Draavana sach !

एक डरावना सच ,मेरी जिंदगी का ऐसा भी है। 

मैंने खाया वह लड्डू ! जिसका स्वाद मिश्रित सा है। 

चखा भी न था,साला.... हकीकत दिखला गया। 

मुझे घर -गृहस्थी  के, दो पाटों में ,उलझा गया। 



दिखने में तो, मीठा सुंदर -स्वाद नजर आता है। 

इसका स्वाद कैसा है ?यह मेरे पिता को भी पता है। 

फिर भी न जाने क्यों ? उन्होंने मुझे भी, फंसा दिया।

चखा था ,जब लड्डू उन्होंने, मुझे भी... चखा दिया। 

न जाने मेरे, पिता ने मुझसे ,किस जन्म का बदला लिया ?

गृहस्थी  के ,डरावने सच के, सामने लाकर खड़ा किया। 

मां और बीवी , दो पाटों के बीच में , पिसकर रह गया। 

ब्याह तो ,सुंदर नार से हुआ था ,आज वो राज बनकर रह गया। 

मैंने कुछ नहीं कहा दोस्तों ! आज डरावना सच बनकर रह गया। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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