Haunted [part 35 ]

आज विद्यालय ,किसी श्मशान में पहुंच गया ,यहाँ दर्शकों में ,सभी भूत -प्रेत ,जिन्नात शामिल हुए हैं। सभी दर्शक अपनी -अपनी कब्रों से निकलकर ,हवा में लटकाई गयी ,कुर्सियों पर विराजमान हो रहे थे। आज बहुत बड़ी संख्या में ,भूत दर्शक आये हैं। मैदान में एक तरफ मुंडियां रखीं थीं , दूसरी तरफ , हपस की खोपड़ियां लटकाई गयीं हैं। इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले सभी विद्यार्थी अपने को तैयार करने में जुटे थे।

 आज समाचार पत्र ''खंडहरों की खबरें ''से कैमरामैन रोहित शेट्टी और रिपोर्टर ठाकुर वीर प्रताप सिंह भी आए हैं। कार्यालय में प्रतियोगिता है इसका आंखों देखा हाल भी यह लोग बताएंगे। कैमरा भी तेेयार था और विद्यार्थी  भी तैयार  थे। प्रधानाचार्य  'नटवरलाल जी ''मंच को सँभालते हैं और कहते है - यहाँ  भूतों की दुनिया में ,आप सभी भूतों ,प्रेतों का स्वागत है ,उम्मीद करता हूँ आप सभी इस भूत ज़िंदगी का आनंद ले रहे होंगे।कुछ इस ज़िदगी के लाभ भी उठा रहे होंगे, तो कुछ अपने दुश्मनों से बदला ले रहे होंगे और कुछ बदला लेकर मुक्त हो चुके होंगे। ऐसी मैं ,उम्मीद करता हूं , हमारी इस'' भूत दुनिया ''के विद्यालय के कुछ होनहार छात्र हैं , जो आज प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं। मैं उम्मीद करता हूं ,आप लोगों के आने से उनका उत्साहवर्धन हुआ होगा , प्रतिदिन एक प्रतियोगिता होगी , और सभी समूहों को उनके अंक प्राप्त होंगे। 


जिस भी समूह ने सबसे ज्यादा अंक प्राप्त किए होंगे, वही विद्यार्थी जीतेंगे वही समूह भी जीतेगा। मैं अपने छात्रों से अनुरोध करता हूं , यह खेल प्रतियोगिता है ,  इसका आनंद लें , खेल की भावना से ही, इस खेल को खेलें , किसी भी प्रकार का दबाव अपने मन पर ना मानें । हमारे यहां के सभी विद्यार्थी एक से एक बढ़कर हैं , होनहार हैं , किंतु प्रतियोगिता में हार जीत तो लगी ही रहती है , इसका दबाव अपने ऊपर ना लें। हमारा विद्यालय भूत ,प्रेतों की दुनिया में एक मिसाल बनकर रहेगा। हमारे विद्यार्थी कुछ नया सीखते हैं , और नई सोच कायम करते हैं। इसी कारण'' खंडहरों की खबरें'' समाचार पत्र से ठाकुर वीर प्रताप सिंह जी और रोहित शेट्टी जी भी आए हैं। हम उनका स्वागत करते हैं। शमशान के मैदान में, जितने भी भूत दर्शक हैं हम उन सभी का अभिनंदन करते हैं।मैं उम्मीद करता हूं कि हमारे होनहार छात्र ,जीतने के साथ-साथ आप लोगों का मनोरंजन भी  करेंगे। खेलों का आरंभ करते हुए आज हमारा सबसे पहला खेल है ,''हपस की खोपड़ी '' 
 धन्यवाद !

कहने के पश्चात ,''प्रधानाचार्य नटवरलाल जी ''अपने मंच  से उतरकर ,अपनी स्थान पर  विराजमान हो जाते हैं। खेल देखने के लिए ,सभी भूतों का उत्साह ,देखते ही बन रहा था। सभी छात्र भी अपने अपने स्थान पर उपस्थित हो जाते हैं। कैमरामैन रोहित शेट्टी भी अपना कैमरा तैयार करके रहता है। 

तभी एक प्रेत , अपने पास वाले प्रेत से कहता है -देखना अब की बार ''रूद्र समूह '' ही जीतेगा , पिछले दो  वर्ष से ,यही समूह जीत रहा है। 

