Jail 2 [part 20]

 बरखा परेशान थी कि इस बरसात में कैसे ?वो ,घर के अंदर जाये। एक दो बार प्रयास किया किन्तु सफलता हाथ नहीं लगी। तब उसने उस लोहे के गेट की तरफ देखा ,जो इस समय उसका ,मुँह चिढ़ा रहा था। तभी बरखा को एक तरकीब सूझी ,उसने उस गेट के डिजाइन में, जो खाली स्थान था ,उसमें अपना पैर फंसाया और उस पर चढ़ने का प्रयास करने लगी।वह इस 'गेट ''से प्रतिदिन आती जाती है ,आज तक इसकी उपयोगिता नजर नहीं आई ,न ही ,कभी उस पर ध्यान दिया किन्तु आज ,उसका महत्व भी समझ में  आ रहा है। अगर ये बंद हो जाये तो किस्मत के दरवाजे भी बंद हो सकते हैं , किन्तु बरखा भी कहाँ हार मानने  वाली थी ? वो उस गेट की आकृतियों का उपयोग करते हुए ,ऊपर चढ़ती चली गयी। ऊपर तक पहुंचकर ,कुछ देर रूककर ,चारों तरफ देखा और अब दूसरी तरफ से उतरने लगी। बरसात की बूंदें इतनी तेज, मोटी और ठंडी थीं ,ऐसा लग रहा था ,जैसे कोई बारीक़ कंकड़ मार रहा हो।भीगते हुए ,उसे लगभग आधा -पौना घंटा हुआ होगा किंतु अब उसे ठंड लगने लगी। वह धीरे-धीरे अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही थी ,सावधानी भी जरूरी थी, कहीं भी पैर फंस सकता था ,कहीं-कहीं डिजाइन में ऐसा नुकीलापन था। इंसान सावधान न हो तो , त्वचा को चीर कर रक्त बहा दे। 


इन सबसे बेपरवाह, बरखा अपनी मंजिल पर बढे जा रही थी , विशाल से मिलन की अजीब सी सिहरन थी,ये भाव आते ही मन में गुदगुदी सी होने लगी। एक जगह दुपट्टा उलझ गया और निकालते समय फट भी गया। यह सोचकर भी घबरा रही थी , यदि माँ जी उठ गई और उन्होंने पूछा -मैं इस समय क्या कर रही हूं, यहां क्यों हूं ?तब मैं उन्हें क्या जवाब दूंगी ? अब वह गेट से उतर चुकी थी, और सोचने लगी - आखिर मैं यहां कैसे आ गई ? वह क्या है ?जो मुझे यहां तक खींच लाया किंतु विशाल का स्मरण  होते ही ,वो फिर से मुस्कुरा दी ,उसके सभी प्रश्न बेमानी हो गए। सीधे उसके कमरे की तरफ भागी , पीछे के दरवाजे से अंदर गई थी ,उसके कमरे के दरवाजे पर खड़े होकर , सुकून की सांसे ले रही थी। वो निश्चिन्त सोया पड़ा था किन्तु आहट होते ही वो भी उठ गया और बरखा को देखकर आश्चर्य से बोला -तुम इस वक्त यहां !

तुमने ही तो कहा था ,मिलने के लिए। 

विशाल उसे इस तरह भीगे हुए देखकर ,बोला -तुम इतनी बरसात में ,यहाँ आई हो , देखो !जरा तुम कितनी भीग गयी हो ?और काँप भी रही हो ,आओ !अंदर...... 

कैसे आऊं ?सारा फर्श गीला हो जायेगा। 

तब क्या ऐसे ही दरवाजे पर खड़ी रहोगी ?दादी या बाबा भी जाग सकते हैं ,इस तरह खड़ी रहोगी ,तो तुम्हारी तबियत भी बिगड़ सकती है। बरखा अंदर आकर उसके पायदान पर खड़ी हो गयी ,विशाल उसे इस तरह देखकर मुस्कुराया और बोला -तुम मेरे बाथरूम में जाकर कपड़े बदल लो !

मेरे पास कपड़े नहीं हैं ,तब तुम ये मेरी शर्ट पहन लो !और मुझे अपने कपड़े दे दो !

मेरे कपड़ों का ,तुम क्या करोगे ?

