मैं एक लेख़क होने के नाते ,कहानी की तलाश में था ,एक ऐसी कहानी जो किसी को भी पढ़ने पर मजबूर कर दे। पाठक , जानने का इच्छुक हो कि आगे क्या हुआ ? कहानी वास्तविक लगे ,किसी ऐसे चरित्र को उजागर करे ,जिसकी लोग उम्मीद भी न कर सके। जो भी कार्य हो ,किसी ऐसे के हाथों हों, जिसकी लोगों को उम्मीद भी न हो ,ज़िंदगी से जुड़ी कहानी। मैं इसी तरह की कहानी की तलाश में ,मैं अपने दोस्त ''प्रताप सिंह चौहान ''से मिला था जो एक जेल में जेलर है।मैंने सोचा -उसकी जेल में ऐसे अनेक कैदी आते होंगे ,जिनकी ज़िंदगी में ,कुछ न कुछ तो विशिष्ट हो सकता है ,शायद मेरी कहानी के लिए ही ,कुछ सुझाव मिल जाये।
वो एक रौबीले, लम्बे -ठाड़े , आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे ,अब उम्र के हिसाब से ,उनकी कलमों में कुछ बाल सफेदी भी झाँकने लगी हैं। हाँ ,मूछें मोटी और बिल्कुल काली हैं ,उन्हें समय -समय पर रंग लेते हैं ,जब मैं उनके पास गया , मुझे देखते ही ,वो बोले - आओ ! मेरे कहानीकार ! कैसे हो ?बहुत दिनों बाद अपने दोस्त को याद किया ? कहो कैसे याद किया ? अब क्या कुछ नया लिख रहे हो ?
अब क्या नया लिखूं ,इसीलिए तो परेशान हूँ ,कहानी की तलाश में भटक रहा हूँ।
मेरी बात सुनकर वो हंसा और बोला -तुम्हें भी कहानी तलाश करनी पड़ती है , भई , तुम तो कल्पनाओं और ख्वाबों की दुनिया के बादशाह हो , ख्वाबों में जीने वाले प्राणी हो ,कल्पना से कुछ भी कहानी गढ़ सकते हो ,तुम्हारा क्या है ?बैठे -बैठे लिखना ही तो है ,कहकर वो हंसा।
अच्छा ,हमारी मेहनत तुम्हें दिखती नहीं ,कितना सोचना पड़ता है ?किन्तु अबकि बार मैं अपनी कहानी में ,ऐसे किसी किरदार को उतारना चाहता हूँ ,जो हकीक़त में हो। उसके जीवन के कुछ पहलू जो उसे किसी आम इंसान से अलग करते हैं।
इस बीच उन्होंने अपने एक गार्ड को दो चाय लाने का आदेश दे डाला।
जब चाय मंगा ही रहे हो तो ,कंजूसी कैसी ?समोसे भी हो जाएँ ,मैंने कहा।
हाँ -हाँ ,वो अपने आप ले आयेगा ,वो समझदार है और कुछ...... कहकर बोले - तब तो तुम अपने इस दोस्त पर कहानी लिख सकते हो , अरे हमारी ज़िंदगी में भी कितने ,उतार -चढ़ाव आते हैं ? एक जेलर बनना कोई आसान कार्य नहीं ,न जाने कैसे -कैसे लोगों से ,नहीं कैसे -कैसे अपराधियों से मिलना पड़ता है ? उन्हें संभालना कोई आसान कार्य नहीं ,कहकर वो हंसा।
ये बात मैं समझता हूँ ,किसी दिन तुम्हारे ऊपर भी एक कहानी लिखूंगा किन्तु अभी मैं किसी ऐसे व्यक्तित्व की तलाश में हूँ ,जो मेरे दिल को छू जाये ,जो आम इंसान होकर भी ,आम इंसान न हो।
यानि तुम हमारे दोस्त होकर ही ,हमारे ऊपर कहानी नहीं लिखोगे ,कहकर वो हंसा , अरे ,इसमें आम क्या ?ख़ास क्या ?सभी की कहानी एक जैसी ही तो होती है , वही जीवन में ,प्रेम ,रोना -धोना और क्या ? चलो !हम भी प्रतीक्षा करेंगे ,जब तुम हम पर कहानी लिखोगे। ख़ैर !तुम ये बताओ ! मैं तुम्हारी क्या सेवा कर सकता हूँ ?
