मैंने अपनी तरफ से ,उसके पिता से कहा तो है , क्या हालत है इन लोगों की, कैसे रहते हैं ?इतनी गंदी और बदबूदार जगह में। धनंजय जी ,अपने जूते और पैरों को धोते हुए अपनी पत्नी से बोले। जूते और पैरों को इतना रगड़कर धो रहे थे ,ताकि वहां की मिटटी का एक भी कण उनके जूतों में न रह जाये ,इसी कारण बाहर ही बगीचे के समीप नल पर ही सफाई कर रहे थे। घर के अंदर नहीं गए।
तब उसके पिता ने क्या कहा ? उत्सुकता पूर्वक उन्होंने पूछा।
उसका क्या कहना है ? लालची लोग हैं ,जहां से चार पैसे मिल जाएंगे, अपना लाभ देखेंगे , इन्हें ही क्या ?बहू बेटियों की इज्जत का रहता है , उसी गली में, मुझे एक व्यक्ति ने बताया-कि यहां बेटियों का विवाह नहीं होता , जो जितना ज्यादा पैसा दे देता है ,वह ले जाता है। फिर इन्हें उससे कोई मतलब नहीं रहता ,वह चाहे उससे विवाह करें या फिर किसी और जगह बेच दे। देखने में तो,वो लालची ही लग रहा था।
लालच बढे भी, क्यों न...... अब उसने देखा होगा ,इतनी बड़ी कोठी का मालिक उससे मिलने आया है , बात अवश्य ही कुछ होगी।
अपनी पत्नी की बात सुनकर ,धनंजय जी झुनझुला गए और बोले -बात क्या होनी है ? हमने तो, उससे सिर्फ उसकी बेटी के विवाह की बात की है , जिससे उसे लगे कि हम लोग उसकी बेटी का विवाह कराना चाहते हैं और उसमें उसकी सहायता भी करेंगे। पता नहीं ,तुम भी क्या कहने लगती हो ? धनंजय जी नहीं चाहते थे, कि उनकी पत्नी ,इन बातों को तेज स्वर में करें और कोई उनकी बातों का अलग ही अर्थ निकाल ले।
धनंजय जी, से बात करके प्यारेलाल अपने ,उस झोपड़ी जैसे घर में जाता है। उसकी पत्नी ने पूछा -कौन साहब थे, और क्यों मिलने आए थे ?
अपने दांतो को ,नुकीले तिनके से कुरेदते हुए , प्यारेलाल बोला - वह अपनी बरखा ,जहां काम करती है , उसी कोठी के मालिक आए थे।
क्या कह रहे थे ?
कह रहे थे -अब बरखा स्यानी हो गई है ,उसका विवाह कर दो !
क्यों, उन्हें हमारी बेटी की चिंता क्यों सताती लगी ?
वही तो मैं भी, नहीं समझ पा रहा हूं ,सोचते हुए ,प्यारेलाल बोला -कह रहे थे ,'विवाह में जितना खर्चा होगा ,वह मैं दूंगा।'
वह, इस तरह दयावान कैसे हो गए ? बिना स्वार्थ के तो आजकल कोई भी कार्य नहीं करता और यह तो विवाह में पैसा देने की बात कर रहे हैं। अवश्य ही, कोई न कोई बात तो है।
तू अपनी बेटी से ही क्यों नहीं पूछ लेती ,कि वह क्या गुल खिला रही है ?
