प्रेम ,प्यार ,मुहब्बत ,इश्क़ न जाने कितने नामों से इसे जाना जाता है ?प्यार ,प्रेमी से भी होता है ,इश्क़ माशूका से होता है ,और इश्क़, प्यार ,मुहब्बत उस भगवान या ख़ुदा से भी होता है। प्यार तो प्यार होता है इसका एहसास तो उसे ही होता है ,जिसने प्रेम किया हो, फिर चाहे -वो एक तरफा ही क्यों न हो ?प्रेम के बदले प्रेम की इच्छा तो हर कोई रखता है किन्तु उससे प्रेम करना ,बड़ा ही कठिन कार्य है ,जिसको बदले में प्रेम की उम्मीद ही नहीं ,ऐसा प्रेम निभाना बहुत ही कठिन है। इतना कठिन प्रेम तो कोई पागल ,बैरागी या बावरा ही कर सकता है। हमारे देश में कुछ भक्त भी ऐसे हुए हैं जिन्होंने पागलपन की हद तक प्रेम किया। जैसे -, भक्त' चैतन्य 'महाप्रभु , मीरा -राधा और सूरदास जी भी इसी श्रेणी में आते हैं ,जिनके आँखें नहीं थीं बिन आँखों के ही इन्होंने अपने प्रभु से प्रेम किया ,इन्होंने अपने प्रभु को ,अपने को समर्पित किया ,बदले में कोई इच्छा नहीं की। ये तो भक्ति वाला प्रेम है जिन्होंने अपने ईश्वर से किया।
दूसरा प्रेम जैसा राम और सीता के बीच था ,जिनके लिए राम ने समुन्द्र पर ही पुल बना डाला और समुन्द्र पार किया। लैला -मजनू ,शीरी -फरहाद का प्रेम भी ,प्रेम की मिसाल बने। किन्तु कुछ ऐसे लोग हैं ,जिन्होंने पागलपन की हद तक प्रेम किया, किन्तु उनका प्रेम उन्हें नहीं मिला वरन सांसारिक रीति -रिवाज़ के अनुसार उनकी आँखों के सामने ही, उनकी दुनिया लुट गयी और वे उफ़ !भी न कर सके किन्तु ऐसे प्रेमियों के नाम न ही इतिहास में मिलेंगे ,न ही उनके कहीं नाम होंगे ,न ही उनके साथ किसी को हमदर्दी होती है। कई बार तो अपने दिल का दर्द किसी से बाँट भी नहीं सकते ,दिल ही दिल में घुटकर रह जाते हैं। ऐसा प्रेम 'असीमित 'होता है ,जिसमें कोई बंधन ,सीमा या उम्मीद ही नहीं होती। कई बार किसी -किसी का प्रेम सीमायें लाँघ जाता है और उस सीमा को तोड़ते हुए कई हादसे भी हो जाते हैं तब ये '' एक तरफा प्रेम ''प्रेम नहीं 'हवस' या 'बदले की भावना' में बदल जाता है ,जो सामजिक दृष्टि से अत्यंत अशोभनीय है वरन प्रेम तो अनंत आकाश की तरह विस्तृत है ,असीमित है।