Jail 2[ part 16]

बरखा ,अमृता जी को अपनी कहानी सुना रही है, वह'' गरीबी से नीचे की रेखा '' वाले परिवार से संबंधित है। किस तरह वो , नन्ही सी उमर में,गरीबी में रहकर अपने बहन -भाइयों को पाल रही थी।  उसके पश्चात  एक सरकारी पाठशाला में दाखिला ले लेती है और उस सरकारी पाठशाला में पढ़ने जाती है किन्तु वहां पर उसकी कक्षा के हिसाब से उसकी उम्र ज्यादा थी क्योंकि उसे कम उम्र में नहीं वरन बड़ी उम्र में पढ़ने भेजा गया था। जब तक वह आठवीं में आई ,पंद्रह बरस की हो गई थी। युवावस्था की पहली सीढ़ी चढ़ रही थी ,उम्र का वो पड़ाव ,जिसमें बच्चे के कदम डगमगाने का भय रहता है ,किंतु ऐसे समय में भी ,उसने अपने को संभाला। उसके अध्यापक ने, उसके साथ अश्लील हरकतें की , किसके कारण उसने , पाठशाला में जाना ही छोड़ दिया।  उसके छोटे भाई बहन भाइयों की शिक्षा में किसी प्रकार का व्यवधान ना पड़े इसलिए उसके घर वालों को भी कुछ नहीं बताया।


 थोड़ा बहुत तो पढ़ना- लिखना सीख ही गई थी ,एक दिन उसने देखा- कि पड़ोस की एक महिला किसी के घर में काम करके आठ सौ रूपये कमा लेती है , तब उसने सोचा ,यदि मैं भी , इसी तरह का कोई कार्य  पकड़ लेती हूं ,तो मैं भी ,अच्छा पैसा अर्जित कर सकती हूं। उस पैसे से मैं अपनी शिक्षा और अपने  छोटे  बहन -भाइयों की पढ़ाई में भी,सहायता कर सकती हूं। यही सब सोचते हुए ,उसने भी एक कोठी में काम करना आरंभ किया।  उस कोठी में अधेड़ उम्र के दंपति रहते थे। उनका बेटा बाहर नौकरी करता था। छोटा सा परिवार था, होशियार लड़की थी , शीघ्र ही उनके तरीके से काम करना सीख गई। कोठी की साफ - सफाई का कार्य थोड़ा अधिक था ,बाकी कार्य वह फटाफट निपटा लेती थी। वहां जाने से उसे एक लाभ और भी हुआ बड़े लोगों का रहन सहन कैसा होता है ,कैसे नई नई चीजों का उपयोग करते हैं ? बहुत सारी चीजें ,उसने व्यवहारिक रुप से सीख लीं , जो उसने अपने उस झोपड़ी जैसे छोटे घर में नहीं देखा था और न ही सीख सकती थी।

जब पहली बार ,जब उसने कोठी के अंदर कदम रखा तो उसकी आंखें चौंधिया गईं , साफ सुथरा चिकना ,पत्थर लगा घर था, दीवारों पर भी टाइल्स थीं , हर चीज करीने से सजी हुई थीं। एक- एक चीज देखकर मैं, बड़ी हैरान-परेशान सी हो रही थी , तब मैंने अपने घर का अंदाजा लगाया, कि हम कैसी जगह पर रह रहे हैं ? अभी तक तो वह उसी घर को देखकर खुश होती थी ,जिसमें उसके छोटे-छोटे तीन भाई और बहन रहते थे, उसके अपने माता-पिता थे।  उस कोठी को देखकर ,उसे एहसास हुआ कि हम किस तरह गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं ?उसने अमृता जी से बताया। 

 इंसान जिज्ञासु प्रवृत्ति का होता है, आगे बढ़ने की लालसा भी रहती है, जब तक उसने  उस कोठी में ,उन लोगों का रहन -सहन नहीं देखा था , तब तक उसे अपना घर ही स्वर्ग नजर आता था। किंतु कोठी को देख कर ,उसे अपनी गरीबी का एहसास हो गया। उस कोठी में ,उसने मन लगाकर कार्य किया। वे लोग उससे प्रसन्न हो गए और उस पर विश्वास भी करने लगे। समय पर उसका वेतन दे देते, अब बरखा का लालच थोड़ा और बढा। उसका कार्य दो -तीन घंटे में समाप्त हो जाता था , तब उसने सोचा -क्यों न , एक घर और पकड़ लिया जाए और आमदनी बढ़ जाएगी। ऐसे बड़े घरों में काम करके ,उसे नई नई चीजों की जानकारी होने लगी। उसकी अपनी इच्छाएं भी बढ़ने लगीं  वह चाहती थी- कि मैं और मेरा परिवार भी इसी तरह से रहे , मेहनत करना चाहती थी किन्तु बेईमान नहीं थी। दो घरों में काम करने से उसको अब समय कम बचने लगा। उसने अपनी व्यक्तिगत शिक्षा जारी रखी। 

