Tea time

पहले लोगों के घरों में गाय -भैंसे होती थी। सभी दूध पीते  थे किन्तु जब से ये चाय मुँह लगी है ,तब से सुबह -सुबह ,दिन की शुरुआत ज़्यादातर लोगों की ''एक कप गर्मागरम चाय ''से होती है। जिस तरह ,सुबह मुर्गा बांग देता था  और लोग उसकी आवाज से उठते थे ,अब मुर्गे तो नहीं दिखते किन्तु यह कार्य  चाय ने ले लिया है ,सुबह की चाय के साथ ही अब आँखें खुलती हैं। अंग्रेजों के समय में चाय पी जाती थी ,''अंग्रेज़ तो चले गए चाय छोड़ गए'' जिसका स्वाद लोगो की जबान से उतरा ही नहीं है। कहते हैं -चीन में इसका अविष्कार हुआ ,गर्म पानी में इसकी पत्ती गिर जाने पर, उस पानी का रंग भी बदला और महक भी आई ,जो पीने में ,बहुत ही स्वादिष्ट लगा। आसाम में इसकी खेती होती  है और सभी लोग इसका स्वाद ले लेकर पीते हैं। अंग्रेजों में ,चाय का पानी उबाला जाता था ,दूध अलग से होता था और चीनी स्वादानुसार किन्तु हम भारतीयों ने ,अपनी सुविधानुसार चाय में कुछ परिवर्तन  किये ,जैसे -अदरक वाली चाय ,इलायची वाली चाय ,मसाला चाय ,यहाँ तक की गुड़ की चाय भी बनाकर पीते हैं। जिसमें चाय पत्ती ,दूध ,चीनी सब एक साथ  ड़ालकर उबालते   हैं और सीधे कप में ,कप से सीधे पेट में। 


सुबह -सुबह चाय की दुकानें  खुल जाती  हैं ,जिस पर आने -जाने वाले लोग बिस्किट और रस के साथ ,चाय का रसास्वादन लेते हैं। चाय की चुस्कियों के साथ ही ,समाज पर ,राजनीति पर चर्चे होते हैं। बरसात में चाय के साथ पकौड़े ,सर्दियों में लिहाफ़ में बैठे -बैठे चाय की चुस्कियों का  आनंद ही कुछ और होता है। रात्रि का आलस्य इसी  से उतरता है। दिनभर कार्य करते रहने के पश्चात ,दिनभर की थकावट उतारने के लिए ,शाम की एक कप चाय तरोताज़ा कर जाती है। हालाँकि कुछ लोगों को ये हानि भी पहुंचाती है किन्तु इसका नशा या यूँ  कहें इसका स्वाद जबान पर इतना चढ़ा है, कि जब तक डॉक्टर मना न करे , मुई ! छूटती ही नहीं। गरीब हो या अमीर, गिलास में पियो या फिर कप में या फिर कुल्हड़ ही क्यों न हो ?इसका स्वाद तो पीने वाला ही बताता है ,जब उसे तृप्ति होती है। इसमे 'निकोटिन ''होता है किन्तु जब ये छनकर नाश्ते की टेबल पर पहुँचती है ,तब कुछ नहीं सूझता। 

कॉफी भी आई किन्तु कॉफी अपना वो स्थान नहीं बना पाई कुछ लोग तो दिखाने के लिए कॉफी पी भी लेते हैं किन्तु उनकी  असली तृप्ति  तो चाय से ही होती है ,इसमें भी ''कैफीन ''पाया जाता है जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। चाय -कॉफी का प्रयोग बालों में लगाने के लिए भी किया जाता है। सौंदर्य साधनों में भी इनका प्रयोग होता है। कितना भी लम्बा लेख लिख लो ?किन्तु दिमाग़ एक कप चाय पीने के पश्चात ही चालू होता है। चाय पीते -पीते ही लेख पढ़ा भी जाता है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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