे !होना क्या है ? ऐसा लगता है ,आज फिर से कोई जेल के अंदर आया है ,शायद किसी महिला कैदी को बाहर निकालने के लिए ,मैंने उसे भागते देखा है ,इसीलिए शोर मचाया। 

यहाँ खड़े शोर ही मचा रहे हो ,उसे दौड़कर पकड़ा क्यों नहीं ?

 तुम भी क्या बात करते हो ? पकड़ लेता ,अरे ! कैसे पकड़ लेता ? उसके हाथ में बंदूक, चाकू कुछ तो होगा , उस अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने, उसकी तरफ देखते हुए कहा , उसे ऐसे देख रहा था,जैसे उसने कोई अहमकपने की बात कर दी हो। 

नहीं, मेरा विचार यह, नहीं था ,मेरा कहना यह था -कि जब तुमने देखा था तभी तुम्हें पकड़ लेना चाहिए था। 

नदिम की बात से वह , अधेड़ उम्र व्यक्ति चिढ़ गया और बोला-उससे क्या बतिया रहे हो ? खुद जाकर क्यों नहीं जाकर पकड़ लेते ?

मैं तो पकड़ लूं, किंतु मुझे दिखे तो सही, मैं कोई जेल का गुंडा या दादा नहीं , उसे इमरान को और शेरू  को बुलाओ ! इस जेल के वही मालिक हैं , हम तो उनके रहमो करम पर गुजारा कर रहे हैं , नदीम भी जैसे उनकी किसी बात पर चिढ़कर बोला। 

तभी उन्हें इमरान और शेरु उन्हें आते हुए दिखलाई दिए ,नदीम बोला - शैतान का नाम लिया शैतान हाजिर !सारी रात ऐसे ही घूमते रहते हैं। 

क्या वो परछाई उन्हें नहीं दिखाई दी ,उस अधेड उम्र व्यक्ति से नदीम ने पूछा। अब ये दोनों हमसे जरूर पूछेंगे ,हम यहाँ क्या कर रहे हैं ?जो भी तुम्हारे शोर से बाहर आये थे ,सभी इन लोगों ने वापस से अपने -अपने दड़बों में भेज दिए ,अब हम भी चलते हैं ,वरना पूछेंगे -हम यहाँ क्या कर रहे हैं ?

वापस चलते -चलते भी नदीम बोला -हो सकता है ,इन्होने ही कोई कांड किया हो और वो तुमने देख  लिया।

नहीं ,मैंने दो -चार पुलिसवालों को ,उस जंगल की तरफ खोजबीन करते देखा है। 


च्चा !कुछ न कुछ या कोई न कोई तो होगा ही'' बिन आग के धुआँ नहीं होता ''सुबह, जब वो मेेडम आ जाएगी ,अपने आप ही पता चल जायेगा ,कि जेल में से कौन गायब हुआ है ?

तभी इमरान और शेरू उन दोनों के करीब आ गए और अपनी कड़क तेज स्वर में बोले -तुम दोनों बाहर क्या कर रहे हो ? 

वो बाहर शोर मच रहा था ,इसीलिए....... इससे पहले की नदीम अपना वाक्य पूर्ण करता ,उससे पहले ही शेरू बोला -तू कोई पुलिसवाला है ,या किसी ने तेरी ड्यूटी लगाई है ,जिसका जो काम है ,वो संभाल लेगा। वैसे एक बात समझ नहीं आ रही ,ये शोर मचाया किसने था ?कहीं वही तो इस ड्रामे में शामिल तो नहीं। 

अब नदीम ने ,उस अधेड़ उम्र व्यक्ति की तरफ देखा ,उसे 'काटो तो खून नहीं ',उसने नदीम की तरफ देखा ,तब नदीम बोला। हमें क्या पता ?हम तो गहरी नींद में थे ,शोर सुनकर आँख खुल गयीं तो बाहर देखने आ गए। 

अच्छा -अच्छा ,अब चलो अपनी जगह पर ,कहते हुए वो भी आगे बढ़ गए।  


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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