Vichlit man

मैंने इस परिवार के लिए क्या -क्या नहीं किया ?क्या -क्या नहीं सहा? किन्तु इन लोगों ने कभी मेरी कदर ही  नहीं की। बस इस घर की नौकरानी बनाकर रख दिया है। पता नहीं ,मेरे माँ -बाप ने भी ,न जाने क्या सोचकर ,मेरा विवाह इस व्यक्ति से करा दिया ? ये बच्चे हैं, कि इनका भी सुनने का नाम नहीं ,अपने बाप पर ही गए हैं। मेरी तो किसी को भी परवाह नहीं। तमन्ना के मन में ,न जाने इस तरह के कितने विचार मन में ,आ रहे थे ?और आते ही जा रहे थे। आये भी  क्यों न ?उसका' मन विचलित' जो  है ,'मन विचलित' होने के कारण ,उसे अपनी  सोच पर भी  काबू नहीं रहा। 


कितने मन से उसने रात को छोले भिगोये थे ,कि रोनित को सुबह उनके' दोपहर के खाने 'में बनाकर देगी। रोनित छोले -चावल बड़े मन से खाते हैं ,कल मन कुछ ज्यादा ही प्रसन्न था ,थोड़ा काम भी ज्यादा ही कर गयी, जिस कारण उसे थकावट हो गयी और सुबह उठने में देरी हो गयी। देर से उठने के कारण ,उसका मन ग्लानि से भर गया। फिर भी ,बड़ी  शीघ्रता से छोले उबलने के लिए ,गैस पर रखे ,रोनित को चाय बनाकर दी। स्वयं भी पी। पी क्या ?रसोईघर में खड़े -खड़े ही घूंट भरती रही। बच्चों को भी दूध दिया ,उन्हें नहाने भेजा। उनका नाश्ता भी बनाया। नंदिनी की चोटी भी गूँथी। सब कुछ इतनी शीघ्रता से किया, फिर भी समय तो अपनी गति से चलता रहा ,वो किसी के लिए नहीं  रुका , न ही तमन्ना के लिए रुका। जिस कारण , रोनित अपने दफ़्तर के लिए निकल गया। तमन्ना ने उसकी खुशामंद भी की-  बस दो मिनट रुक जाइये ,मैं अभी छोले तैयार कर ,आपका खाना पैक कर देती हूँ। वो दो मिनट रुका भी ,किन्तु दो मिनट कहने के लिए ही थे। उसे रसोई से बाहर आने में, पूरे  पांच मिनट लग गए। जब वो बाहर आई ,तब तक रोनित जा चुका था। 

उसका दिल बैठ गया। इतने मन से छोले भिगोये थे। कुछ तो उसे अपने -आप पर ही क्रोध आ रहा था। कैसे उसे उठने में देरी हो गयी ?आज तो वो बिना खाना लिए ही चले गये। यही सोच-सोचकर उसका मन विचलित हो गया और उसके मन में ,अनेक विचार आये और चले गए। तब उसे लगा -इसमें रोनित की भी तो गलती है। यदि वे पहले उठ गए थे, तो मुझे भी उठा सकते थे। मुझे क्यों सोने दिया ?मान लिया ,मुझे देरी हो भी गयी,  चाय तो स्वयं भी बनाकर पी सकते थे। बच्चों को तैयार करवाने में भी , मेरी सहायता तो कर ही  सकते थे। किन्तु नहीं ,ये तो साहब ठहरे !और मैं इनके घर की नौकरानी। उसका मन इस बात से दुःखी था,  आज रोनित खाना शायद बाहर ही खा लें और फिर उनका पेट ख़राब हो जायेगा। वो स्वयं ही नहीं समझ पा  रही थी -उसे क्रोध अपने -आप पर है ,या रोनित  बिना खाना लिए गए अथवा रोनित ने उसकी कोई सहायता नहीं की। तब भी, उसके मन में अज़ीब सी बेचैनी है किसी भी कार्य में मन नहीं लग रहा। इसका कारण उसका ''विचलित मन ''है जिस कारण उसके विचार भी ,एकमत नहीं रह गए। 

