Jail 2 [part 12]

आज फिर' जेल 'से एक लड़की गायब हुई है , यह क्या हो रहा है ? क्या किसी को भी इसकी जानकारी नहीं है ? कोई नहीं जानता ? इसमें किसका हाथ है ? इस तरह तो कानून पर, किसी का विश्वास रहेगा ही नहीं , वह लड़कियां ऐसी थीं  जिनकी अभी सजा बाकी थी।  स्वयं तो ,वह भाग नहीं सकतीं  , जब तक उन्हें किसी का सहारा ना मिले। तभी नई पुलिस वाली' तनु 'से , एक पुलिस वाली कहती है -मुझे तो लगता है , इसमें पुरानी कैदियों का हाथ है , हो सकता है, आदमियों में भी , कुछ पुराने कैदी इसमें  शामिल हों क्योंकि इस जेल में एक अकेली लड़की या महिला कैदी ही ये कार्य नहीं कर सकती। इसमें अवश्य ही कोई पुरुष कैदी भी शामिल है , उन लड़कियों का जरा पता लगाना , उनकी अभी कितनी सजा बाकी थी ? और यह भी पता लगाना , वह अपने घर पहुंची हैं या नहीं , यह सभी जानकारी हमें गोपनीय  लानी होगी। उनके घरवालों को इसकी भनक भी नहीं लगनी चाहिए ,वैसे चाहे मिलने  भी न आएं किन्तु उनके गायब होने की जानकारी मिलते ही बखेड़ा खड़ा कर देंगे।  कल को यदि उनके घर वालों ने उनके विषय में पूछा तो, हम क्या जवाब देंगे ? जेलर साहब भी एक  महीने से छुट्टी पर हैं , हम उन्हें [जेलर साहब ]क्या जवाब देंगे? परेशान होते हुए तनु अपने साथ वाली से कह और पूछ रही थी। 


मैडम ! हम पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं ,लेकिन कोई भी कैदी , कुछ नहीं जानता या जानता भी है तो शायद ,पुरानी कैदियों के डर के कारण भी , कुछ कह नहीं पाता। 

ह्म्म्मम्म्म्म , कुछ सोचते हुए,तनु कहती है , यह कैदी पिट-पिटकर इतने मजबूत हो गए हैं , इन पर बातों का तो कुछ असर होगा ही नहीं। पुलिस का डर तो इन्हें रहा ही नहीं , इनका अपना दबदबा चलता है। 

मैडम ! परेशान होने से कुछ नहीं होगा, जैसा चल रहा है ,चलने दीजिए। क्यों अपना माथा खपा रही हैं , इन लोगों को जो करना है, वह कर के रहते हैं , इसीलिए आराम से बैठो ! पुरानी वाली 'मैडम 'भी तो यही करती थीं , शुरू -शुरू में उन्हें भी ,चाव चढ़ा था किंतु हुआ, कुछ भी नहीं ,तब थक हार कर बैठ गईं। यह लोग हत्यारे हैं , उठाई गिरे हैं , ऐसे जगहों  पर इनकी परवरिश हुई है, आए दिन ,इनके सामने यह कांड होते रहते हैं, इन पर कोई फर्क नहीं पड़ता ,यह मजबूत हो चुके हैं, इस चीज के आदि हो गए हैं। अब तक जो भी जेल में  लड़कियां या महिलाएं गायब हुई हैं ,आज तक तो, उन्हें पूछने कोई नहीं आया। जब एक बार जिंदगी पर , 'अपराधी 'का धब्बा लग जाता है , तब घर वाले भी ,उन्हें स्वीकार नहीं करते , यदि किसी के घर वाले स्वीकार कर भी लें , तब समाज वाले उन्हें चैन से जीने नहीं देते। उनकी जिंदगी तो'' धोबी के कुत्ते '' जैसी हो जाती है , ना घर के ना घाट के....... एक बात बताऊं मैडम जी , थोड़ी धीमी आवाज में वह बोली -यहां रहकर भी उनकी दुर्गति होती है। 

यह जेल है ,कोई होटल नहीं , यहां उन्हें सजा के लिए रखा जाता  है , ताकि उन्हें अपनी गलतियों का एहसास हो , तनु ने कहा.

