कुछ समझ नहीं आ रहा ,अचानक चिराग को क्या हो गया ?अच्छा खासा बैठा हुआ चाय पी रहा था , न जाने कैसे ?उसके कान में, कभी आवाज आ रही हैं ,बता रहा था , अब दर्द से चीख रहा है, उसके दोस्त ने अपने साथ के लड़के को ,उसकी परेशानी बताते हुए कहा। अभी वह इतना ही बता पाया था कि चिराग को एहसास होने लगा , जैसे उसके कान में कोई नुकीला कीड़ा घुस गया है , वह बड़ी जोर -जोर से अपने कान को पकड़कर चीखने लगा। कुर्सी से उठकर ,इधर-उधर भागने लगा। उसकी बेचैनी देखकर ,उसकी परेशानी देखकर, अन्य सभी छात्र भी उसके करीब आ गए। कोई कुछ नहीं कर पा रहा था , तभी डॉक्टर को भी बुलाया गया ,कुछ समय पश्चात ,डॉक्टर भी आ गया। डॉक्टर ने जैसे ही ,चिराग का कान देखने के लिए उसका हाथ हटाया ,तब उसने देखा ,इसका कान तो वहां से काम सूजा हुआ है और उस से खून बह रहा है। चिराग चीखे जा रहा था , किंतु कान में, कुछ भी नहीं था , यदि उसके दर्द को नजरअंदाज भी कर दें , तो उसे बेहतर खून को तो नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था , यह खून कैसे और क्यों बह रहा है ?
शेफाली, दीपशिखा के पास आकर खड़ी हो जाती है और उससे पूछती है - यह शोर कैसा है ? किंतु दीपशिखा उसकी बातों पर अभी ध्यान नहीं देती है , क्योंकि वो मन ही मन मंत्र जाप कर रही थी। तब शेफाली समझ गई ,कि यह कारस्तानी इसी की हो सकती है और वो कैंटीन की तरफ बढ़ जाती है। वह देखती है ,भीड़ में ,एक लड़का दर्द से बुरी तरह चीख रहा है ,उसका कान भी सूजा हुआ है। शेफाली सब समझ जाती है और अपनी शक्ति द्वारा चिराग की परेशानी को कम करना चाहती है किंतु यह क्या ?उसकी शक्तियां तो काम ही नहीं कर रही हैं। ऐसा क्यों हो रहा है ?वह परेशान होती है, खैर जो भी है ,यह बाद में देखेंगे। तब सोचती है , दीपशिखा के मंत्रों का जाप ही तोड़ना होगा , वह फिर से उसके करीब पहुंच जाती है। तुम बोलती क्यों नहीं ? वहां क्या हो रहा है ?
कई बार पूछने पर तब उसने जवाब दिया , तुम देखने तो गई थी क्या हुआ ? पता नहीं चल पाया , मन ही मन शेफाली सोच रही थी- मैं तो अदृश्य होकर गई थी ,इसकी शक्तियां इतनी तेज हो गई हैं, कि यह अब मेरी बिना इच्छा के भी मुझे देख सकती है। यह किसी खतरे का अंदेशा है।
हां गई तो थी किंतु पता नहीं चल पाया , वह लड़का क्यों चीख रहा है ? उसे क्या परेशानी है ?
अपने कर्मों की सजा भुगत रहा है , दीपशिखा लापरवाही से बोली।
क्या? मतलब !मैं, कुछ समझी नहीं।
इस तरह बातचीत करने से, दीपशिखा का मंत्र उच्चारण रुक गया और कैंटीन से भी आवाज कम आने लगी। इसमें ना समझने वाली कोई बात नहीं है , जो गलती करेगा, उसको सजा तो भुगतनी ही पड़ती है।
उसने ऐसी क्या गलती कर दी ? मुझे तो लगता है, उसके कान में , किसी कीड़े ने काटा है।
हां ,कुछ ऐसा ही समझ लो ! उसको उसकी गलती के कीड़े ने ही काटा है।
तुम मेरी दोस्त होकर भी ,पहेलियां बुझा रही हो ,ठीक से बताती क्यों नहीं हो ? शेफाली झुंझलाकर बोली।
वैसे तो तुम्हें सभी बातें जानना जरूरी नहीं है किंतु तुम मेरी दोस्त हो, इसलिए बतला देती हूं , उसने मुझसे बगीचे में मिलने का वादा किया था , मैं यहां बैठी ,उसका इंतजार कर रही हूं और वह वहां ,अपने दोस्तों के साथ बैठा चाय पी रहा है यानी मेरे साथ किए गए वायदे की ,कोई कीमत नहीं , यह उसी की सजा भुगत रहा है।
इसका मतलब है ,यह सब तुमने किया है। तुम जब यह सब कर सकती हो तो ,उसे ठीक भी कर सकती हो , क्या तुम उसे पहले से जानती थी ? या वह तुम्हें पहले से जानता था ? तुमसे जो वादा किया, भूल गया होगा।
नहीं, हम दोनों में से कोई भी एक दूसरे को नहीं जानता था किंतु मैंने जानने का प्रयास किया , अब यह उसकी लापरवाही की सजा है।
शेफाली समझ गई थी, इसे अपनी शक्तियों का अहंकार हो गया है ,तब वह विनम्रता से दीपशिखा से बोली -अब तुम जाकर इसकी परेशानी को दूर करके ,उसकी नजरों में महान बन जाओ ! और उसे अपनी गलती का एहसास भी कराओ! तुम्हें देखकर उसे याद आ जाएगा कि उसने क्या गलती की है ?