पहनूंगा और देखूंगा ,मैं भीगे हुए कपड़ों में कैसा लग रहा हूँ ?कहकर हंसने लगा। 

मुँह बनाकर ,बरखा कपड़े बदलने अंदर गयी ,देखा शर्ट के दो बटन तो  टूटे हुए हैं। आवाज लगाकर कह भी नहीं सकती ,विशाल का तौलिया काफी बड़ा था ,बरखा ने वही अपने बदन पर लपेट लिया और अपने कपड़े निचोड़कर फैला दिए ,ये केेसा प्यार है ?समाज ,परिवार ,मौसम से बेपरवाह आज किसी अनजान व्यक्ति से मिलने आई है ,जो उसे अपना लग रहा है। जो आज से पंद्रह दिन पहले तक अजनबी था आज सबसे  प्यारा और विश्वसनीय हो गया है। 

तुमने अपने कपड़े बदल लिए , दरवाजे के नजदीक आकर विशाल ने पूछा। 

इस शर्ट का बटन तो टूटा हुआ है , कहते हुए, बरखा ने  थोड़ा सा दरवाजा खोला और शर्ट विशाल के आगे कर दी। 

विशाल ने शर्ट के साथ उसका हाथ पकड़कर उसे भी बाहर खींच लिया , वह उसके तौलिए में लिपटी हुई थी , बाल भीगे हुए थे ,जो लटें  उसके गालों पर और कंधों पर झूल रही थीं। उसका भीगा हुआ बदन इस रात्रि में बल्ब की रोशनी में दमक रहा था , विशाल से अपने को नियंत्रित नहीं किया गया और उसने उसकी बाहों  को खींच कर , बरखा को अपनी भुजाओं में कसकर छुपा लिया। बरखा की महक उसकी सांसों में घु ली जा रही थी। वो  प्यार, वह अपनापन, जिसकी शायद बरखा को तलाश थी, वह उसे विशाल की बाहों में नजर आ रहा था। दोनों देर तक एक दूसरे को महसूस करते रहे , सब कुछ शांत था सिर्फ धड़क रहे थे दो दिल !जो एक होने को आतुर थे। दोनों एक दूसरे की धड़कनों को महसूस कर रहे थे , जो कुछ कहना चाह रही थीं , तभी विशाल ने अपने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया और बरखा के तन से उसका तोेलिया भी  अलग कर दिया। अब संगमरमर जैसा तराशा बदन ,बल्ब  धीमी धीमी रोशनी में उसके सामने था। 

बरखा शर्म से गडी जा रही थी , उसकी नजरें झुक गईं और वह अपना तोेलिया ढूंढने लगी , ताकि इस बदन को ढक सके किंतु विशाल ने, उसे फुर्ती से अपने हाथ में ले लिया, और मुस्कुराने लगा। 

मुझे यह तोेलिया वापस दे दो , मुझे शर्म आ रही है वरना मैं तुमसे बात नहीं करूंगी बरखा प्यार भरी धमकी उसे देते हुए बोली। 



ठीक है, मैं भी अपनी शर्ट उतार देता हूं ,कहते हुए -उसने भी अपने कपड़े उतार दिए, जो बरखा शर्म से सुकड़ी हुई बैठी थी , वह विशाल से नजरे ना मिला सकी किंतु उसकी धड़कनें  कुछ और ही कह रही थीं। अपने को छुपाते हुए , वह दौड़ कर, विशाल से लिपट गई। जो बरखा अभी थोड़ी देर पहले बरसात में भीग  कर काँप रही थी , उस बदन में अब गर्मी महसूस होने लगी थी। धीरे-धीरे एक दूसरे को महसूस करते हुए बरखा बोली -सुनो !क्या तुम कल सच में चले जाओगे !

विशाल ने कोई जवाब नहीं दिया , वह तो अपनी आंखें बंद किए ,उसके अंग प्रत्यंगों को महसूस कर रहा था , आज पहली बार उसने नारी तन स्पर्श करके देखा है वह भी इतने करीब से  , बरखा की भी यही हालत थी , बरखा किसी मेमने की तरह उसके आगोश में समाई हुई थी। इससे उसे सुखानुभूति का आभास हो रहा था। दोनों की सांसे तेज हो चली थीं , कुछ समय पश्चात, दोनों ने ही उस परमआनंद  को महसूस किया , जि सके लिए , उनके बदन एक दूसरे को आवाहन दे रहे थे। इस समागम का उन्हें तनिक भी अफसोस नहीं था , उन्होंने जो भी किया अपने प्यार के वशीभूत होकर किया। 

बरखा ने फिर से वही प्रश्न दोहराया, क्या तुम ,कल ही चले जाओगे ?

उसके बालों में उंगली फिराते हुए , विशाल बोला -तुम कहो तो ,नहीं जाता हूँ किंतु अब दादा जी कह रहे हैं , तो जाना ही होगा ,पढ़ाई भी जरूरी है, किंतु मैं इस रात्रि को कभी नहीं भूला पाऊंगा , तुमने मुझे एहसास कराया है -''जीवन कितना सुंदर है ?'' और अब तो तुम मेरी जिंदगी में आ गई हो,आना जाना तो लगा ही रहेगा कहते हुए विशाल ने उसके होंठ चूम लिये। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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