Lena nhi dena tu aashry

 तू कोई कमज़ोर  नहीं ,न ही असहाय है। 

 क्या  तू लाचार ,बेबस इंसान है ?

 तू क्यों चाहता है ?आश्रय !

 निड़र -निर्भीक बन, कहता है ,दिल !

 क्यों तलाशता है ?आश्रय !

 इंसान होकर इंसान से , मांगता है 'आश्रय !  

 लेना है ,तो उस प्रभु को पुकार !

 उसकी महिमा है ,अपरम्पार !

उसकी मेहर ,से भरती हैं झोलियाँ हर बार। 


बनाया जिसने सबको ,वो तुझे भी संभाल लेगा। 

तुझे इतनी उम्मीद न होगी ,वो उतना देगा।

तुझे  लेना नहीं ,देना सीखना होगा। 

मांगना है तो, उस प्रभु ,ख़ुदा से मांगना होगा। 

'आश्रय' ही नहीं ,तुझे उसके बंदों को प्रेम सीखाना होगा।

उठ खड़ा हो !लेना नहीं ,देना तू ''आश्रय ''  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post