Shrapit kahaniyan [part 79]

 रमा के,  स्वप्न के माध्यम से, शेफाली को पता चल जाता है , कि दीपशिखा का उद्देश्य सही नहीं है। न ही , वह सुबोध से प्रेम करती है , सुबोध को प्राप्त करना नहीं तो उसका ध्यान अपनी ओर खींचना उसकी जिद थी, वह चाहती थी ,अन्य लड़कों की तरह सुबोध भी, उसके आगे पीछे घूमे और अपनी बात को पूरी करने के लिए उसने  सुबोध पर ,'वशीकरण मंत्र 'का प्रयोग किया है। सबसे पहले शेफाली ने सोचा , क्यों न , इसके माता-पिता को इसकी हरकतों के बारे में बता दिया जाए, हो सकता है ,वही इसे गलत राह पर ,जाने से रोक दें। यह सोचते हुए शेफाली , उसके घर के इर्द-गिर्द घूमने लगी और सोचने लगी ,कि किस तरह से इसके घर वालों को उस कमरे की जानकारी दी जाए। वह चाहती तो, उसके घर वालों के सामने ,वह आ सकती थी , किंतु यह उसे उचित नहीं लगा ,तब वह सोचती है ,इतने बड़े घर में ,उन्हें इस कमरे की ओर किस तरह उनका  ध्यान आकर्षित किया जाये , तब वो उसके  कमरे में चली गयी ,उसका अदृश्य होना ,अब उसे फलदायक लग रहा था। वैसे ईश्वर जो भी कराता है ,अच्छे के लिए ही कराता है ,उसने मुझे 'कुंभर्क 'से श्राप भी दिलवाया ,तो कुछ सोचा ही होगा ,वो श्राप आज मेरे लिए ,आर्शीवाद से कम नहीं ,वह उसके कमरे जाकर , कुछ आवाजें  करने लगती है।


 

घर के नौकर ने ये आवाजें  सुनी, किन्तु वो अभी साहब के लिए ,कपड़े स्त्री करवाकर लाया था ,उसके पश्चात भूल गया। बड़े लोगों का और बड़े घरों का यही हाल होता है ,उन्हें पता ही नहीं होता ,किस कमरे में क्या हो रहा है ?काम भी इतना होता है ,कि किसी को समय ही नहीं है ,इतने नौकर होने पर भी ,सबकी परेड सी हो जाती है। इधर साहब के कार्य हैं , मालकिन के कार्य , उनकी रसोईघर में सहायता चाहिए। वो तो अच्छा है ,एक नौकरानी भी है ,तब भी किसी को फुरसत नहीं ,इसी कारण साहब को ये भी नहीं मालूम  ,उनकी बेटी किस राह पर चल निकली है ? कुछ समय पश्चात ,उस दरवाजे से फिर से आवाज आती हैं , रामदीन सोचता है , ये दरवाजा तो बंद है , तब ये आवाज कैसे आ रही है ? हो सकता है ,कोई चूहा आ गया हो , उसे निकालना तो पड़ेगा। साहब को, पता चल गया तो नाराज होंगे। तभी उसे घर की मालकिन ने बुला लिया , जा जल्दी बाजार जा , और इस पर्ची में मैंने,जो  सामान लिख दिया है वह सामान लेकर आना। 

जी, कहकर उसने सामान की पर्ची ,पैसे और थैला लिया और घर से बाहर निकल गया। सोचने लगा -मैं भी क्या- क्या करूं ? जब कोई उस आवाज को सुनेगा तो अपने आप ही देख लेगा , इस तरह आश्वस्त होकर वहां से निकल गया। 

शेफाली समझ नहीं पा रही थी, किस तरह इसके माता-पिता को, दीपशिखा के प्रति सचेत किया जाए ताकि वह जान सकें, कि उनकी लड़की क्या कर रही है ? फिलहाल कुछ उम्मीद न देखकर,शेफाली वहां से आ गई। रमा आज फिर से शेफाली को देखकर डर गयी ,उसे वो दृश्य स्मरण होने लगे , जब दीपशिखा ने स्वर्ण लता की बलि दी थी , और उसके लहू को पी रही थी , यह सब सोच कर वह काँप उठी , अब तक दीपशिखा का उस पर ध्यान नहीं गया था किंतु आज की उसकी हरकतें देखकर , वह समझ गई ,अवश्य ही, इसने  कुछ देखा है। कहीं इस ने स्वर्ण लता को तो , मेरे साथ नहीं देख लिया। दीपशिखा ने उसे प्यार से बुलाया। 

 वह काँपते हुए ,उसके सामने आई और बोली -जी दीदी !