उसे तुम कुछ ना कहो ! जी , मेरी बेटी मेहनती है , घर के सभी कार्य अच्छे से कर लेती है। तभी उसके मन में ख्याल आया , और अपने पति प्यारेलाल से बोली - क्या तुम्हें पता है ? उसके मालिक के कोई बेटा -वेटा है या नहीं, कहीं ऐसा तो नहीं , मेरी बरखा के लिए ,अपने बेटे का ही रिश्ता लेकर आए हों , मेरी बरखा ने अपनी मेहनत से उनका दिल जीत लिया हो ,तब हमारे सामने वह कुछ ना कहकर , उन्होंने उसके विवाह का इशारा किया हो।
तू भी पगली है , तू ज्यादा हवा में मत उड़ , दिन में सपने देखना बंद कर दे , वे लोग इतने पैसे वाले हैं , वो तो यहां आते हुए भी, नाक पर रुमाल रखे हुए थे। इतने बदबूदार मोहल्ले में और गरीब घर की लड़की वह क्यों ब्याह करेंगे ? क्या उन्हें लड़कियों का अकाल पड़ा है ?
वह तो ठीक है...... बरखा की मां ने गहरी सांस ली , उसका उत्साह एकदम से, शांत हो गया। बरखा का मन आजकल घर में लगता ही कहां है ? सारा दिन तो उसी कोठी में रहती है।
तभी तो मैं सोच रहा हूं , यह साहब ,उसकी इतनी चिंता क्यों कर रहे हैं ? अपनी मूंछ मरोड़ते हुए प्यारेलाल बोला।
ठीक ही तो है, यदि वह हमारी सहायता करना चाहते हैं ,तो हमें क्या आपत्ति हो सकती है ?लड़की ब्याह लायक तो हो ही गई है। ढूंढ लो ! कोई अच्छा सा लड़का।
आज जब तुम्हारी लाडली घर पर आए तो उससे पूछना , नहीं ,पूछना नहीं ,उसे बताना, प्यारेलाल ने अपने शब्दों में बदलाव किया।
उसे क्या बताना है? कि उसकी कोठी के मालिक , तुमसे मिलने आए थे।
नहीं, यह नहीं बताना है , उससे कहना -कि हमने एक लड़का ढूंढ लिया है , अब हमें ,तुम्हारा विवाह करना ही है। यदि तुम सीधे-सीधे उसके मन की बात पूछोगी तो वह बताएगी नहीं , किंतु जब उसे लगेगा उसके विवाह की तैयारियां हो रही हैं या बातचीत चल रही है ,तब वह अपने मन का भेद खोलेगी।
ठीक है, पूछ लूंगी।
अब तो बरखा का दाखिला कॉलेज में हो गया है , विशाल ने उसका दाखिला करवा दिया है , वह बहुत खुश है ,जैसा वह लोग सोच रहे हैं ,वैसा ही ,सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है। बस कुछ वर्षों की ही तो बात है ,मैं भी स्नातक हो जाऊंगी ,विशाल की पढ़ाई भी पूरी हो जाएगी ,तब हम दोनों घरवालों से बताकर, विवाह कर लेंगे। जीवन कितना सुखद और हसीन लग रहा था ?
काश !इंसान जैसा सोचता है ,वैसा ही होता रहे तो फिर दुख आए ही ना , जिंदगी इसी तरह खुशनुमा बनी रहे। किंतु होता तो वही है ,जो उसकी किस्मत में लिखा होता है। उसकी किस्मत तो पहले ही लिखी जा चुकी है। अब देखना यह है कि उसकी किस्मत विशाल से जुड़ती है या किसी और से। शाम को जब वह घर आई , तब उसकी मां ने पूछा -अभी और कितना पढ़ना चाहती हो ?
बरखा को , किसी भी विषय में कोई जानकारी नहीं थी कि उसके माता -पिता ने ,उसके लिए क्या सोच रखा है ? उसका मन बहुत ही खुश था , वह अपनी आने वाली सुंदर ,जिंदगी के सपने देख रही थी। जब मन प्रेम से सराबोर होता है , सब कुछ कितना अच्छा और हसीन होता है ? बरखा भी मुस्कुराते हुए , मां से बोली -बस दो-तीन साल और हैं और बस उसके बाद मेरी कहीं नौकरी लग जाएगी ,तब हम यहाँ नहीं रहेंगे ,और हमारी मौज ही मौज !