मुझे तो अबकी बार ''शूल समूह '' की उम्मीद ज्यादा लग रही है ,दूसरे ने आशंका जतलाई।  

चलो !जो भी होगा देखा जाएगा , इस विद्यालय के विद्यार्थी , मेहनती हैं अब देखते हैं ,किसकी खोपड़ी सबसे  पहले भरती है। चमगादड़ों  की उड़ान के साथ ही, खेल आरंभ होता है। सभी बच्चे अपने - अपने हाथ में , रक्त से भरी  खोपड़ी लेकर , आगे बढ़ते हैं , इस तरह आगे बढ़ना भी आसान नहीं था , कभी रास्ते में धुआं छोड़ा गया , कभी रास्ते में हड्डियां बिखेरी गईं , ताकि वह हड्डियों में उलझ जाएं , कभी उस राह को रक्त से चिकना कर दिया गया जिससे वह फिसल जाएं। हुआ भी ऐसा ही , कुछ छात्र कंकालों में फंस गए , कुछ  छात्र  चिकनी जगह पर फिसलने लगे , उनके हाथों से रक्त भी उछल रहा था और नीचे गिर भी रहा था। किसी तरह ''हपस की खोपड़ी'' के करीब पहुंचे , जब उस में रक्त डाला , किसी की कुछ बूंदे ही गिरी, किसी का थोड़ा और हिस्सा भर गया , किंतु जब सूरज ने अपनी हपस की खोपड़ी में डाला, तब आधी खोपड़ी भर गई। यह देखकर सभी का ध्यान सूरज की तरफ गया , लग रहा था जैसे आज चांद पूरब में नहीं निकला। सभी को आश्चर्य हो रहा था इतना छोटा बच्चा , इतनी जल्दी इस कठिन परीक्षा को कैसे पूर्ण करने का प्रयास कर रहा है और उस प्रयास में सफल भी हो रहा है। सभी भूत-प्रेतों ने अपनी अजीब -अजीब सी आवाजें निकालकर सूरज का उत्साहवर्धन किया। सूरज से पहले जो छात्र थे वह उससे चिढ़ गए और आंखों ही आंखों में उन्होंने इशारे किए , कि हम जीतें या ना जीते किंतु इसको हराना है। 

इससे पहले ,जब भी यह खेल होता था , तब उसके आठ -दस चक्कर लगते थे , अबकी बार देखने में तो लग रहा था कि है खेल दूसरे चक्कर में ही समाप्त हो जाएगा। अभी मध्यरात्रि ही हुई थी सभी ने आसमान की तरफ देखा ,सितारे चमक रहे थे। सभी इंसान सोए हुए थे , किंतु एक स्थान ऐसा था जहां पर, कुछ कार्यक्रम चल रहे थे वो था भूतों का श्मशान घाट , जिसमें आज भूतों के विश्वविद्यालय के कुछ छात्र, खेल में भाग ले रहे थे , सभी भूत अपने अपने स्थान से निकलकर, हवा में तैरती कुर्सियों पर बैठे थे। सब की मुंडी घूम रही थी। अबकी बार दूसरा चक्कर होने वाला था सभी समूह के बच्चे अपनी-अपनी तैयारी में थे किंतु उन सब से बेपरवाह सूरज , दूसरे चक्कर में ही उसकी खोपड़ी को भर देना चाहता था। उसकी कोई इच्छा नहीं थी , इस वक्त वह बिल्कुल शांत था , किसी कर्तव्य परायण की तरह अपना कर्तव्य निभा रहा था। मन से  वह बिल्कुल शांत था । 

फिर से चमगादड़ों  की उड़ान के साथ ही खेल आरंभ होता है , सभी छात्र आंखों ही आंखों में सूरज को हराने का , इशारा कर चुके थे। सभी ने फिर से अपने अपने हाथों में खोपड़ी ले ली उनमें रक्त भरा गया और सब अपनी मंजिल की ओर चल दिए , सूरज चुपचाप अपनी मंजिल की ओर बढ़ चला उसके ऊपर मल मूत्र फेंका गया , एक लड़के ने तो इतनी हिम्मत कि अपनी लाइन से निकलकर , अपनी टांग अड़ा दी , तब सूरज थोड़ा डगमगाया तुरंत ही संभल कर आगे बढ़ गया , जैसे उसका उद्देश्य उसकी राह देख रहा है, उसे किसी से कोई लेना देना नहीं था। फिसलने के लिए  जब अंडे फेंके गए , वह उन पर ऐसे चल रहा था जैसे, पानी में तैर रहा हो , उसकी चलने की रफ्तार बढ़ गई थी , तुरंत ही अपने को संभाला और आगे बढ़ गया।सभी दम साधे उस खेल का अंजाम देखना चाहते थे। पहला वाला प्रेत बोला -अरे इस बच्चे ने तो कमाल कर दिया ,मुझे लगता है ,न ही तुम्हारा समूह जीतेगा ,न ही मेरा अबकि ये नया भूत बच्चा ही जीतेगा ,न जाने ,किस तरह से इस योनि में आ गया। इंसान होता तो ,अब तक कितना आगे बढ़ गया होता ?


मैंने सुना है , स्कूली बस की दुर्घटना के समय ,ये उसी बस में था। इसके साथ इसके और भी साथी  हैं। 

तभी आज ये स्कूल में रहकर ,भूतों की दुनिया का नाम आगे बढ़ा रहा है ,भई !हमारे हिसाब से कोई भी जीते ,नाम हमारा ही होगा। अभी ये लोग इसी तरह की बातचीत कर रहे थे ,तभी दूर आपसे में कुछ भूतों में मारा -मारी होने लगी ,अरे देखो तो सही ,ये आपस में क्यों लड़ रहे हैं ? 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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