Jail 2 [part 21]

बरखा इतनी मुसीबतों को झेलते  हुए ,आख़िरकार अपने प्रेमी  विशाल से मिल ही गयी। दोनों के लिए ,आज की बरसात उनके मिलन की गवाह थी। दुनिया से बेपरवाह ,एक दूसरे की बांहों में दोनों समाये  हुए थे। मैंने कभी सोचा भी नहीं था ,तुम मुझसे इस कदर प्यार करने लगोगी। मैं भी तुम्हारी प्रतीक्षा में था ,बरसात को  देखकर ,मैंने तुम्हारे आने की उम्मीद छोड़ दी थी ,मुझे नहीं मालूम था कि तुम इतनी ''बरसात'' में भी अपना वायदा निभाओगी। 

तुमने बुलाया ,तो आती कैसे नहीं ? 

तभी कुछ स्मरण करते हुए विशाल बोला -अच्छा एक बात बताओ !गेट किसने खोला ?पूछते हुए ,बरखा के चेहरे पर आई लट को हटाते हुए बोला। 


तुम्ही सोचो !कैसे आई होंगी ? तुम्हें पता है ,इतनी रात्रि को आज मैं जब आ रही थी ,कुछ शराबी मेरे पीछे पड़ गए।

 अच्छा ,फिर क्या हुआ ?पूछते हुए विशाल उठ बैठा। किन्तु बरखा उसी तरह लेटी रही। 

होना क्या था ?बहुत छुपते -छुपाते ,और फिर भागते हुए इधर आई ,यहाँ आकर देखा तो, दरवाजा बंद ,तुम तो कुम्भकर्ण की नीद सो रहे थे ,मैंने कई पत्थर मारे किन्तु तुम नहीं उठे ,तब मैं उस गेट को, तुम्हारे लिये लांघकर  आई , विशाल पर एहसान जताते हुए बोली। 

क्या तुम उस गेट पर चढ़कर आईं ,विशाल को आश्चर्य हो रहा था ,प्रसन्न होते हुए,उसने बरखा को कसकर गले लगा लिया ,तभी बरखा की नजर सामने दीवार पर लगी ,घड़ी पर गयी और बोली - छोडो !देखो !तीन  बज रहे हैं  ,दो -तीन घंटे बाद मांजी और बाबा जी उठ जायेंगे ,मुझे जाना भी होगा ,वरना मांजी पूछेंगी -'मैं यहाँ क्या कर रही हूँ ?'

तुम उसकी चिंता छोडो !उनसे मैं कह दूंगा ,मैंने अपना सामान पैक करवाने के लिए ,तुम्हें यहाँ बुलाया था ,सुबह कुछ देर के लिए छुप जाना ,तब अचानक आ जाना। 

ओहो !तुम भी होशियार होते जा रहे हो। 

क्या मतलब !मैं क्या पहले होशियार नहीं था ,तुम क्या मुझे बुद्धू समझती हो  ?कहते हुए ,उसके गुदगुदी करने लगा। बरखा मुँह दबाकर हंस रही थी ताकि आवाज बाहर न चली जाये। रुको !अपनी हंसी रोककर बोली - देखती हूँ ,मेरे कपड़े सूख गए या नहीं ,कहते हुए ,पलंग से उठती है। 

नहीं सूखे होंगे ,कहते हुए विशाल ने उसे अपनी बाँहों में उठाया और उसे लेकर फिर से  बिस्तर में घुस गया। दोनों एक -दूसरे में समाये ,सो गए। बाहर दादाजी उसके कमरे का दरवाजा खटखटा रहे थे ,विशाल !बेटा आज उठना नहीं है ,आठ बज गए। उनकी आवाज से पहले बरखा की आँख खुली ,उसने घबराकर विशाल को उठाया और स्वयं स्नानागार में घुस गयी। 

आया, दादाजी ! कहकर विशाल ने दरवाजा खोला -वो अंदर झांकते हुए बोले -आज दरवाजा बंद करके कैसे सोया ?तू तो कभी भी दरवाजा बंद करके नहीं सोता। 

वो दादाजी बरसात इतनी जोरों से हो रही थी ,मैंने दरवाजा बंद कर लिया।

 अच्छा , आजा !नाश्ता करने आजा !आज अभी तक बरखा भी नहीं आई ,बरसात में पता नहीं ,कहाँ रुक गयी ?