ये समस्या तमन्ना और रोनित की ही नहीं ,वरन ज्यादातर पति -पत्नी की अथवा परिवार में ,किसी भी व्यक्ति की हो सकती है। जब मन विचलित होगा -'तब उसका निर्णय भी सही नहीं होगा।' उसके मन में अच्छे -बुरे अनेक विचार आयेंगे और कई बार तो विरोधी विचार इस सीमा तक बढ़ जाते हैं कि व्यक्ति ग़लत कदम भी उठा लेता है।'' ऐसे में व्यक्ति को धैर्य और समझदारी से काम लेने की आवश्यकता है। कुछ व्यक्ति तो अपने -आप को संभाल लेते हैं , किन्तु कुछ व्यक्ति आवेश में कुछ का कुछ कर जाते हैं। ऐसे में सकारात्मक सोच तो ठहरती  ही नहीं जबकि ऐसे समय में उसकी अधिक आवश्यकता है। या फिर घर का कोई समझदार व्यक्ति समझाये, किन्तु आजकल घर में बड़े और समझदार व्यक्ति बचे ही कहाँ हैं ?पति -पत्नी और  एक -दो बच्चों  का  परिवार ही तो रह गए हैं। ख़ैर छोड़िये ,ये सब ! तमन्ना के घर चलते हैं -


तमन्ना जब अपने -आपसे और अपने विचारों से लड़ते -लड़ते थक गयी। तब वो नहाई ,नाश्ता किया और लेट गयी। मन धीरे -धीरे शांत होने लगा और वो कुछ देर के लिए सो गयी। जब उठी, तो अपने को ताज़ा महसूस कर रही थी। अब उसके दिल पर भी ,इतना बोझ नहीं था। उसने घड़ी में समय देखा -बच्चों के आने में अभी समय था ,उसने रसोई समेटी और छोले तैयार किये। बच्चे अब बड़े हो गए थे, तो स्वयं ही आ गए।  ,उसने बच्चों को खाना दिया और उनका गृहकार्य देखने लगी। घर के अन्य कार्य भी किये ,तब तक मनपूर्णतः  ,शांत हो चुका था।उसके मन में सकारात्मकता ने प्रवेश किया और सोचने लगी -सारी गलती तो मेरी थी ,मुझे ही अलार्म लगाकर सोना चाहिए था या फिर रोनित से कहकर सोती ,उन्होंने तो ये ही सोचा होगा -''दिन भर काम में लगी रहती है ,सो रही है तो ,सोने दो। ''जब छोले तैयार नहीं हो पा  रहे थे ,तो कुछ और ही बना देती किन्तु जल्दबाज़ी में उस समय दिमाग ने काम ही नहीं किया। वे भी तो सारा दिन अपने परिवार के लिए ,खटते रहते हैं। दफ्तर में भी ,बॉस की चार बातें सुनते होंगे। अकेला आदमी भी  क्या -क्या करेगा ? मैं  ही घर की ठीक से व्यवस्था नहीं कर पाई। न जाने मैंने भी न ,क्रोध में उन्हें क्या -क्या कह दिया ?उसके आने का समय देखकर ,तमन्ना सब भूलकर रोनित और अपने लिए चाय गैस पर चढ़ाती  है और यह सोचकर -पता नहीं ,पूरे दिन कुछ ठीक से खाया- पिया भी होगा कि नहीं।'' अब इस समय वो रोनित के संग , चाय के साथ नाश्ते के सुनहरे पल खोना नहीं चाहती थी इसीलिए उसने गृहकार्य के पश्चात ,बच्चों को भी बगीचे में खेलने भेज दिया ताकि सुबह की कमी अब पूरी हो सके। शांति से वो चाय पी ,सुकून महसूस कर सकें । 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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