Jail 2 [part 19]

 रात्रि का अंधकार फैला था ,खम्बे पर लाइटें जल रहीं थीं ,आजकल गर्मी इतनी पड़ रही है ,इंसान परेशान है ,नहाकर भी पसीनों में फिर से नहा जाता है किन्तु आज मौसम थोड़ा बदला सा लग रहा है। आकाश में बादल छाये  हैं , बीच-बीच में बादलों की गड़गड़ाहट भी सुनाई दे रही है , गली मोहल्ले में कोई बाहर का आदमी घूमता नजर आता है तो कुत्ते भोंकने लगते हैं। वरना सारी सड़क और गलियां सुनसान पड़ी हैं , ऐसे में घर से बाहर निकलते हुए भी, ड़र लगता है। बरसात की चाहत  सभी को है , इस तरह अर्ध रात्रि में, घने बादलों के बीच कोई नहीं निकलना चाहेगा , तब भी एक साया, उन झोपड़ियों जैसे घरों से बाहर निकलता है। रास्ते में छोटे-छोटे घरों के सामने अपनी चारपाई बिछाए हुए , दिन भर के थके लोग बेसुध हो सो रहे हैं। वह साया उन चारपाईयों के बीच से होता हुआ ,उनसे बचता हुआ ,अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा था। उस को इस बात से कोई भी फर्क नहीं पड़ता कि अब रात्रि का कौन सा पहर चल रहा है? या वक्त क्या हुआ है ?


सड़क पर कुछ मजनू टाइप के लड़के जो शराब में धूत थे , घूम रहे थे , उस को देखकर , एक ने कहा -देख !वह कौन जा रहा है ? मैं तो सोच रहा था इतनी रात गए ,रात्रि में हम ही पागल इस सड़क पर घूम रहे हैं किंतु वह भी पागल है, कह कर हंसने लगा। 

दूसरे ने देखा तो कहने लगा -यह पागल नहीं पगली लगती है , देख !इसकी चाल बता रही है कि यह कोई लड़की है। 

लड़की....... लगता है ,हमारी किस्मत खुल गई , आज तो शराब भी खूब मिली है और अब लड़की भी मिल गई तीसरा मुस्कुराते हुए बोला। 

इसे तो चढ़ गई है, इसे कोई भूत भी जा रहा हो तो वह भी लड़की नजर आती है मैं कह रहा हूं ,यह लड़का है ,पहले ने दावा किया।

मुझे नहीं तुझे चढ़ी है , यह लड़का नहीं लड़की है यह मैं पूरे दावे के साथ कह सकता हूं। 

लड़ते क्यों हो ?चलो !उसी से पूछ लेते हैं तीसरे ने उनमें सुलह करवाते हुए कहा , पता नहीं, कौन वक्त का मारा घूम रहा है ? बिचारा !मदद भी कर देंगे ,कहते  हुए उसने गहरी सांस ली।कथनाअनुसार तीनों उठ खड़े हुए , और उस साये की तरफ बढ़ने लगे।

जैसे -जैसे वह आगे बढ़ रहे थे , वैसे- वैसे ही वह साया भी , आगे बढ़ रहा था। उन्होंने अपनी गति थोड़ी तीव्र  कर दी , उस साये  की गति भी बढ़ गई , अब वह थोड़ा और तेज हुए , वह साया उनसे और तेज हो गया। अरे यार ! कौन है यह ? पकड़ो !इसे....... अपने दोस्त के कहने पर उन दोनों ने दौड़ लगा दी , वह साया भी दौड़ने लगा। सूनी सड़क पर अंधेरी रात में , चार साये आगे -पीछे भाग रहे थे , रोशनी का माध्यम वह खंभों की लाइट ही थी। अभी एक बूंद टप  से आकर एक के हाथ पर गिरी , इस भागदौड़ में किसी ने भी ,इस बात पर ध्यान नहीं दिया। वह साया सड़क से ,एक गली की तरफ मुड़ गया। 