 आ जाएगी दादा जी ! चलिए आप चलकर  बैठिए , मैं भी फ्रेश होकर आता हूं। 

दादा जी के वहां से हटते ही ,बरखा स्नानागार निकल कर बाहर आई, अभी भी उसके कपड़ों में सीलन थी किंतु उसने वही कपड़े पहन लिए , आसपास देखा , और पीछे के दरवाजे से निकलकर सीधे हॉल में आ गई। 

क्यों आज इतनी देर क्यों लगा दी ? समय देखा है कितना हुआ है ? 8:00 बज रहे हैं। 

माँजी ! कल बारिश बहुत हो गई थी, मेरे कपड़े भी भीग गए थे देखो !अभी भी थोड़े गीले हैं , आप के कारण उन्हें ही  पहन कर आ गई। 

क्यों ,तेरे पास और सूखे कपड़े नहीं थे ?जो यह गीले कपड़े पहन रही है इस तरह से तो बीमार पड़ जाएगी। उन्होंने उसे प्यार से डपटते  हुए कहा।

मां जी ,आप तो जानती ही हैं, हमारा झोपड़ा कितना बड़ा है ? उसी घर में हम छह लोग रहते हैं , उसकी छत भी चू रही थी , इसीलिए कपड़े भीग  गए। 

ठीक है, मैं तुझे अपनी बेटी के कपड़े दे देती हूं उन्हें पहन लेना, वरना बीमार पड़ जाएगी, मैं इनके लिए चाय बना रही हूं , तुझे भी एक कप दे दूंगी , इतने घर की साफ सफाई कर लेना कहकर वह अंदर कमरे में चलीं गयीं।  बरखा सफाई में व्यस्त थी , उसे अब यह घर अपना लग रहा था , अपने को नौकर नहीं समझ रही थी। तभी उसे विशाल आता दिखाई दिया ,उसे देखकर वह मुस्कुरा दी, किन्तु विशाल उसे नजरअंदाज कर आगे बढ़ गया। उसके इस व्यवहार से बरखा आहत हुई ,और उसके चेहरे की हँसी गायब हो गयी। 

दादी ने उसे सूखे कपड़े लाकर दिए जो बरखा ने पहन लिए ,कपड़े पुराने थे किन्तु साफ और चमकदार थे ,लाल  रंग के वस्त्रों में ,बरखा खिल उठी। दादाजी ने उसे देखा तो बोले -अब तुम कितने बरस की हो गयी हो ?

दादाजी ,लड़कियों से उनकी उम्र नही पूछते ,कहकर वो मुस्कुराई। 

तभी विशाल बोला -इसे अपनी उम्र का पता होगा तभी तो बताएगी ना...... 

क्यों ? क्या मैं ,पढ़ी-लिखी नहीं हूँ ? मुझे पता है, अपनी उम्र का, तुनकर रसोई घर में चली गई और उनके लिए नाश्ता लाकर रख दिया। 

विशाल तुम कौन सी गाड़ी से जा रहे हो ?सुबह ही जाओगे ,यह शाम को जाओगे। 

मैं सोचता हूं -दादा जी ,कुछ दिन और रुक जाता हूँ , कहते हुए बरखा की तरफ देखा।

नहीं ,रुकना क्यों है ? हम अस्वस्थ नहीं हैं , तुम्हारे पापा ने मुझे फोन किया था ,कह रहा था -कि उसका दाखिला भी होना है ,उसके कॉलेज खुलने वाले हैं, उसे भेज दीजिए ! तेरे माता-पिता हैं ,उनकी इच्छा हो रही होगी कि बीस  दिनों से हमारा लड़का घर पर नहीं है ,मिलना चाहते होंगे ,फिर आ जाना , कहते हुए दादाजी नाश्ता करने लगे।

