तू कोई कमज़ोर नहीं ,न ही असहाय है।
क्या तू लाचार ,बेबस इंसान है ?
तू क्यों चाहता है ?आश्रय !
निड़र -निर्भीक बन, कहता है ,दिल !
क्यों तलाशता है ?आश्रय !
इंसान होकर इंसान से , मांगता है 'आश्रय !
लेना है ,तो उस प्रभु को पुकार !
उसकी महिमा है ,अपरम्पार !
उसकी मेहर ,से भरती हैं झोलियाँ हर बार।
बनाया जिसने सबको ,वो तुझे भी संभाल लेगा।
तुझे इतनी उम्मीद न होगी ,वो उतना देगा।
तुझे लेना नहीं ,देना सीखना होगा।
मांगना है तो, उस प्रभु ,ख़ुदा से मांगना होगा।
'आश्रय' ही नहीं ,तुझे उसके बंदों को प्रेम सीखाना होगा।
उठ खड़ा हो !लेना नहीं ,देना तू ''आश्रय ''
