मैं कुर्सी ,जिसे अंग्रेजों ने' चेयर 'नाम दिया है। जिस पर बैठकर आप लोग पढ़ते हैं ,खाना खाते हैं। कोई भी कार्य करके थक जाते हैं ,तो मुझे ही ढूँढ़ते हैं। क्या आप मेरे विषय में कुछ जानते हैं ?मेरा जन्म कब और कैसे हुआ ? नहीं न ,मेरे ऊपर आकर ,आराम से बैठ जाते हैं ,खाना खाते हैं ,पढ़ते हैं किन्तु कभी मेरे विषय में जानने का प्रयत्न नहीं किया। इसीलिए मैं ही आप लोगों को अपने विषय में बता देती हूँ -
मेरे विभिन्न रूप हैं ,विभिन्न आकार भी। छोटे बच्चों के लिए छोटी ,बड़े लोगों के लिए बड़ी। पहले मैं लकड़ी से बनती थी ,जैसे -शीशम ,सागौन ,आम इत्यादि।
पहले राजा -महाराजा के समय में ,मुझे सिंहासन के रूप में भी बनाते थे। मुझ पर ,अनेक राजा -महाराजाओ ने शासन किया। मेरी विभिन्न आकृतियां थीं ,कभी ऊंचाई में ,कभी चौड़ाई में ,कभी हीरे -माणिक लगाकर मेरा निर्माण किया जाता। उनमें मुगल काल के शासक़ ''शाहजहाँ का ''तख्ते ताउस ''प्रमुख था ,उस पर मयूर की सुंदर आकृतियां बनाई गयीं ,जिस कारण उसे ''मयूर सिंहासन ''भी कहते हैं। राजा ''विक्रमादित्य ''का सिंहासन भी अद्भुत और चमत्कारी था। मुझ कुर्सी की इतनी ही कहानी नहीं कि वो किसी आकृति की थी बल्कि मेरे बनने की सामग्री में भी विभिन्नता आई। मैं लकड़ी की ही नहीं वरन लोहे की ,प्लास्टिक की और स्टील की भी बनने लगी।
समय के साथ मेरे रूप में ही परिवर्तन नहीं हुआ वरन मुझे बनाई जाने वाली धातुओं में भी भिन्नता आई। मेरा आकार भी परिवर्तित होता रहा। आधुनिक युग में लोगों के पास इतना पैसा नहीं है ,जो मेरा व्यय वहन कर सकें। मैनें तो अपने समय के मूढ़ा -मूढ़ी ,पीढ़ा -पटरी सभी को पीछे छोड़ दिया। वो तो समय के साथ पुराने समय के [ओल्ड फ़ैशन ]हो गए। किन्तु मैं तो दिन -प्रतिदिन उन्नति करती रही ,मेरा तो नवीन रूपों में निर्माण बरकरार रहा। मैं अपने नवीन -नवीन रूप लेकर सभी को पीछे छोड़ती चली गयी। अब मैं ,अपने रूप -सौंदर्य की कितनी प्रशंसा करूं ?फिर आप लोग ही कहेंगे -बड़ी बड़बोली है।
मेरा महत्व यहीं समाप्त नहीं हो जाता कि मैं कैसी और किस धातु की बनी हूँ ?मेरा महत्व तो इससे कहीं अधिक है। मेरे लिए तो लोग अपनों से ही लड़ बैठते हैं। मुझे पाने के लिए तो जान की बाजी लगा देते हैं। मैं इसके एक नहीं अनंत उदाहरण दे सकती हूँ।प्राचीन समय के राजाओं से लेकर ,आजकल के नेता भी मुझे पाने की लालसा रखते हैं। मैं जितनी पुरानी हूँ ,उतनी ही मैंने दुनिया देखी है ,मैंने रिश्तों को बनते और टूटते देखा है। मेरे ही कारण ''सियासत ''कहो या ''राजनीति ''उर्दू हो या हिंदी किसी भी धर्म या भाषा में मेरा महत्व कम नहीं है वरन जिसके नीचे मैं होती हूँ ,उसका महत्व बढ़ जाता है। और फिर कुर्सी का नशा ,उसके सिर चढ़कर बोलता है। मेरे नशे में ,कभी -कभी व्यक्ति अपना -आपा खो बैठता है। कभी मेरे अहंकार में दूसरों को भी अपमानित करने से नहीं चूकता।
मेरे उसके नीचे से खिसकते ही ,उस व्यक्ति का महत्व भी समाप्त हो जाता है। मैं उस अहंकारी व्यक्ति को उसकी असली औकात भी दिखला देती हूँ ,फिर भी व्यक्ति मेरा मोह नहीं त्याग पाता। मेरे लिए अफ़गान भारत आये। मेरे कारण ही राज्यों में झगड़े होते ,मारकाट होती। जो जीत जाता वही मेरे ऊपर शान से बैठता। मेरे ही कारण' महाभारत 'का युद्ध भी हुआ। आज भी नेताओं में मेरे लिए द्व्न्द चलता रहता है किन्तु अब मैं उसकी तरफ़ जाती हूँ जिसे जनता चुनती है या जिसने अच्छे -अच्छे कर्म किये हों। तुम इतनी चिंता क्यों करते हो ?तुम्हारे घर में तो मैं हूँ ,उस पर बैठकर पढ़ो और अपने जीवन को लाभन्वित करो।