जी ,आज सुबह ही दस बजे की गाड़ी से ही चला जाऊंगा , कहते हुए वह नाश्ता करने लगा। थोड़ा अशांत  हो गया था, मन ही मन बरखा भी परेशान थी , इतने दिनों से यहां रह रहा था ,तब तक हमारी कोई बात नहीं हुई और अब , यह जा रहा है। मैं भी न ,किससे दिल लगा बैठी ?जिसके यहाँ रहने का कोई भरोसा नहीं। बरखा ! यहां आना तो, जरा मेरा बैग लगवा दो ! विशाल की आवाज से उसकी सोच का कांरवा रुक गया।

बरखा चुपचाप ,उसके कमरे में गयी ,उसके कमरे में जाते ही ,विशाल उसे कसकर अपनी भुजाओं में भर लिया और उसके होठों को चूमते हुए बोला -इतने दिनों से यहाँ रह रहा था ,तब तुमने कुछ भी नहीं कहा और अब..... जाने का समय आ गया। उसकी परेशानी देखकर ,बरखा बोली -क्यों परेशान हो रहे हो ? अब मैं तो यहीं हूँ। तुम छुट्टियों में आ जाया करना ,मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी।  

क्या सच में ?

और नहीं तो क्या ?अब तुम्हारे पल्ले पड़ गयी हूँ ,तो इतनी आसानी से साथ छोड़ने वाली नहीं हूँ। 

उसकी बातें सुनकर विशाल हर्ष से भर उठा ,और पुनः उसको कसकर गले लगा लिया अपने गालों से उसके गालों को अच्छे से रगड़ दिया ,बरखा चिहुँककर बोली -हटो !अपनी दाढ़ी से मेरे सारे गाल छील दिए , जाओ !जाकर अपनी दाढ़ी बना लो !कहकर उसे धकेला और रसोई की तरफ भागी। 

जब वो रसोई में आई ,उसके गाल लाल थे ,कहीं मांजी न देख लें ,दूसरी तरफ मुँह करके कार्य करने लगी ,उसका सामान लग  गया। 


जी मांजी !

अब तू पहले इधर आ !देख मैंने ,ये बेसन भूनकर रखा है ,यदि ये थोड़ा ठंडा हो गया हो तो ,इसमें बूरा मिलाकर लड्डू बनवा दे ,मेरे बेटे को बेसन के लड्डू बेहद पसंद हैं। 

और इनको क्या पसन्द है ?अचानक ही बरखा उनसे विशाल के लिए ऐसे बोली -जैसे कोई स्त्री अपने पति के लिए बोलती है। 

इनको ,किनको ?

आपके पोते को !

ओह !उसे उसकी माँ जानेगी ,मुझे तो अपने बेटे से मतलब है ,कहते हुए ,हंसकर लड्डू बनाने लगीं और बरखा भी साथ में थी।

अमृता जी बरखा की कहानी सुनकर मुस्कुराते हुए बोलीं - अच्छा ,तूने लड्डू तो उनके बनवा दिए ,क्या विशाल ने , तेरा साथ दिया ,तुझसे मिलने आया ,या तुझे धोखा देकर चला गया। 

नहीं आंटी जी ,वह तो बहुत सही था ,उसने मुझे धोखा नहीं दिया ,जब वह गया ,उसके पंद्रह  दिन बाद ही वापस आ गया। दादा -दादी जी को भी आश्चर्य हुआ कि वह इतना शीघ्र  कैसे आ गया ?

तब उसने क्या बहाना बनाया ?अमृता जी ने पूछा। 

कहने लगा -मुझे यहां की यूनिवर्सिटी में कोई काम है , उसने मेरा भी दाखिला करवा दिया था। अबकि बार तीन -चार दिन ही रहा ,ताकि दादा जी या दादी को हम पर,किसी भी तरह शक न हो जाये। रात्रि को तो हम मिलते ही थे। 

तुम्हारे  इस रिश्ते का अंजाम क्या होगा ?कभी तुमने सोचा था। 

हाँ ,सोचा था ,जब हम दोनों अपनी शिक्षा पूर्ण करके, अपने पैरों पर खड़े हो जायेंगे ,तब घरवालों से अपने रिश्ते के विषय में बता देंगे ,मान जाएंगे ,तो परिवार वालों की इच्छा से विवाह कर लेंगे , नहीं मानेंगे तो, हम अपनी इच्छा से विवाह कर लेंगे। बरखा ने अपनी योजना बताइ। 

 

 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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