आज आर्या को पता चला ,काव्या ने ही, इन' क़ब्र की चिट्ठियों' की शुरुआत की थी ,उसने ही पहली कहानी लिखी थी, किन्तु वो अभी तक उनका अंत नहीं कर पाई थी ,उसने आर्या से कहा -अब इन कहानियों का अंत, अब तू ही कर सकती है। आर्या ने अब उन कहानियों को मानवता से जोड़ दिया और दीनदयाल की परछाई अब धुंध में गायब हो गई। तब काव्या ने आर्या को बताया - हर क़ब्र की अपनी एक कहानी है ,जो हर क़ब्र में दफ़न है।
इस समय मध्य रात्रि थी , उस स्थान की हवा में एक अजीब सी नमी थी — जैसे किसी ने अभी-अभी ज़मीन के नीचे से कुछ खोला हो। तभी उसे पुराने चर्च के पीछे, एक कब्रिस्तान दिखलाई देता है ,जहाँ कब्रों की कतारें, धुँधले कुहासे में खोती जा रही थीं।वहां आकर आर्या की साँसें भारी हो रहीं थीं — यहाँ तक आने के लिए उसने घंटों चलकर, यहाँ तक का सफर तय किया था।उसके हाथ में अभी भी वही पुराना रजिस्टर था,जिसके पन्नों ने उसके जीवन की हर दिशा बदल दी थी।
पर आज कुछ अलग महसूस हो रहा था—अचानक रजिस्टर का आख़िरी पन्ना खुला हुआ था… और उस पर कोई नाम नहीं था।सिर्फ़ एक अधूरी पंक्ति लिखी थी -“अगर यह चिट्ठी तुम तक पहुँचे… तो जान लेना कि मैं…”
उसके बाद कुछ नहीं, बस एक खरोंच जैसा निशान, जैसे किसी ने जल्दी में पन्ना बंद कर दिया हो।
आर्या ने काँपते हाथों से पन्ना छुआ,वो स्याही अब सूख चुकी थी, लेकिन उसमें एक अजीब-सी ठंडक थी —
जैसे अब भी वहां किसी की उपस्थिति बाकी हो।तभी पीछे से एक हल्की आहट हुई ,उसने पलटकर देखा — अंधेरे में उसे कोई दिखलाई नहीं दिया किन्तु हवा में जैसे कोई फुसफुसाया —“क्यों लौट आई…?”तुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था।
उसका दिल धड़क उठा,वो आवाज़ न तो डरावनी थी, न कोमल — बस पुरानी, थकी हुई,काव्या की आवाज थी।
चर्च के दीवार पर टंगी घड़ी तीन बजा चुकी थी।रात का वो वक़्त जब सन्नाटा अपनी सबसे तेज़ आवाज़ निकालता है।आर्या धीरे-धीरे एक क़ब्र की सीढ़ियाँ उतरकर उसके करीब पहुँची,जिस पर धुंधली लिखावट में “K” लिखा था —अब तक इस पत्थर को किसी ने साफ़ नहीं किया था।वो यह जानने के लिए थोड़ा नीचे झुकी, आखिर यह क़ब्र किसकी हो सकती है ? कब्र पर उसने अपना हाथ रखा,मिट्टी अभी भी गीली थी, लेकिन उसे एहसास हुआ जैसे अभी भी कोई जिन्दा है ,उसे किसी की धड़कन सुनाई दी ,रजिस्टर के पन्ने अपने आप पलटने लगे —और वहाँ अचानक कुछ नया लिखा हुआ दिखलाई दिया । स्याही अभी-अभी गीली ही थी,जैसे किसी ने अभी -अभी लिखा हो —“मैंने कभी तुम्हें छोड़ा ही नहीं था , आर्या…”
आश्चर्य और ड़र से आर्या की आँखें चौड़ी हो गईं,वो पीछे हटी — “ये कैसे मुमकिन है? काव्या तो...इस लोक से जा चुकी है ,उसने अपने आपको विश्वास दिलाया। ”
तभी चर्च के दरवाज़े की दिशा से कदमों की आहट उसे अपनी ओर आती दिखलाई दी ,लालटेन की पीली रौशनी के साथ दीनदयाल उसके सामने खड़ा था ।उसका चेहरा थका हुआ था, आँखें डरी हुई लग रहीं थीं,इससे पहले की आर्या कुछ समझ पाती ,वह बोला - “तुम्हें यहाँ नहीं होना चाहिए था , आर्या !अब यह जगह किसी इंसान के लिए नहीं है।”
आर्या की आवाज़ काँपी —“मगर... आप तो कह रहे थे-' काव्या की मौत एक हादसा थी?”
