Asi bhi zindgi [part 79 ]

नीलिमा अपनी बातों से ,राघव को समझाती है किन्तु उसके समझाने का राघव पर विपरीत असर होता है। वो उसकी बातों से चिढ जाता है ,अपना आना उसे व्यर्थ लगने लगता है ,उसे लगता है ,इसके मन में अब सम्मान तो रहा नहीं ,बेइज्जती हुई सो अलग। जिस कारण से वो आया ,वो कार्य भी नहीं हो पाया ,इस कारण वो अब अपनी शक्ति के बल पर नीलिमा को हासिल करना चाहता है किन्तु उसकी मंशा भांपकर नीलिमा उससे बचने के लिए , पहले ही सोफे के पीछे चली जाती है। 

राघव कहता है -तूने मेरी बहुत बेइज्जती की है ,मैं तो प्यार से तेरे से मिलने आया था और तूने मेरी बेइज्जती की। 


मैंने तेरी बेइज्जती नहीं की ,वरन तूने मेरे घर आकर मेरे सम्मान को ठेस पहुंचाई है। अब तुम इसी समय बाहर निकल जाओ !वरना शोर -शराबा होने पर बच्चे उठ जायेंगे। 

उठ भी जाने दो ,उन्हें भी तो पता चले -कि उनकी माँ क्या है ?

मैं क्या हूँ ,ये वो जानते हैं, किन्तु तुम्हारा क्या होगा ? जब पुलिस यहाँ आ जायेगी और हम लोग कह देंगे ,कि कोई चोर घुस आया है ,हम इसे नहीं जानते ,तब पुलिस तुम्हें ले जायेगी ,तुम्हें यहाँ कोई नहीं जानता। तुम्हारे घर में किसी को, पता भी नहीं होगा कि तुम यहाँ हो। तब मैं फोन पर तुम्हारी करनी बताकर ,बुआ को फोन कर दूंगी। तब तुम सोचो ! तुम्हारी गर्भवती पत्नी पर इसका क्या असर होगा ?और वो ये सब सुनकर ,जो भी करेगी उसके जिम्मेदार तुम स्वयं होंगे। मैंने बच्चियों को पहले ही सब समझा दिया है - कि बेटा ! हमारा भाई अबोध है और हम तीनों ही स्त्री जाति से हैं ,तब कोई भी हमारा लाभ उठाना चाहेगा क्योंकि हम पुरुषों से शारीरिक रूप से कमज़ोर तो हैं किन्तु दिमाग़ से नहीं ,तब ऐसा कुछ भी गलत देखो ! तुरंत पुलिस को फोन कर देना। 

नीलिमा की इस बात का उस पर असर तो हुआ ,और झुकना नहीं चाहता था ,तब बोला -तुम्हारा अकेलापन देख, मैं बौरा गया था। राघव ने घड़ी में समय देखा और उसके सामने कुछ ऐसा नजारा आ रहा था। जिसमें  अपमान और बेइज्जती के सिवा कुछ नजर नहीं आ रहा था या फिर उसे पुलिस अपने साथ ले जा रही है और वो जेल में अपने को पाता है। कोई  उसकी जमानत ,भी नहीं कराने आएगा ,आयेगा भी तो पूछेगा ,कि वो यहाँ कैसे पहुंचा ?तब उसके पास कोई जबाब नहीं होगा। वो कैसे कहेगा ?कि वो अपने मामा की बेटी से मिलने आया था और वो भी किसी गलत इरादे से...... उसकी गर्भवती पत्नी को पता चला तो ,वो कभी भी उसे माफ़ नहीं कर पायेगी। 

दूसरे ही पल उसके मन ने पलटा खाया ,ये मुझे व्यर्थ में ही डरा रही है ताकि मैं इसे छोडकर भाग जाऊँ ,मुझे कमजोर ,ड़रपोक समझ रही है। तब तक नीलिमा वही छड़ी उठा लेती है ,वो साहस से काम ले रही है किन्तु अंदर ही अंदर ड़र भी रही है ,यदि ये समझाने पर भी पलट गया तो उसे कैसे संभालेगी ?वो ये भी नहीं चाहती थी कि किसी भी तरह की आहट से बच्चियां ,जाग न जाएँ ,इस वक्त रात्रि भी है आवाज बाहर गयी तो, मौहल्ले वाले भी उठ सकते हैं। 