तुम मुझे देखकर इतना डर क्यों रही हो ? दीपशिखा ने उसे घूरते हुए पूछा। 

नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, बनावटी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते हुए ,रमा बोली। 

तभी दीपशिखा ने ''अंधेरे में तीर छोड़ा'' और बोली -कहीं तुम, उस दिन तांत्रिक मतंग के आश्रम में तो नहीं थीं। उसका तीर सही निशाने पर लगा। 

रमा बुरी तरह घबरा कर कांपने लगी और रोते हुए बोली -नहीं, दीदी मैंने कुछ नहीं देखा  , मैं किसी से कुछ भी नहीं कहूंगी।

 दीपशिखा ने मन ही मन सोचा -ओह ! तो यह वही लड़की है , जिसका मुझे भ्रम हो रहा था , इसने मुझे स्वर्ण लता की बलि देते हुए देख लिया है , रमा से, आवाज में झूठी कोमलता लाते हुए बोली -यह तुमने अच्छा नहीं किया , ऐसे किसी को बलि देते हुए नहीं देखते हैं , वरना पाप लग जाता है , उसे डराते हुए बोली - और वह पाप अब तुमने कर दिया उसका प्रायश्चित तो करना पड़ेगा ना , कहते हुए ,उसकी तरफ घूरने लगी। 

नहीं , दीदी !मैंने किसी से कुछ भी नहीं कहा।

कहोगी तो जब, जब तुमने कुछ देखा होगा , तुमने तो कुछ देखा ही नहीं ,कहते हुए हंसने लगी। 

तभी चेहरे पर कठोरता लाते हुए बोली -कहा नहीं ,देखा तो है , न जाने तुम्हारी यह जबान कब फिसल जाए ? इस समय रमा को ,दीपशिखा का चेहरा बहुत ही भयंकर और डरावना नजर आ रहा था। उसे ऐसा लग रहा था ,उसके सामने दीपशिखा नहीं बल्कि उसकी मौत खड़ी है। दीपशिखा ने आसपास देखा, विद्यार्थी इधर -उधर जा आ जा रहे हैं, तब रमा से बोली -चलो !कॉलेज के पीछे चलते हैं। 

रमा समझ गई, इसके इरादे बहुत ही खतरनाक हैं , बोली -मुझे कहीं नहीं जाना ,कहते हुए वहां से भाग गई। ये समय ऐसा था , दीपशिखा कुछ कर भी नहीं सकती थी , कॉलेज में बहुत सारे लड़के लड़कियां घूम रहे थे , किसी भी की भी दृष्टि ,उसकी ओर जा सकती थी। हो सकता है , घबराहट में रमा के मुंह से ही कुछ निकल जाए यही सब सोचते हुए दीपशिखा ने उसे जाने दिया। 



दीपशिखा की शैतानी शक्ति मन ही मन मुस्कुरा रही थी, और वह कह रही थी -''बकरे की अम्मा कब तक खैर मनायेगी ? '' जो दीपशिखा सबको बहुत सुंदर और अच्छी लगती थी अब उसकी काली शक्तियां धीरे-धीरे जागृत होने लगी हैं।जो लड़के उसकी सुंदरता पर जान देते थे , अब तो उन्हें अपने नजदीक बुलाने लगी और एकांत में भी ले जाने लगी , उनसे अपने तन और मन दोनों की ही, भूख मिटाने लगी। वह जीती -जागती चुड़ैल होती जा रही थी , हो नहीं रही थी वरन  बन गई थी। अब उसका अगला शिकार रमा है , रमा समझ गई थी अब वह ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह पाएगी , इसी ड़र से ,दो  दिनों  से  कॉलेज भी नहीं आई। 

शेफाली  मन ही मन परेशान थी और सोच रही थी, ईश्वर ने मुझे इससे क्यों मिला दिया ? जोड़ा  मिलाने के लिए लड़की भी मिली तो ऐसी...... 

मुझे अपना ''श्राप '' पूरा करके इस जीवन से मुक्ति लेनी है ,किंतु न जाने ईश्वर ,मुझसे और क्या करवाना चाहता है ? कुछ समझ नहीं आ रहा कि मुझे इस दीपशिखा नाम की चुड़ैल से क्यों मिलवा दिया ? क्या मुझे इतनी शीघ्र  इस ''श्राप '' से मुक्ति नहीं मिलेगी , या उस ईश्वर ने कुछ और ही सोच रखा है। सोचते हुए , शेफाली उसके कॉलेज की तरफ बढ़ गई। 



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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