April phool

पम्मी ,सोकर उठी और जोर -ज़ोर से चीखने लगी -मम्मी... मम्मी... देखो ये क्या हुआ? रसोईघर से मम्मी बड़ी तीव्रता  से बाहर आई और परेशान होते हुए बोलीं -कहाँ क्या हुआ ?हम कभी कुछ बहाना बनाते ,कभी कुछ और जब वो परेशान होकर, थक जातीं  तो हम लोग बड़े उत्साह से प्रफुल्लित होते हुए कहते -''अप्रैल फूल ''बनाया और प्रसन्न होते। हम किसी को भी ''अप्रैल फूल ''बनाते  और उस व्यक्ति के ''मूर्ख बन जाने पर ,जैसे कोई किला जीत लिया हो,प्रसन्न हो जाते। तस्तरी में ,आलू अथवा कोई भी गोल वस्तु रखकर ,उसे कपड़े से ढककर, पड़ोसन आंटी को दे आते , आंटीजी  ! मम्मी ने आपके लिए लड्डू भिजवाए हैं और जब वो कपड़ा हटाकर ,देखतीं तो वही नारा होता ''अप्रैल फूल ''बनाया। 


उन्हीं दिनों एक गाना  भी आता था -''अप्रैल फूल ''बनाया ,तो उनको गुस्सा आया। '' जब हम छोटे -छोटे थे तो अपने साथ रह रहे लोगों  को ''अप्रैल फूल ''बनाने के, ऐसे नए- नए उपाय  सोचते थे।ऐसे अनेक उदाहरण ,मैं गिनवा सकती हूँ किन्तु मेरा उद्देश्य आप लोगों का समय बर्बाद करना नहीं , न ही अपने उपाय बताना है ,वरन मेरा उद्देश्य है -''अप्रैल फूल ''हम क्यों मनाते हैं ? बड़े होने पर ये प्रश्न अक्सर मेरे मन में पनपने लगा किन्तु इसका उत्तर किसी के भी पास नहीं था। मैंने लगभग जिससे भी पूछा किसी को भी नहीं मालूम पहली अप्रैल को ही फूल क्यों मनाया जाता है ?फूल कोई गुलाब का या गोभी अथवा गेंदे  का फूल नहीं बल्कि ये तो ''मूर्खता दिवस ''के रूप में मनाया जाता है।

 लोगों को ''मूर्ख बनाने ''के लिए ये दिवस मनाया जाता है।''मूर्ख भी यूँ ही नहीं बनाया जाता वरन इसमें भी बहुत मेहनत लगती है और सोचना भी पड़ता है।  वैसे तो हर कोई ''मूर्ख'' बनाने का प्रयत्न करता है  आज ही के दिन यानि पहली अप्रैल को हिन्दुओं के रीति -रिवाज के अनुसार ,आज ही के दिन से हिन्दुओं के कलेंडर के हिसाब से, हिन्दुओं का  पावन' नववर्ष' इसी माह से आरम्भ होता है।इसी नववर्ष में ,चैत्र की नवरात्रि भी आरम्भ होती है क्योंकि इस  मौसम में परिवर्तन होने के कारण बीमारियों से बचने के लिए सात्विक और सादा भोजन आवश्यक हो जाता है और हमें प्रसन्न रहने की भी आवश्यकता है वो किसी भी तरह रहा जा सकता है। किसी को मूर्ख बनाकर अथवा बनकर या फिर किसी की मदद करके या फिर सुंदर कल्पनाओं द्वारा ,बात तो प्रसन्न  रहने से है।      

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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