दीनदयाल ने नजरें झुका लीं।“हाँ... पर वो हादसा नहीं था — वो बुलावा था,उसने ऊपर की तरफ देखते हुए कहा - काव्या ने अपनी आख़िरी कहानी अधूरी छोड़ी थी... और वो उसे पूरी करने के लिए किसी को बुला रही थी।”
आर्या के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।“आपका मतलब... वो मुझे बुला रही थी?”
दीनदयाल ने एक लंबी गहरी साँस ली,“काव्या तुम्हारा ही अतीत थी, आर्या !वो नाम, वो चिट्ठियाँ — सब उसी की बनाई हुई थीं,पर जो बात तुम्हें नहीं पता... वो ये है कि तुम दोनों एक ही आत्मा के दो हिस्से हो।
मतलब ”
मतलब यही है ,काव्या और तुम दोनों एक ही हो ,काव्या का अधूरा कार्य तुम्हें पूर्ण करना है ,काव्या तुम्हारे ही अंदर है
आर्या हिल गई।“क्या...!?”
दीनदयाल ने रजिस्टर उसकी ओर बढ़ाया -“देखो — हर चिट्ठी में दो हस्ताक्षर हैं,एक ‘K’ और एक ‘A’।
काव्या और आर्या... तुम दोनों मिलकर एक अधूरी कहानी लिख रही थीं।मगर जब काव्या मरी, उसकी आत्मा का एक हिस्सा जीवित रहा —जो अब तुम्हारे अंदर है ,वो अब तुम बनकर,अपनी कहानी पूर्ण करना चाहती है ”
आर्या पीछे हट गई, उसका सिर घूम गया,“नहीं... मैं असली हूँ, मैं साँस लेती हूँ, मैं खाती हूँ...मैं एक जीवित इंसान हूँ ”जबकि काव्या मर चुकी है।
दीनदयाल की आवाज़ ठंडी थी,समझाते हुए बोला —'' फिर भी, तुम्हारी छाया हर सुबह सूरज से पहले मिट जाती है।”
कुछ देर तक वहॉं मौन रहा ,सिर्फ़ हवा और कब्र के नीचे से आती हल्की सी सरसराहट का एहसास हो रहा था
आर्या ने हिम्मत करके कब्र की मिट्टी को थोड़ा सा हटाया —और वहाँ से उसने एक पुराना लिफ़ाफ़ा निकाला,वो लाल मोम से सील किया हुआ था। मिट्टी में दबे होने के पश्चात भी , अब भी वह जस का तस था
उस पर लिखा था:-“आर्या – पढ़ना मत, अगर अब भी ज़िंदा रहना चाहती हो।”
उसके हाथ काँपने लगे -जिज्ञासावश फिर भी उसने लिफाफा खोला,अंदर एक पीला पन्ना था —और उस पर लिखा था:-“हर कहानी तब तक अधूरी रहती है, जब तक उसका लेखक मर न जाए।तुमने मेरी कहानी चुराई थी, आर्या !अब तुम्हारी ज़िंदगी ही मेरी आख़िरी पंक्ति है।”
अचानक हवा तेज़ हो गई ,मिट्टी उड़ने लगी, पेड़ झूमने लगे,रजिस्टर के पन्ने खुद-ब-खुद पलटने लगे —
और आर्या की नज़र आख़िरी पन्ने पर पड़ी।वहाँ अब लिखा था —अब तुम्हारा अंत शुरू हो चुका है।”
आर्या चीख़ी —लेकिन उसकी आवाज़ किसी ने नहीं सुनी,कब्र की मिट्टी दरकने लगी, जैसे ज़मीन किसी को निगलने को तैयार हो,धीरे -धीरे आर्या उसमें समाती जा रही थी।
यह देखकर दीनदयाल चिल्लाया —“भागो आर्या! अब वो तुम नहीं रही!”पर तब तक देर हो चुकी थी।कब्र के नीचे से किसी ने आर्या का हाथ पकड़कर खींच लिया —वो हाथ बेहद ठंडा था , पर शक़्ल हूबहू उसके जैसी थी और उसी क्षण,चर्च की दीवार पर टंगी घड़ी रुक गई —3:07 पर।
