Man ka shor

 ऐ ,मेरी डायरी ! मैं तो तुझसे बहुत पहले ही मिलना चाहती थी ,पर क्या करूं? तेरे मेरे मिलने का समय ही नहीं आया। जनवरी में तेरी ओर देखा ,कुछ समझ न पाई ,क्या लिखूं ,कैसे शुरुआत करूं ?फरवरी में सोचा -अब तो मुझे देरी हो गयी ''अब तेरी मेरी दोस्ती तो ,शायद अगले  बरस ही हो पायेगी। फिर सोचा -मेरी कहानी -''बदली का चाँद'' की शब्बो भी तो अपने पहले 'प्रेम -पत्र ''से अपनी डायरी का आरम्भ करती है ,तब मैं भी क्यों न ,चैत्र मास में ,जब नए वर्ष का 'शोर' है। नवरात्रि भी आरम्भ हैं ,क्यों न डायरी भी आरम्भ की जाये -''जब जागो तभी सवेरा ''

इस 'शोर' में , मन मेरा भी ,लेने लगा हिलोर ,
मन के कोलाहल ने ,किया आत्मविभोर। 
इस दुनिया के बेमतलब 'शोर 'से ,
 हो गया,मैं तो  बोर। 
बाहरी शोर को बंद करूं ,
कैसे करूं मैं बंद  ?

अंदर मचा है  शोर। 
भोर होते ही ,मचता है शोर ,[उम्र के पड़ाव ]
हुई दुपहरी ,फिर ठहर गया।
 तीन पहर फिर जगने लगा।
रात्रि में ,फिर बढ़ने लगा ,
मचने लगा ,मन का शोर। 
शब्दों की आतिशबाजी ,
चुहलबाजी के पटाखे ,
ज्वालामुखी सा फटता ,मन का क्षोभ ,
ये सब क्यों होता है ?
धोखा ,प्यार ,रिश्ते ,
क्यों अविश्वास पनपता है ?
क्यों बढ़ता है ?मन का  शोर  
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post