मुझे लगता है, वह कोई लड़की की थी , पहले वाले ने जवाब दिया, यदि कोई लड़का होता , तो इस तरह डर कर नहीं भागता। बरखा एक गली में घुसकर, एक दुकान की आड़ में छिप गई थी। उसे अब इस समय अपने घर से बाहर निकलने पर अफसोस हो रहा था। तभी तेज -तेज बूंदे पड़ने लगीं , यह एक और नई मुसीबत ! विशाल मेरी प्रतीक्षा में होगा ,होगा भी या नहीं ,इन शराबियों से बचकर ,एक बार कोठी तक पहुंच जाऊँ ! बस यही सब सोच रही थी। बरसात तेज थी , बरखा ने आसपास देखा, अब उसे कोई नहीं दिख रहा था वह दुकान की आड़ से बाहर निकली , और बारिश में भीगते हुए ही ,आगे बढ़ने लगी। बस दो गली और पार करनी हैं ,उसके पश्चात वो अपने विशाल के समीप पहुंच जायेगी ,सोच रहा होगा ,इतनी बारिश में अब क्या आएगी ?


किन्तु जो प्रेम के अग्नि दोनों के अंदर धधक रही है ,उसके सामने ये बरसात कुछ भी नही ,अपने प्रेमी से मिलने के लिए ,सोहनी अपने महिवाल से मिलने नदी  पार करके जाती थी। प्रेमी इसी तरह के पागल होते हैं ,तब उन्हें समाज की ,यहाँ तक की अपनी भी परवाह नहीं रह जाती है ,कोई क्या कह रहा है , कोई क्या सोचेगा ?इसकी उन्हें परवाह ही कहाँ रह जाती है ?ऐसा ही हाल आज कुछ बरखा का भी हो रहा है ,जो अपने विशाल से मिलने के लिए अर्धरात्रि में और वो भी बरसात में दौड़े चली जा रही है।

 तभी दूर से उसे आवाज आई अरे !वो रही !

बरखा का इतना सुनना था ,और उसने दौड़ लगा दी ,जैसे उसके पीछे भूत पड़ा हो ,उसने ये भी नहीं देखा ,कोई उसके पीछे आ भी रहा है या नहीं ,तब उसने अपनी मंजिल पर पहुंचकर ही ,दम लिया ,उसने ये भी नहीं देखा, कि लोहे का इतना बड़ा दरवाजा बंद है। कोई साधारण मानव इस वक्त उसे देखे तो पूछे -वो इस समय यहाँ क्या कर रही है ?किन्तु इतनी रात्रि में ,बरसात में ,सब अपने -अपने घरों में ,बिस्तरों में पडे गहन निंद्रा में सोये हैं किन्तु ये लड़की अपने प्रिय से मिलने रात्रि में भी जग रही है। घबराहट थी ,कहीं वो लोग ,पीछे न आ रहे हों। यदि दरवाजा खटखटाती है ,पता नहीं ,विशाल सुन भी पायेगा या नहीं ,कहीं उसके दादी -बाबा ही न उठ जाएँ। बरसात में भीगी उम्मीदों से उस दरवाजे को ताक रही है। काश !कि विशाल को उसके आने का आभास हो जाये। क्या उसने मेरी प्रतीक्षा भी नहीं की ?कि भी होगी तो उसे कैसे पता चलेगा ?उसकी बरखा दरवाजे पर खड़ी है। कुछ सोच कर ,उसने एक छोटा सा पत्थर उठाया और दरवाजे से थोड़ा हटकर, विशाल की खिड़की की तरफ फेंका , किंतु शायद ठीक से नहीं लगा या फिर वह गहरी नींद में होगा , उसे पता नहीं चल पाया होगा। बरखा का सोचना भी सही था, विशाल उसकी प्रतीक्षा में था किंतु जब बरसात होने लगी, तब वह बरखा के आने की उम्मीद से अपने बिस्तर पर लेट गया और लेटते  ही न जाने उसे कब नींद आ गई ?



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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