गलत ,मैडम ! गलत , यहां आकर उन्हें अपनी गलतियों का एहसास नहीं होता , कई बार तो ऐसे लोग भी आ जाते हैं ,जिन्होंने गलती कोई की ही नहीं होती , बेचारे वक्त के मारे फंस जाते हैं , किंतु जबरदस्ती उन पर वह 'अपराध थोप ' दिया जाता है। और जब ऐसे सीधे-साधे लोग ,इस जेल में आकर खूंखार अपराधियों के साथ रहते हैं। तब आप उनसे क्या उम्मीद करती हैं ? क्या वह सुधरेंगे ? अपराधी लोगों में इतनी नकारात्मकता भरी होती है, कि वह ना अपराध करने वाले से भी ,अपराध करा देते हैं। और कभी-कभी तो ऐसी हालत हो जाती है कि आदमी अपनी मौत की दुआएं मांगता है। 

यह सब तुम मुझे क्यों बता रही हो ? क्या तुम्हारा ही हाथ तो नहीं है ?उन लड़कियों को गायब करने में, तनु ने तीखी नजरों से उसे देखा। 

पान खाते हुए वो,  मुस्कुराई , और बोली-मैंने समाज को सुधारने का कोई ठेका नहीं लिया है , मैं अपनी ड्यूटी पूरी करती हूं और अपने बच्चों का पेट पाल रही हूं। मैंने तो बस जो यहां होता है ,वह आपको बताया , बाकी आपकी इच्छा !कहते हुए वहां से चली गई। वह जानती है, महिला कैदियों के साथ कितना गलत व्यवहार होता है ? किंतु कर कुछ नहीं पाती , यही बात उसने तनु को भी समझाने का प्रयत्न किया था। शायद उन लड़कियों का बाहर जाना उनके हित में हो। 

तनु को लगा, शायद यह बुरा मान गई , उसके नजदीक आकर बोली -मैं तुम्हारी भावनाओं को समझती हूं , हो सकता है ,तुम सही हो किंतु यह भी हो सकता है, कि बाहर ले जाकर कहीं उनका दुरुपयोग हो रहा हो इससे भी ज्यादा नरक की जिंदगी जी रही हों , अगर वह सही जगह पर हैं ,तो हमें कोई परेशानी नहीं किंतु आजकल समाज में ऐसे- ऐसे अपराध फैले हुए हैं ,कि जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते , उस नजरिए को देखते हुए, उनको  बचाना भी तो जरूरी है, दूसरी बात यह , यह जेल है, कोई खेल का मैदान नहीं ,होटल या धर्मशाला नहीं , इतनी पहरेदारी के पश्चात  भी जेल से किसी का बाहर जाना, यह हमारी सुरक्षा व्यवस्था  पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। हमारी कैसी सुरक्षा व्यवस्था है? जो हमारे कैदी ही ,सुरक्षित नहीं है। 

अमृता जी ने सत्तो  को जाते हुए देख लिया , उन्होंने उसे कैदी नंबर  से बुलाया और वह आ गई , तुम उस दिन कुछ बताना चाहती थीं। 



हां ,बताना तो चाहती थी, उसने ठंडे से स्वर में कहा किंतु अब कोई लाभ भी नहीं, ना ही ,आप कुछ कर सकती हैं और ना ही मैं ,कुछ कर सकती हूं। 

नहीं ,मैं कुछ कर तो नहीं पाऊंगी , किंतु मैं जानना चाहती हूं, इस 'जेल' में आखिर हो क्या रहा है ? हो सकता है कल को तुम पर या  मुझ पर भी इस तरह की समस्या आ जाए , इसलिए हमें जानना जरूरी है। 

मैडम जी !मैं ,कुछ ज्यादा तो नहीं जानती किंतु मुझे इसमें ''बरखा ''का हाथ लगता है। 

क्या?? वह आश्चर्य से बोलीं -क्या ? कैदी नंबर 112 

जी हां, तभी मैं आपसे कह रही थी, जो जैसा दिखता है ,कभी-कभी वह वैसा होता नहीं है। 

अमृता जी को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था , उन्हें लग रहा था ,सत्तो  ने कोई गलत ही नाम ले दिया। सोचते हुए ,एक जगह पर बैठ गईं  , देखने में तो बड़ी सीधी और सच्ची लड़की लगती है, वह भला ऐसा क्यों करेगी ? तुम ऐसा कैसे कह सकती हो ? क्या सोचकर उस पर इल्जाम लगा रही हो ? अमृता जी ने अविश्वास से सत्तो से पूछा। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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