नीलिमा बोली -इस सबसे तुम्हें क्या मिलेगा ? ये रिश्ता तो तुमने अपने व्यवहार से खो दिया ,कभी दुःख -सुख में तुम्हें याद कर भी लेती ,तो दुःख के सिवा क्या मिलेगा ?इससे तो तुम न आते तो कम से कम ये भरम तो बना रहता कि मेरा एक रिश्तेदार जयपुर में रहता है ,कभी जाती तो मिलती और ख़ुशी भी होती किन्तु अब मिलना तो दूर ,अब सोचूंगी - ''तुम्हारी भूल से भी याद न आये।'' मैं चाहती हूँ ,अब तुम यहाँ से शराफ़त से चले जाओ ! इसी में तुम्हारी और मेरी भलाई है। नीलिमा उससे सतर्क रही ,कभी सोफे के पीछे ,कभी सेफ के पीछे ,इस तरह लुका -छिपी सी करते हुए उसे समझाती रही। 

अंत में राघव सोफे पर बैठ गया और बोला -अब तू जहाँ भी छुपी है ,आजा ! सच में मैं ,वहशी हो गया था। पता नहीं ,क्या सोचकर गाड़ी में बैठ गया था ? रिश्ते में तो बुआ का बेटा हूँ ,किन्तु हम लोगों में तो ये बंधन नहीं इसीलिए उस भाई के रिश्ते को न मानकर ,मैंने अपने अधिकार को जताना चाहा। तेरे प्रति मैं अपना फ़र्ज नहीं निभा पाया।सच में मैंने बहुत गलत किया।  

उसके शब्दों को सुनकर , नीलिमा बोली -तूझे यदि अपनी गलती का एहसास है तो यहाँ से चला जा..... 

देख ! मैं , ईमानदारी से जा रहा हूँ ,मैं चाहता तो.....  तेरी बच्चियों को ढ़ाल बनाकर भी ,मैं तुझसे संबंध बना सकता था, किन्तु मैंने ऐसा नहीं चाहा ,जब मैं तेरे साथ सोने का सोच सकता हूँ ,तो तेरी बेटियों से कैसा ड़र ?

खबरदार ! ऐसा सोचा भी तो... तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगी ,कहते हुए ,अपने एक हाथ में छड़ी और दूसरे में चाकू लेकर बाहर निकली। तूने ऐसा सोच भी कैसे लिया ? तू क्या समझता है ? मैं इतनी कमज़ोर भी नहीं कि कोई मेरी बेटियों पर निग़ाह डाले और उसकी आँखें न निकाल लूँ ,तो मेरा नाम ''नीलिमा ''नहीं। मैंने तो धीरेन्द्र की गलती पर, उसे भी नहीं छोड़ा वो तो इनका बाप था ,तब तुम तो क्या चीज हो ?जोश और क्रोध में नीलिमा समझ नहीं पाई कि वो क्या कह गयी ?


तभी राघव ने ,एकाएक बाहर की तरफ का दरवाजा खोला और बाहर आ गया ,फिर मिलेंगे ! कहकर वो चला गया। नीलिमा समझ नहीं पाई कि वो अचानक इस तरह बिना कुछ भी कहे ,कैसे बाहर निकल गया ?तुरंत ही काँप भी गयी, कहीं मेरे मुँह से कुछ गलत तो नहीं, निकल गया। नीलिमा दरवाजे की तरफ भागती है ,देखती है ,कहीं वो उसे दिखे किन्तु राघव का कहीं कुछ पता नहीं था। तब वो दरवाजा बंद कर अंदर आ गयी। ऊपर जाकर अपनी बेटियों के कमरे में जाकर देखा ,वे आराम से सो रही थीं।  और तब अपने कमरे में गयी।उन सम्पूर्ण घटनाओं को सोचकर हैरान हो रही थी ,जो अभी उसके साथ घटा , उसे ये सब अब एक सपने जैसा लग रहा था।कुछ देर इसी तरह बैठी रही ,वो समझ नहीं पा रही थी ,कि ज़िंदगी उससे क्या चाहती है ?कैसे लोग हैं ? कैसे इंसान हैं ? क्या मेरी ज़िंदगी यही लिखा है ?कोई भी ऐसा न मिलेगा ,जिस पर मैं विश्वास कर सकूँ।   

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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