उम्र भी कम, उस पर बरखा की आकांक्षाएं भी बढ़ने लगी , उसके सामने एक दिन धनंजय जी ने, अपने पोते की बहू ' बनाने के लिए ,क्या कह दिया ? वह तो इस घर की बहू बनने का सपना ही देखने लगी। इस बात में उसे कोई बुराई भी नहीं लगी। इस घर के हर एक कोने से अच्छी तरह परिचित हो गई थी , इस घर को ही ,अपना घर समझने लगी थी , वह भूल गई थी ,कि वह इस घर की एकमात्र नौकरानी है। विशाल का रवैया भी उसके प्रति सहयोगात्मक रहा , उसे लगने लगा , विशाल भी उसे पसंद करता है। वह यह भूल गई थी कि यह तो कुछ दिनों के लिए ही ,अपने दादी- बाबा से मिलने के लिए आया है। अभी उसकी पसंद ना पसंद का कोई महत्व नहीं है। कम उम्र में अनुभव कम होता है ,बच्चा छलांग ऊंची लगाना चाहता है , बरखा का भी कुछ यही हाल था। वह जानती सब थी ,किंतु समझना नहीं चाहती थी।
जब विशाल कमरे में अकेला होता तब, जानबूझकर उस कमरे में जाती ,कभी सामान संभालती ,कभी उसके लिए कॉफी बनाती ,उसके सामने बनी रहना चाहती। सुनो !
बरखा ने मुस्कुराकर देखा ,जी ,कहिये ! तुम कितना पढ़ी हो ?
दसवीं पास किया है ,इसी बरस !
ओह !अब आगे क्या करना चाहती हो ?
पढ़ाई !
ओह !अच्छा ,विशाल को लगा ,ये भी न जाने क्या सोचेगी ? कैसे ?मूर्खों वाले प्रश्न उससे पूछे जा रहा है।
आप कुछ लेंगे ,विशाल उसे देखे जा रहा था ,बरखा की आवाज से उसका ध्यान भंग हुआ , नहीं रहने दो !
ठीक है ,कहकर वो जाने लगी ,तभी विशाल उठा और फ्रिज में से पानी लेकर पीने लगा ,तभी उसे न जाने क्या सूझा ? बोतल का ठंडा पानी ,आंगन में सूखे कपड़ों की तह बनाती ,बरखा पर छिड़क दिया। ये आप क्या कर रहें हैं ? कपड़े भीग जायेंगे ,किन्तु विशाल नहीं माना ,उसने फिर से अबकि बार अधिक पानी उसके ऊपर उड़ेल दिया। अब तो ठंडे पानी की होली का सिलसिला चल निकला , मिस्टर धनंजय और उनकी पत्नी पड़ोस में, किसी के यहाँ हवन में गए थे।बरखा ने भी आव देखा न ताव विशाल के पीछे ठंडे पानी की बोतल ही लेकर दौड़ पड़ी किन्तु विशाल कहाँ हाथ आने वाला था ? इस कमरे से उस कमरे में ,उस कमरे से इस कमरे में ,दोनों की भागदौड़ चल रही थी। इस बीच विशाल ने, उसके तह किये कपड़े भी बिखेर दिए ,थोड़ा सामान भी इधर -उधर हो गया। पहले बरखा ,उसका विरोध कर भी रही थी तब भी , उसके मन में ,थोड़ी हिचकिचाहट थी किन्तु अब वो पूरी तरह से ,विशाल से बदला लेने पर आमादा थी। वो भी उसको हराने के लिए पूरी जी जान लगा रही थी। उसके पीछे -पीछे, भागते -भागते थक चुकी थी। थोड़ी देर के लिए बैठी ,वो समझ गयी ,इससे वह जीत नहीं पायेगी ,तब उसने सोचा -इसे बुद्धिमानी से ही हराया जा सकता है।
कुछ देर शांत बैठी रही ,विशाल की सांसें भी फूल रहीं थीं , बरखा की तरफ से आश्वस्त होकर ,कि अब इसमें इतनी हिम्मत नहीं बची जो मेरा मुकाबला कर सके ,यही सोचकर ,अपने कमरे की तरफ मुड़ गया। तभी चुपके से बरखा आई और उसके कमरे में देखा ,विशाल शांति से ,एक पत्रिका खोलकर बैठा था। बरखा को अपने आप पर ग्लानि हो रही थी कि वो उससे कैसे हार सकती है ? तब यही मौका देखकर ,बरखा ने उसके करीब जाकर ,उसकी पीठ पर ,उसके कपड़ों में बर्फ डालनी चाही ,किन्तु उससे पहले ही विशाल उठ गया और बरखा के दोनों हाथ पकड़कर उसे अपने बिस्तर पर गिरा दिया और बोला -हमीं से चालाकी ! बरखा ने खूब हाथ -पैर मारे किन्तु उससे अपने हाथ नहीं छुड़ा पाई ,किन्तु जब दोनों के बदन एक -दूसरे से टकराये ,तब अलग ही स्थिति उत्पंन होने लगी। वो एक दूसरे की धड़कनों को महसूस करने लगे ,उनकी धमनियों में जो लहू बह रहा था ,उसकी गर्माहट उन्हें महसूस होने लगी। धीरे -धीरे उनके मन की शरारत अपना रूप बदलने लगी ,दोनों एक -दूसरे को महसूस कर रहे थे। इस तरह एक -दूसरे का स्पर्श अच्छा लग रहा था। ये अजब ही अनुभूति थी ,बरखा के गाल भी एकदम से खिल उठे ,जो गुलाबी रंगत ले चुके थे और गर्म भी हो गए थे ,विशाल अपने को रोक न सका और उसके गालों का चुंबन ले लिया।
