Sadak ki aatmkatha

मेरी शुरुआत तो मुझे शायद स्मरण नहीं, किन्तु इतना अंदाजा  तो अवश्य है, कि जब से, लोगों ने पैदल अथवा किसी वाहन से चलना आरम्भ किया होगा ,तभी से मेरा निर्माण हो गया होगा। प्रारम्भ में, जब लोगों ने जीवन में इतनी उन्नति नहीं की थी ,लोग सीधे -सच्चे हुआ करते थे ,उनकी आवश्यकताएं भी इतनी अधिक नहीं थीं , जितना मिलता ,उसी में संतुष्ट हो जाते। तब मैं ''पगडंडी'' के रूप में जानी जाती ,जैसे -जैसे मानव ने विकास किया वैसे -वैसे ही मेरा भी विकास हुआ। मैंने भी मानव की सोच और उसकी उन्नति के आधार पर उन्नति की। पगडंडी तो थी हीं, किन्तु  ईंटों द्वारा  भी मुझे पक्का करने लगे क्योंकि पगडंडी कच्ची व संकरी  होती थीं ,जिस कारण  बरसात में ,कीचड़ और गड्ढे भी  हो जाते थे। तब लोगों को इससे परेशानी होती थी ,तब उन्होंने ईंटों की थोड़ी चौड़ी सड़कें  बनाईं ,जिन्हें ''खड़ंजा ''कहते थे। वो बीच में से थोड़ी ऊंचाई लिए होता था ताकि उसमें पानी न ठहरे। 

लोग थोड़ा और जागरूक हुए और शिक्षित भी ,सड़कें थोड़ी चौड़ी भी बनने लगीं। शहरों में तो तारकोल से निर्मित ,सड़कों का निर्माण होने  लगा। जी हाँ !मेरा निर्माण शहरों की आवश्यकताओं के अनुरूप होने लगा। जिस पर माल लाने ,ले जाने के लिए ट्रक ,बस और अन्य प्रकार के वाहन चलने लगे। जैसे -जैसे वाहनों का अविष्कार हुआ ,वैसे ही ,मेरे रूप में भी निखार आने लगा। अब आप ये मत समझना कि मैं गोरी -चिट्टी हो गयी ,नहीं ,वरन रूप तो काला ही रहा किन्तु उसकी गुणवत्ता बढ़ी और मुझे ज्यादा से ज्यादा मजबूत बनाने का प्रयत्न करते, समय के साथ -साथ ,वाहन भी बढ़े। इसीलिए मेरी चौड़ाई और मजबुताई पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा, क्योंकि मैं ही तो गाँव को शहरों से जोड़ने का माध्यम थी। मैं ही इठलाती -लहराती ,दूर कहीं रह -रहे रिश्तों की खबर भी दे आती क्योंकि डाकिया भी तो मेरे कारण ही पहुंच पाता। किन्तु मैंने कभी अभिमान नहीं किया।  किसी को  किसी से  भी मिलवाना मेरा ही काम था। था नहीं ,अब भी है ,किन्तु अब परिस्थितियां बहुत ही बदल चुकी हैं।क्या आप जानते हैं -मैंने अनेक  बादशाहों ,राजाओं को देखा ,उनके घोड़े मेरे ऊपर ही चलकर जाते थे ,हाथी पर सवारी निकलती थी। क्रूर राजा से लेकर दयालु राजा भी मेरे ऊपर चले हैं।साधु -संत भी मेरे ऊपर चलकर अपनी मंज़िल तक पहुंच पाते थे।  अंग्रेज ,मुग़ल सल्तनत के बादशाह अकबर को मैंने देखा। ग़रीबो के लिए तो मैं पहले से ही अपना आँचल फैला देती  हूँ। वे मेरी गोद में सारा दिन कार्य  करते हैं और रात्रि में ,आकाश की चादर ओढ़कर ,तारों की छाँव में सो जाते हैं।  
अब जब भी मुझे बनाया जाता है ,तब मैं देखती हूँ -मेरे निर्माण के लिए जो लोग भी चुने जाते हैं ,वो अपना लाभ पहले देखते हैं और अपने -अपने हिस्से भी बाँट लेते हैं ,जिस कारण ,मेरे निर्माण में अब वो मजबूती नहीं रही। रात -दिन मेरे ऊपर गाड़ी ,बसें ,ट्रक , मोटरसाइकिल इत्यादि न जाने कितने वाहन चलते हैं ? मैं पड़ी तो वहीं रहती हूँ ,किन्तु  कहते हैं -''ये सड़क चल रही है। ''इन सबका बोझा ढोते -ढोते ,मैं थक जाती हूँ ,एक तो अभियंता ,ठेकेदार और भी उससे जुड़े लोगो के कारण, मेरा तन कमजोर रहता है। दिन ही नहीं कुछ लोग तो रात में भी आते -जाते हैं ,मुझे एक पल भी चैन से नहीं रहने देते। इस कारण मुझे शीघ्र ही अपना तन छोड़ना पड़ता है। एक ही बारिश में जगह -जगह से मेरा तन छलनी होने लगता है ,जगह -जगह बड़े -बड़े गड्ढे भी हो जाते हैं। मैं चाहकर भी उन गड्ढों के कारण हुए हादसों ,दुर्घटनाओं को नहीं रोक पाती। 
एक तो इंसान ही अपनी ज़िंदगी के प्रति इतना लापरवाह होता जा रहा है ,न ही सुरक्षा के साधन अपनाना चाहता है ,कोई कहें भी तो ,वो ही बुरा हो जाता है। मेरी हालत तो  कुछ गांवों में तो ,आज भी जस की तस है। आज भी सत्तर साल पुरानी हालत है। ये  तो  जिन नेताओं की मेहरबानी जिस गांव में हो जाती है ,उस गांव की सड़क के भाग्य खुल जाते हैं। कुछ नेताओं  के वादों को पूर्ण होने की प्रतीक्षा करती रहती हूँ किन्तु जब वो वोट मांगने आते हैं ,तभी उनका चेहरा देख पाती  हूँ ,उसके पश्चात तो दर्शन भी सुलभ नहीं होते।

