एक डरावना सच ,मेरी जिंदगी का ऐसा भी है।
मैंने खाया वह लड्डू ! जिसका स्वाद मिश्रित सा है।
चखा भी न था,साला.... हकीकत दिखला गया।
मुझे घर -गृहस्थी के, दो पाटों में ,उलझा गया।
दिखने में तो, मीठा सुंदर -स्वाद नजर आता है।
इसका स्वाद कैसा है ?यह मेरे पिता को भी पता है।
फिर भी न जाने क्यों ? उन्होंने मुझे भी, फंसा दिया।
चखा था ,जब लड्डू उन्होंने, मुझे भी... चखा दिया।
न जाने मेरे, पिता ने मुझसे ,किस जन्म का बदला लिया ?
गृहस्थी के ,डरावने सच के, सामने लाकर खड़ा किया।
मां और बीवी , दो पाटों के बीच में , पिसकर रह गया।
ब्याह तो ,सुंदर नार से हुआ था ,आज वो राज बनकर रह गया।
मैंने कुछ नहीं कहा दोस्तों ! आज डरावना सच बनकर रह गया।
