Hei, abhimaan !

किस बात का ? करूं मैं  अभिमान !
ये जीवन ,दो दिन का ,
फिर चले जाना है। 
रूप है, सुंदर -सलोना ,
एक दिन ये भी ,ढल जाना है।
बताओ !किस का करूं ?अभिमान !
ये यौवन या ताकत का ,
कुछ दिन बाद , बुढ़ापा आ जाना है। 
या ,धन -सम्पत्ति का  करूं ?अभिमान ! 
इसका तो ,काम ही ,मानव को छलना है। 
उन रिश्तों का ,करूं अभिमान !
जिन्हें छोड़कर ,एक दिन जाना है। 
मुझे  है ,अभिमान !
जिस मिटटी में जन्म लिया ,
उस देश पर है ,अभिमान। 
अपने कर्मों की खेती पर ,
जिससे मेरा ,निर्माण हुआ।
उस जीवन पर है ,अभिमान!
किसी का बुरा न सोचा ,न बुरा किया ,
उस आईने में ,अपने -आप पर  है ,अभिमान !
मुझे ,आज भी अपने दोस्त -सहयोगी ,
पर है ,अभिमान !
जिन्होंने पल -पल साथ दिया। 
अभिमान क्यों न करूँ ?उस देश पर ,
जिसमें जीवन जीना ,सीख़ लिया। 
अभिमान है ,उन बच्चों पर ,
जो तत्पर हैं ,सरहद पर।  

 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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