Mere bhai ki rakhi

बरस में एक दिन, ऐसा आता है ,

जो कई वर्षों.... पीछे ले जाता है। 

इस सुनी कलाई का एहसास... 

 उस बहना की याद दिलाता है। 

फूली -2  फूलों वाली फ्रॉक पहने,

पीछे पीछे आती थी।कभी लड़ती ,

कभी रूठती ,कभी  मनाती थी। 

 अपने भाई के लिए ,सबसे बड़ी ,

 और चमकीली राखी लाती थी। 

 इसे पहनेगा भाई मेरा........ 


 इसी बात से खुश हो जाती थी। 

अपने मन से सुंदर थाली सजाती थी। 

 तेजस्वी भाल पर ,लम्बा तिलक लगाती थी। 

आज बहना दूर हुई ,राखी उसने भेजी है।

इस कविता संग ,कुछ दुआएं भी भेजी हैं। 

दूर है ,भाई मेरा.....  आंखें नम होती होंगी। 

मुस्काती है आज भी दुआएं मेरे संग होंगी।

सुनी ना रहे ,मेरी कलाई बाजार जाती होगी। 

छोटी ,प्यारी राखी , मेरे लिए छाँटती होगी। 

उस नन्हीं राखी के धागों में उसकी  दुआ, 

और उसकी प्यारी ,मीठी मुस्कान होगी। 

                                                                    भाइयों को समर्पित  


                                                               


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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