यह बड़े घर वाले कभी-कभी दयालु भी होते हैं , आदमी का अपना -अपना स्वभाव है किन्तु इस घर की आंटी जी ने उसके लिए , पुरानी किताबों से भी सहायता की , और उसका दाखिला करवाने में भी, उसकी सहायता की , वह जानती थीं  यह लड़की मेहनती और होशियार है। बरखा भी दिल लगाकर, उनके घर का कार्य करती थी। ज्यादातर समय  उनके घर ही बीतता , उस दूसरे घर से काम करके भी ,उनके घर ही वापस आ जाती थी , इससे उनका अकेलापन दूर हो जाता था। कई बार तो ऐसा होता था , किसी तीज त्योहार पर वह अपने घर ही नहीं जा पाती  थी ,रात्रि में वही सो जाती थी। जिसके उसे अलग से पैसे मिलते थे , खाना-पीना अलग , ऐसे स्थान पर रहने के कारण ,अब उसका मन अपने घर में नहीं लगता था। वहां जाने से उसे अपनी गरीबी का एहसास होता था। उसकी उमंगे और उसके सपने भी बढ़ने लगे थे। समय बीतता गया, उसने दसवीं की कक्षा उत्तीर्ण कर ली। अच्छा इंसान ,अच्छा खाना -पीना ,अच्छा रहन -सहन , ऊपर से उम्र का तकाजा , सत्रह  बरस की उम्र में ही वह , सुंदरता की मूरत लगने लगी थी , सौंदर्य उसमें कूट-कूट कर भरा था। उसे देखकर कोई कह नहीं सकता था कि वह एक झोपड़पट्टी की पैदाइश है , नयन ,नक्श तो कुदरत ने घड़कर भेजा था। इतना +कार्य  करने के बावजूद भी ,उसकी त्वचा स्निग्ध थी। 



इन दो वर्षों में, उनका पोता पहली बार अपने दादी -बाबा से मिलने आया था , वह कॉलेज में पढ़ता था , देखने में बड़ा ही सजीला नौजवान था , उसे देखते ही बरखा के मन में आया, मेरा भी ,सपनों का राजकुमार ऐसा ही होना चाहिए। अब तो बरखा के पैरों में जैसे पंख  लग गए थे, गृह कार्य में तो वह पहले से ही ,पारंगत हो गई थी। सभी कार्य अच्छे से संभालती थी। विशाल की दृष्टि पहले तो उस पर ,एक कामवाली के तौर पर गई , किंतु जब उसने बार-बार अपने इर्द-गिर्द उसे घूमते देखा ,उसकी नजरें भी बरखा को ढूंढने लगीं।उसकी सुंदरता उसका व्यवहार उसे अपनी ओर आकर्षित करने लगे।  दोनों ही ,उम्र के उस पड़ाव पर थे ,जहाँ समान उम्र वाले लड़के -लड़की का एक -दूसरे की तरफ आकर्षित होना स्वाभाविक था। 

एक दिन तो ,उन दोनों को साथ देखकर' मिस्टर धनंजय 'अपनी पत्नी से कहते हैं -काश ! कि यह लड़की किसी अच्छे परिवार से होती, तब हम दोनों की शादी,बड़े धूमधाम से कर देते, यह बात विशाल और बरखा ने भी सुनी , दोनों ने आंखों ही आंखों में एक दूसरे को देखा , बरखा ने विशाल को अपनी तरफ देखते देखा उसे यह देखकर शर्म आ गई  और वहां से उठकर चली  गई किंतु तुरंत ही उसे अपनी गरीबी का एहसास उसकी जिंदगी में जैसे कड़वाहट सी घोल गया। आज तक उसे अपने गरीब होने का इतना एहसास नहीं हुआ था जितना आज हो रहा है किंतु आदमी का मन बेईमान होता है , उसका मन भी बेईमान हो उठा , मन ही मन सोचने लगी - यदि मेरा विशाल से विवाह हो जाता है ,तो मैं भी ,अच्छे परिवार में ही शामिल हो जाऊंगी। इसमें बुराई ही क्या है ?

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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