दीपशिखा को , शेफाली की ये बात पसंद आई और उसके साथ चल दी , शेफाली मन ही मन सोच रही थी , बाबा से अपनी शक्तियों के विषय में पूछना होगा , क्या कारण है ?जो मेरी शक्तियां काम नहीं कर रही हैं , इस तरह तो यह ,मेरी सच्चाई भी जान जाएगी। फिलहाल , तो उस लड़के को ठीक करवाना ही मेरा पहला कार्य है।
दीपशिखा , शेफाली के संग कैंटीन में जाती है , चिराग के कान पर अभी भी सूजन थी और वह दर्द से कराह रहा था , दीपशिखा चाहती तो, अपने हाथों की शक्ति से ही उसे ठीक कर सकते थी किंतु सबके सामने ऐसा करना सही नहीं था , इसीलिए बोली -मेरे पास एक आयुर्वेदिक दवाई है मैं उससे इसे ठीक कर सकती हूं।
डॉक्टर अभी भी वहीं बैठे थे , दीपशिखा की बात सुनकर वो मुस्कुराए और बोले-तुम्हारे पास यह दवाई कहां से आई ? कहां से तुम्हें यह ज्ञान प्राप्त हुआ ?
मेरे पिता एक बहुत अच्छे , वैद्य थे , यह सब उन्हीं से सीखा है , कहते हुए ,वह बगीचे में आती है , किसी भी पेड़ की पत्तियां अपने हाथों में लेती है और उनका रस निकालकर उसकी सूजन के आसपास लगा देती हैं। यह जादू उन पत्तियों का नहीं, उसके हाथों का था ,किंतु सबने यही समझा- इसे वनस्पतियों की अच्छी जानकारी है। दीपशिखा , उसके उसी काम में बोली - मैं तुम्हारा बगीचे में इंतजार कर रही थी , तुम क्यों नहीं आए ? मैंने बुलाया भी था ,तुमने ध्यान नहीं दिया , मुझे इंतजार करना पसंद नहीं , कहते हुए ,उसे घूर कर चली जाती है। चिराग को अब आराम था, किंतु दीपशिखा की घूरती नजरें उसका पीछा कर रही थी जिनसे वह डर गया था , मन ही मन सोच रहा था - इस लड़की में, अवश्य ही कुछ गड़बड़ है , कहीं इसी के कारण तो यह सब मेरे साथ नहीं हुआ।
घर आकर शेफाली ध्यान लगा रही थी ,और बाबा से संपर्क साधना चाहती थी , किंतु ध्यान है ,कि भटक रहा था , वह समझ नहीं पा रही थी मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है ? कभी लगता है ,मेरे बिगड़े काम भी बन रहे हैं और कभी लगता है , सभी कार्य बिगड़ते जा रहे हैं। शैफाली ने दृढ़ निश्चय कर लिया था ,यदि बाबा से संपर्क नहीं हो पाएगा तो मुझे बाबा के पास ही जाना होगा। जिस जगह को वो आज से दस साल पहले छोड़ आई , कुंभर्क के श्राप के कारण ही वह, उस जमीन को छोड़ आई थी ,कुंभर्क के श्राप को पूर्ण करने के लिए ,वह जगह-जगह भटक रही थी ,अब इस , दीपशिखा के कारण,उस जमीन पर फिर से पैर रखने होंगे।