 मैं भी न क्या बातें ले बैठी ?शहर से गांव में चली गयी। शहर में ही मेरे ऊपर न जाने कितनी दुर्घटनाएं हो जाती हैं ?थोड़ी सी लापरवाही से ,किसी के घर का चिराग़ बुझ जाता है। तब मेरी आत्मा चीत्कार कर उठती है। काश !इसने'' हैलमेट ''पहना होता। किसी के परिवार के परिवार उजड़ जाते हैं। जब दो वाहन अपनी जल्दबाज़ी में टकरा जाते हैं। तब भी मेरा दिल दुखता है ,इतना ही नहीं ,तब और भी दिल दुखता है। जब लोग उस अनजान व्यक्ति को उठाते या उसकी मदद नहीं करते। अब तो उनकी दशा की तस्वीर लेने लगते हैं और मैं उसके रक्त से रंजित हुई ,बेबस सी ताकती रहती हूँ। न जाने दिन में कितने लोग, मेरे द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं ?न जाने कितने हादसों की मैं गवाह हूँ ?कोई लड़का किसी लड़की के प्यार में इठलाता हुआ मेरे ऊपर से जाता है , तो कभी कोई पीटता भी नजर आता  है। चोर हो या सिपाही मेरा उपयोग समान रूप से करते हैं। मैं तो अमीर  -गरीब सभी के लिए बनी हूँ ,भिखारी हो या व्यापारी ,या फिर अपाहिज़ ही क्यों न हो ?सभी के पदचाप मैं महसूस करती हूँ। एक मैं ही तो हूँ ,जो उन्हें लाती ,ले जाती हूँ किन्तु मेरा घ्यान किसी को नहीं रहता और मेरे ऊपर थूक देते हैं। अपनी जल्दबाज़ी और लापरवाही के चलते स्वयं तो ,हादसों का शिकार होते ही हैं ,मुझे गंदा कर देते हैं ,गाड़ी में बैठकर खाएंगे और कचरा मेरे ऊपर डाल देंगे ,जैसे सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी का ठेका ,मैंने ही ले रखा है। इनकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती और तो और मेरे किनारों पर बद्बूदार ढेरियाँ बनाकर चले जाते हैं। अब मैं कितना सहन करूँ ?

ऐसा नहीं कि दुनिया में भले लोग नहीं ,हैं.... उन लोगों का ,मैं दिल से धन्यवाद करती हूँ ,जिन्होंने  मेरे बनाने में ,आगे बढ़ाने में, मेरा सहयोग किया।  कुछ तो सड़क स्वयं ही बनाने लगे या फिर कंकड़ -पत्थर उठाकर मेरे बनने की शुरुआत करते। तब जाकर और लोगो को भी अक्ल आती तब वो भी जागरूक होते। अंत में तो यही कहूँगी ,मैंने  इंसानों के साथ -साथ उन्नति की ,उनकी सुविधाओं के अनुरूप अपने में भी परिवर्तन किये किन्तु इंसान नहीं बदला, वो फिर भी वही  स्वार्थी का स्वार्थी ही रहा ,उसने तो ''अपने लिए भी अपने -आपको नहीं बदला।'' मेरे ऊपर ही न जाने ,वो किस दौड़ में शामिल है ?ये तो मैं आज तक भी नहीं समझ पाई। मेरा काम तो बस लोगों को मिलाना और उनके दिल जोड़ना है, किन्तु मैं भी न जाने इन इंसानों के कारण क्या -क्या झेलती और देखती हूँ ? हर वस्तु भगवान ने इंसान के लिए ही बनाई है ,उसका उपयोग करो ,दुरूपयोग नहीं। अब चलती हूँ ,न जाने कितने मेरी प्रतीक्षा में होंगे ? जिन्हें अपने घर जाना है। अपनों से मिलना है ,किसी बीमार को राह दिखानी है  और न जाने कितने  लापरवाही के नतीज़े, उफ़....  
 
 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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