अमृता जी, जब पहली बार इस 'जेल 'में आई थीं , तब बरखा से ही तो उनका परिचय हुआ था, बरखा के अच्छे व्यवहार ने हीं तो उन्हें यहां रहने की हिम्मत दी थी , उसी ने , इन सबसे भी मिलवाया था।गहरी स्वांस लेते हुए , कुछ समझ नहीं आता कौन कैसा है ?क्या है ? उस समय तो, सत्तो के व्यवहार ने , उसका अलग ही रूप दर्शाया था , आज देखने से लग रहा है कि बरखा 'खलनायिका' बन गई है और यह नायिका। अमृता जी , परेशान हो रही थीं ,समझ नहीं आता किस पर विश्वास किया जाए और किस पर नहीं ? ताउम्र यही चलता रहता है , किंतु हम किसी के स्वभाव को, उसके व्यवहार को, उसकी सोच को, नहीं पढ़ पाते हैं। यदि उसने ऐसा किया भी है तो क्यों किया है, इसके पीछे उसका क्या उद्देश्य हो सकता है ? यह तो उससे बात करने पर ही पता चलेगा , अब तो लिखने में भी ,मन नहीं लग रहा है जब तक, इस बात की तह तक ना पहुंच जाएं। अंदर ही अंदर इस जेल में न जाने क्या हो रहा है ? यदि इस जेल में लड़कियां हैं तो, जाती किधर हैं ?नारी की इतनी दुर्दशा है ,वो ''जेल ''में भी सुरक्षित नहीं हैं । इस बात का कौन लाभ उठा रहा है ?अनेक प्रश्न अमृता जी के मन में घुमड़ रहे थे , इससे पहले जो पुलिस वाली थी ,उसने तो कभी ऐसा नहीं दर्शाया, या फिर यह नई- नई आई है ,अपना प्रभाव डालने के लिए ऐसा कर रही है या फिर वो महिलाओं के प्रति ज्यादा ही सचेत हो रही है , किंतु कोई झूठ क्यों बोलेगा ?
पौधों को पानी देते हुए ,अभी वह यह सब सोच ही रही थीं, तभी उन्हें बरखा दिखाई दी। क्या इससे पूछूँ ? अपने आप से मन ही मन प्रश्न किया, क्या सीधे-सीधे इससे पूछना सही रहेगा ? यदि यह इन लड़कियों के गायब होने में शामिल भी है ,तो यह क्यों बताने लगी ? जब वह उनके करीब आई , तब वह बोलीं - भई ! कैदी नंबर 112 आजकल तुम्हारे रहते , इस जेल में क्या हो रहा है ? आखिर लड़कियां चली कहां जाती हैं ?
अब इस विषय में ,मैं आपको क्या बताऊं ? मैं कुछ नहीं जानती।
क्या ऐसा हो सकता है, इस जेल का ही, कोई कैदी इसमें शामिल हो ? या फिर कोई पुलिस वाली ! एक दिन मुझसे किसी ने कहा तो था, उन्होंने सत्तो का नाम छुपा लिया , शायद जेल का ही कोई कैदी है , वह पुरुष भी हो सकता है ,या फिर कोई महिला कैदी !उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से अपना संदेह ज़ाहिर किया।
आप क्यों परेशान होती हैं ? पुलिस तो अपनी कार्यवाही कर ही रही है , बरखा ने उत्तर दिया।
थोड़ी धीमी आवाज करके बोलीं -मैंने सुना है ,यहाँ महिला कैदियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता एक दिन तो मैंने भी देखा था ,एक लड़की को, एक रोटी के लिए कितना पीटा था ? हो सकता है ,इसीलिए वह लड़कियां , अपनी इच्छा से ही भाग रही हों , और उनकी भलाई के लिए कोई उनकी सहायता कर रहा हो।
अबकि बार उनकी बात कुछ जमी, बरखा ने मुंह खोला - जेल में रहकर ही,उनकी कौन सी जिंदगी अच्छी कट रही है ? आप नहीं जानती हैं , उनके साथ क्या-क्या हो जाता है ? जो पुराने कैदी हैं , वह उनसे सभी कार्य करवाते हैं , शौचालय और स्नानागार धोने से लेकर, कपड़े धोने तक ,साफ-सफाई भी करवाते हैं इसके साथ-साथ सोने को सही जगह भी नहीं मिलती और उसके बाद भी उनका'' शारीरिक शोषण ''करते हैं।
यह तुम क्या कह रही हो ? अमृता जी को तो जैसे विश्वास ही नहीं हुआ , क्या यह सच है ?
