ऐ ,मेरी डायरी ! मैं तो तुझसे बहुत पहले ही मिलना चाहती थी ,पर क्या करूं? तेरे मेरे मिलने का समय ही नहीं आया। जनवरी में तेरी ओर देखा ,कुछ समझ न पाई ,क्या लिखूं ,कैसे शुरुआत करूं ?फरवरी में सोचा -अब तो मुझे देरी हो गयी ''अब तेरी मेरी दोस्ती तो ,शायद अगले बरस ही हो पायेगी। फिर सोचा -मेरी कहानी -''बदली का चाँद'' की शब्बो भी तो अपने पहले 'प्रेम -पत्र ''से अपनी डायरी का आरम्भ करती है ,तब मैं भी क्यों न ,चैत्र मास में ,जब नए वर्ष का 'शोर' है। नवरात्रि भी आरम्भ हैं ,क्यों न डायरी भी आरम्भ की जाये -''जब जागो तभी सवेरा ''
इस 'शोर' में , मन मेरा भी ,लेने लगा हिलोर ,
मन के कोलाहल ने ,किया आत्मविभोर।
इस दुनिया के बेमतलब 'शोर 'से ,
हो गया,मैं तो बोर।
बाहरी शोर को बंद करूं ,
अंदर मचा है शोर।
भोर होते ही ,मचता है शोर ,[उम्र के पड़ाव ]
हुई दुपहरी ,फिर ठहर गया।
तीन पहर फिर जगने लगा।
रात्रि में ,फिर बढ़ने लगा ,
मचने लगा ,मन का शोर।
शब्दों की आतिशबाजी ,
चुहलबाजी के पटाखे ,
ज्वालामुखी सा फटता ,मन का क्षोभ ,
ये सब क्यों होता है ?
धोखा ,प्यार ,रिश्ते ,
क्यों अविश्वास पनपता है ?
क्यों बढ़ता है ?मन का शोर