तभी दरवाजे पर ,उन्हें कुछ आहट महसूस हुई ,बरखा एकदम सतर्क हो उठी और बोली -शायद ,वो लोग आ गए ,कहते हुए ,छत की तरफ भागी ,वो इस तरह ,उसके दादी -बाबा का एकदम से सामना नहीं कर पायेगी ,उसके झूठ की चुगली तो उसे गाल और उसके चेहरे रंगत ही कर देगी। वैसे वह बहुत ही घबरा गई थी , उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसने कोई बहुत बड़ी गलती या चोरी कर दी है। विशाल भी अपनी तेज धड़कनों को नियंत्रित करता है , अपने चेहरे पर आए भावों को ,छुपाने का प्रयास करता है , कुछ देर यूं ही पलंग पर लेट जाता है।
घर में कोई नहीं दिख रहा, सब कहां चले गए ? कहते हुए धनंजय जी घर के अंदर प्रवेश करते हैं। पोते के कमरे में आकर झांका।
विशाल आराम से लेटा हुआ था किंतु उन्हें देखकर बोला -अरे !आप आ गए , पता ही नहीं चला कहते हुए, उनके करीब आया और बोला-गुप्ता जी के यहां हवन हो गया, कैसा रहा ?
उनके सभी रिश्तेदार आए थे , पड़ोसी भी आए थे , कहते हुए ,वह विस्तार से वहां का वर्णन करने लगे , तभी उनकी पत्नी को ध्यान आया, बरखा भी तो यही थी ,वह कहां चली गई ?उन्होंने पूछा।
विशाल लापरवाही से बोला -यही कहीं होगी , कुछ देर पहले तो यहीं घूम रही थी , शायद छत पर गई हो।
विशाल की दादी रसोई घर में गईं , वहां जाकर देखा तो ,दोपहर के खाने के बाद की रसोई ,अभी तक ऐसे ही फैली पड़ी है , इसने कुछ भी काम नहीं समेटा मन ही मन बुदबुदाई , आखिर ये लड़की कर क्या रही है ? सोचते हुए ,उन्होंने नीचे से ही, बरखा को आवाज लगाई।
बरखा की सांसे तेज चल रही थी ,वह उन पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही थी और मन ही मन योजना बना रही थी कि यदि वह पूछतीं हैं -कि काम क्यों नहीं हुआ ?तो मुझे क्या जवाब देना है ? बरखा ने उनकी आवाज सुन ली, और वहीं से जवाब दिया -आ रही हूं , कहते हुए नीचे उतरने लगी।
उसे देखकर, श्रीमती धनंजय बोलीं -तुम छत पर क्या कर रही थीं ? अभी तक रसोईघर का कार्य पूर्ण नहीं हुआ।
वह माँजी मैं....... कहते हुए उसने विशाल की तरफ देखा, अब विशाल अपने दादाजी के पास बैठा मुस्कुरा रहा था , तब बरखा को मन ही मन उस पर क्रोध आया और उसने सोचा -क्यों ना इसे डांट ही डलवा दी जाए ? तब वह बोली- इन्हीं के कारण, ऊपर थी। विशाल ने आश्चर्य से उसकी तरफ देखा, यह कहना क्या चाह रही है ,यह कहना क्या चाहती है ? एकाएक यही प्रश्न उसके मन में उभरे और बरखा की तरफ देखने लगा। वह कुछ भी नहीं समझ पा रहा था। तब बरखा बोली -मांजी यह पानी लेने के लिए फ्रिज के पास गए थे , जैसे ही इन्होंने ,पानी की बोतल निकाली , और पानी पीने लगे ,तभी इनके हाथ से बोतल फिसलकर नीचे फर्श पर गिर गई। अब यह तो ठहरे लाट साहब ! पानी गिरा कर अंदर आ कर लेट गए , फर्श पर बिखरा पानी मुझे नहीं दिखा , जैसे ही मैं रसोईघर के अंदर आई और उस पानी से फ़िसल गई, मेरे कपड़े भी भीग गए वही सुखा रही थी। बताते हुए ,विशाल की तरफ देखा , उसके झूठ पर विशाल भी मुस्कुरा दिया।
तुझे कहीं चोट तो नहीं आई, कहते हुए श्रीमती धनंजय अपने पोते से बोलीं -इतना बड़ा हो गया है ,लेकिन अभी तक समझदारी नहीं आई , अरे पानी गिर भी गया था, उसे बता तो देता।