कहानी में सिर्फ ,रोना -धोना ही नहीं होता ,ख़ैर...... तुम क्या समझोगे ?तब जेलर के कंधे पर हाथ रखते हुए ,कहा - मुझे कोई एक ऐसा किरदार सुझाओ या बतलाओ ! जिसने तुम्हारे, इस जेलर को प्रभावित किया हो ,मेरा मतलब है ,कि कोई कैदी या तुम्हें कोई ऐसा व्यक्ति इस जीवन में मिला हो ,जिसके व्यक्तित्व से तुम प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।
कुछ सोचते हुए , हमारे जेलर साहब ने कुछ देर सोचा और बोले -''अमृता देवी '' तब उसने मुझे एक महिला का नाम सुझाया ,''अमृता देवी ''
''अमृता देवी '' भई ,ये कौन है ? क्या चीज है ? जिस पर तुम मुझे कहानी लिखने को कह रहे हो। अरे यार ! बेहद शानदार व्यक्तित्व की मालकिन है। ख़ानदानी रईसों के परिवार से है ,किन्तु उसका जीवन बहुत रहस्य्मयी ,रंगीन है।
तब वो तुम्हारी जेल में कैसे आ गयी ?
अब क्या बताएं ? उसने ज्यादा कुछ बताया नहीं ,किन्तु उसका जीवन अपने अंदर ,बहुत कुछ छिपाये है ,उसका जीवन तुम्हें अवश्य ही एक सुंदर ,रोमांचक या फिर प्रेमभरी दुनिया की सैर करा सकता है।
यहाँ वो किस जुर्म में आईं हैं ?
किसी की हत्या के जुर्म में यहाँ आई है ,जो आज भी एक रहस्य है किन्तु उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया। उनके विरुद्ध कोई सबूत भी नहीं था ,फिर भी उसने अपना जुर्म स्वीकार कर लेने के कारण ,उसी आधार पर उसे सजा भी दी गयी है।
वो कहाँ हैं ? क्या मैं उनसे मिल सकता हूँ ?
हमारी ही जेल में है ,तुम उनसे मिल सकते हो।
उसके विषय में कुछ जानकारी तो होगी।
गाजीपुर जिले के किसी गांव के जाने -माने ,चौधरियों में से एक थे , ''चौधरी मदन सिंह ''थे उनकी पत्नी ''शांति देवी ''बड़ी रौबदार महिला थीं। अब चौधरी साहब की पत्नी होने के नाते , वो स्वतः ही चौधराइन बन गयीं। अपने परिवार ,अपने घर के मान -सम्मान पर उन्हें फ़क्र था ,या यूँ भी कह सकते हैं ,उन्हें अपने चौधरी ख़ानदान पर बड़ा अहंकार था। ये उन्हीं दोनों की बेटी ,''अमृता देवी ''हैं ,जो बड़ी शानो -शौकत में पली -बढ़ी और पढ़ी भी थी। जमाना बदला ,लोगों की सोच बदली ,तब इनके पिता भी अपने बच्चों के भविष्य के लिए ,अपने गाँव की चौधराहट छोड़कर शहर में आ गए। शहर में आकर भी ,एक हवेली किराये पर ले ली। खेती -बाड़ी पहले पिता ही देखते थे किन्तु अब वे भी उम्र के साथ कमजोर पड़ने लगे। चौधरी साहब ने कभी काम नहीं किया ,देख -रेख भी पिता कर लेते थे। उन्हें कभी अपने खेतों और जमीन -जायदाद को देखने जाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। न ही कभी खर्चों की चिंता हुई ,सब गांव से आ जाता था। कभी -कभार अपनी जीप लेकर गांव में निकल पड़ते ,जैसे किसी ट्रिप पर जा रहे हों ?
दोस्तों -ये मेरी कहानी ,का पहला भाग है ,इसमें अपनी भर- भरकर ,समीक्षा और सुझाव दीजिये ,ताकि आगे बढ़ने में मुझे आसानी हो ,ये अध्याय केेसा लगा ,बताते चलिए और अपना प्रोत्साहन भी देते रहिये।