Shringar

प्रिय डायरी ,

                   अब तुझसे मैं  क्या बतलाऊँ ? बचपन में मुझे सजने -सँवरने का बहुत ही शौक था। ना -ना सोलह श्रृंगार नहीं ,तब तो बच्ची थी, न मैं , किन्तु बाल अच्छे से संवारना ,हाथों में मेंहंदी लगाने  का भी मुझे बहुत शौक था।सुंदर कपड़े पहनना , पिन से बालों में फूल लगाना , कभी मोतियों से अपने को सजा लेती ,कभी फूलों से ,जितना भी मुझे  अच्छा लगता ,मैं अपने को  संवारती। आज अपने 'श्रृंगार ' पर एक कविता तुम्हें बताती हूँ -

बचपन से ही मैं ,
सजती -सँवरती थी।
 मुझे अच्छा लगता था।
अपने लिए ,सजना -संवरना , 
मुझे अपने लिए ,सजने का शौक था।

ये कोई मेरी ,विवशता  नहीं ,
इसमें मेरी अपनी प्रसन्नता थी।  
मुझे अपने लिए ,सजना था।
मुझे अपने लिए जीना था। 

विवाह पश्चात ,'सौलह श्रृंगार ''कर ,
दूसरों की खुशियां ,जीने लगी। 
जीती थी मैं ,
अपनों के लिए। 
मैं आज भी ,सजती -संवरती हूँ ,
श्रृंगार करती हूँ ,
मेरे मन की सादगी ,
अपनों का सामीप्य ,
अपनों का प्रेम ,
उनकी ख़ुशी ही ,
अब मेरा 'श्रृंगार 'है। 
मेरी अपनी पहचान ,
मेरे अपनों का' प्यार ' है।    


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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