Astitva ki talash mei

 कब -कब नहीं लड़ना पड़ता ,अपने अस्तित्व के लिए !

 लड़ते रहे ,ताउम्र ! हर रिश्ते की इक पहचान के लिए !

बेटी बनी , तब उस घर में ढूंढा ,

मैं इस घर की ज़िम्मेदारी,भाइयों की बहन ,मैं  कहाँ हूँ ?


बहु बनी , उस घर में तलाशती थी ,अस्तित्व अपना !

मैं इस घर की लक्ष्मी ,नौकरानी , इस घर में कहाँ हूँ ?

पत्नी बन ,तलाशती थी ,जीवनसाथी का साथ ,

ढूंढती थी अस्तित्व अपना उसके दिल में ,मैं कहाँ हूँ ?

माँ बन ढूंढती रही, अस्तित्व अपना ,

मैं बच्चों की जरूरत में हूँ ,अधिकार या सम्मान में हूँ। 

समाज में रह ,ढूंढती थी ,अपने आपको ,

औपचारिकताओं में हूँ ,दोस्ती में,मेरा अस्तित्व कहाँ है ?

खोखली  मुस्कुराहटों में हूँ ,उत्तरदायित्वों में या प्रेम हूँ। 

अस्तित्व की तलाश में भटकती रही ,यहां -वहां ,

रिश्तो में हूँ ,जीवन में हूँ ,ढूंढती रही ,न जाने कहाँ -कहाँ ?

मैं बेटी -बहु ,पत्नी ,माँ हूँ ,या फिर एक भावुक मन  ,

 या  रिश्तों की गठरी को ढोता ,एक व्यथित  तन !

पूछती है ,प्रश्न ? सावन में हूँ ,पतझड़ में हूँ , मैं कहाँ हूँ ?


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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