जी , यह शत -प्रतिशत सत्य है।
तुम सभी महिलाएं एक जुट क्यों नहीं हो जाती हो ? जो ऐसा करते हैं ,परिस्थितियों का लाभ उठाते हैं उनके विरुध क्यों नहीं खड़ी हो जाती हो ?
कैसे खड़ी हो जाएं ? यहाँ ऐसे ही ,जो पुरानी शातिर ,चालाक, खूनी , मंझी हुई ,घाघ , बहुत पुरानी, डॉन कैदी हैं , वह किसी की सुनती ही नहीं , और वह उन शातिर पुरुषों से भी मिली हुई हैं। जब किसी पुरुष को किसी महिला कैदी के साथ सोना होता है , तब यह उसे भेज देती हैं , और यदि वह महिला मना करती है , तो उसकी अच्छे से खबर लेती हैं ,उसे अच्छे से कूटती हैं। आपने देखा नहीं ,नाजिया और सुल्ताना किस तरह ,उस लड़की को एक रोटी के लिए पीट रही थीं।
क्या इनसे कोई कुछ कहता नहीं ? अभी जो वह पुलिस अधिकारी गई थीं उनसे इनकी शिकायत करनी चाहिए।
शिकायत करके क्या हो जाएगा ? वह थोड़ा डांटेंगे, एक -दो डंडा भी मार देंगे , यह लोग तो ऐसी ही हैं इन पर कोई फर्क नहीं पड़ता इनकी चमड़ी मोटी हो चुकी है, किंतु उसके पश्चात , उस कहने वाले की जो शामत आएगी ,आप उसकी कल्पना भी नहीं कर सकतीं , वह जीते जी मरने की दुआएं मांगेगा।
क्या ?तुम्हारे साथ कभी ऐसा कुछ.......
मैं इन सबसे सब से अलग नहीं हूं ,[वहां आस -पास घूमते ,कार्य करते कैदियों की तरफ देखते हुए कहती है ] इन्हीं का हिस्सा हूँ , समाज का सताया इंसान ! या फिर परिस्थितियों का मारा इंसान इस'' जेल ''में आकर कैद हो जाता है , न जाने उसके मन में कितने विचार चल रहे थे ?या चल रहे होते हैं। अपनों से बिछुड़ने का भय , लोगों का तिरस्कार , झूठे सच्चे गवाह, झूठे सच्चे इल्जाम ! उस समय न जाने वो, क्या -क्या झेल रहा होता है ? और जब वह इस जेल में आता है , यहां कोई उसका हमदर्द नहीं होता , उसके दुख -दर्द को बांटने वाला नहीं होता , उसको समझने वाला नहीं होता , उन्हीं उलझनों में उलझा हुआ , वह इंसान , अकेला अपने दर्द को झेल रहा होता है , न जाने कैसी और किन परिस्थितियों में , उससे गुनाह हुआ है , हुआ भी है या नहीं , किंतु बाहर तो उसका जुर्म साबित हो ही गया। और इस जेल के अंदर आकर , जो वह यातना झेलता है , वह किसी नर्क से कम नहीं। यहां किसी को, किसी के दर्द से कोई सरोकार नहीं। यह सब वहशी बने हुए हैं। जब मैं यहां आई थी , बहुत परेशान और दुखी थी, बाहर क्या कम परेशानियां थी ? मैं शांत रह कर , अपनी सजा को काटना चाहती थी , मैंने जुर्म किया या नहीं किंतु अपराध तो साबित हो ही गया था, किसी से कहने का कुछ लाभ ही नहीं था, क्योंकि मैंने अपना जुर्म कबूल कर लिया था।
ऐसा तुमने क्या किया था ?
मैंने चंद पैसों की खातिर ,किसी के कत्ल का इल्ज़ाम अपने ऊपर ले लिया था।
यह तुम क्या कह रही हो ? अमृता जी आश्चर्य से बोली।

