किस बात का ? करूं मैं अभिमान !
ये जीवन ,दो दिन का ,
फिर चले जाना है।
रूप है, सुंदर -सलोना ,
बताओ !किस का करूं ?अभिमान !
ये यौवन या ताकत का ,
कुछ दिन बाद , बुढ़ापा आ जाना है।
या ,धन -सम्पत्ति का करूं ?अभिमान !
इसका तो ,काम ही ,मानव को छलना है।
उन रिश्तों का ,करूं अभिमान !
जिन्हें छोड़कर ,एक दिन जाना है।
मुझे है ,अभिमान !
जिस मिटटी में जन्म लिया ,
उस देश पर है ,अभिमान।
अपने कर्मों की खेती पर ,
जिससे मेरा ,निर्माण हुआ।
उस जीवन पर है ,अभिमान!
किसी का बुरा न सोचा ,न बुरा किया ,
उस आईने में ,अपने -आप पर है ,अभिमान !
मुझे ,आज भी अपने दोस्त -सहयोगी ,
पर है ,अभिमान !
जिन्होंने पल -पल साथ दिया।
अभिमान क्यों न करूँ ?उस देश पर ,
जिसमें जीवन जीना ,सीख़ लिया।
अभिमान है ,उन बच्चों पर ,
जो तत्पर हैं ,सरहद पर।
