ऐ मेरी प्रिय डायरी !
अब तू ही तो मेरी सखा ,दोस्त और मित्र है ,तुझसे अब क्या बताऊँ ?बचपन में ,मैं बहुत ही चुलबुली थी, अपने में मस्त। न किसी प्रकार की फ़िक्र, न ही चिंता। जब व्यक्ति का दिल निर्मल होता है ,उसके चेहरे पर तो वैसे ही मुस्कुराहट रहती है। जब हम 'मटरगस्ती' करते हैं ,तो' हास्य 'स्वतः ही हमारे चेहरे पर उपस्थित रहता है। ऐसे ही कुछ चुहलबाज़ी की जाये, तो हंसी आ ही जाती है ,वैसे किसी को हंसाना भी ,आसान कार्य नहीं।
हास्य और व्यंग्य ,एक -दूसरे के पूरक हैं। जब हम किसी पर कटाक्ष अथवा व्यंग्य करते हैं ,तो उससे जो रस उत्प्नन होता है. वो ही ''हास्य ''रस है। ''हास्य ''कहीं से भी और कैसे भी उत्प्नन हो सकता है ?वही हमारे लिए अद्भुत पल हैं ,जब हम उस वाक्य को सुनकर अथवा देखकर ,खिलखिलाकर हँस देते हैं ,उस समय वो ही हमारे मस्तिष्क में घूम रह होता है। कई बार हम अपनी बात को गंभीर अवस्था में भी इस प्रकार कह जाते हैं कि सामने वाला उसके हाव -भाव देखकर अथवा उस बात का अर्थ समझने पर , अनायास ही ''हास्य ''भाव उत्प्नन हो जाता है।
कई बार तो ,-कुछ लोग गंभीर विषयों पर भी हँसी -हँसी में अपनी बात कह जाते हैं। व्यंग्य द्वारा भी समझाने का प्रयत्न करते हैं। कभी -कभी कोई जबरदस्ती हँसाने का प्रयास भी करता है, किन्तु हमें हँसी नहीं आती बल्कि उसकी क्रियाएँ, उसका अभिनय ,हमें फूहड़ लगने लगता है। तभी तो कह रही हूँ- कि'' किसी को हँसाना भी आसान कार्य नहीं।'' ये कार्य पहले समय में'' चारण या भाट ''राजदरबारों में करते थे और परिणामस्वरूप राजा से इनाम पाते थे। सर्कसों में, ये कार्य ''जोकर ''करते थे। चलचित्रों में भी कुछ विशेष व्यक्ति थे -जिनके आगमन पर ही ,लोगों की हँसी छूट जाती थी। जैसे -केष्टो मुख़र्जी ,जो शराबी होने का अभिनय बखूबी निभाते थे। जगदीप ,टुनटुन इत्यादि कलाकार। अब तो कलाकार सभी तरह का अभिनय करने का प्रयत्न करते हैं। उसमें चाहे हास्य -व्यंग्य ,वीर ,वात्स्लय कोई भी रस हो उसे बखूबी निभाने का प्रयत्न करते हैं।
आजकल दूरदर्शन पर भी ,अनेक कलाकार उभर कर आये हैं ,उनके अलग -अलग शो हैं। जैसे -''कॉमेडी सर्कस ''अथवा'' कपिल शर्मा'' का शो हो ,उसने तो हास्य की बुलंदियों को छुआ।हास्य रस के कवि भी किसी से पीछे नहीं हैं ,वे अपने व्यंग्य द्वारा लोगों को हँसाने के साथ -साथ ,,समाज की अच्छाई और बुराई पर भी ,लोगों का ध्यान आकर्षित करते। काका हाथरसी ,शैल चतुर्वेदी इत्यादि हास्य कवियों का इस क्षेत्र में विशेष योगदान रहा। अब तो फ़ेसबुक पर भी लोग अपने विचार व्यक्त करते हैं, जिन्हें पढ़कर स्वतः ही हंसी आ जाती है। मैं तुम्हें अभी कुछ दिन पहले का एक वाक्या सुनाती हूँ -एक व्यक्ति ने एक ''पोस्ट'' डाली -
''उसमें लिखा था -''बचपन में , मैं इतना सुंदर था कि मेरी अध्यापिका भी ,मुझे कक्षा में पीछे से बुलाकर कहती -यहां मेरे सामने आकर बैठो।'' कहने को तो इन शब्दों में कोई हास्य नहीं ,किन्तु उस परिस्थिति को सोचते हुए ,मुझे हंसी आ गयी और मैंने हंसकर टिप्पणी दी -ऐसा अध्यापिका सुंदर बच्चे को नहीं ,बुद्धू बच्चे को कहती थी। ''
मेरी डायरी तुझे पता है -पता नहीं कब और कहाँ से ''हास्य ''आ जाये -एक बार मैं किसी बात से नाराज थी ,भाई ने पूछा -क्या हुआ ,क्यों इतनी चुप हो ? किन्तु मेरा क्रोध मुझे बोलने की इजाजत नहीं दे रहा था। इसीलिए मैं चुपचाप अपना कार्य करती रही ,तभी हमारे एक रिश्तेदार ,जो हमारे घर में थे ,वो हमें देख रहे थे ,तभी बोले -भई ,अब तो ये चुप ही रहेगी ,ये काम में जो इतनी तल्लीन है ,ये जो भी कार्य करती है ,बड़ी मेहनत और लगन से करती है ,इस बीच कोई भी आ जाये लेकिन ये टस से मस नहीं होगी। उन्होंने ये बात इतनी सादगी और सरलता से कही- कि मुझे हँसी आ गयी। चल अब बंद करती हूँ ,कल मिलूँगी।

