इतिहास ऐसे अनेक यादगार लम्हों से भरा पड़ा है ,इनमें सबसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक पल ,मुझे तब लगता है ,जब सभी देवता 'श्री 'हीन हो जाते हैं और तब सभी देवताओं को सुझाव दिया जाता है ,''समुन्द्र मंथन ''का। देवताओं और असुरों द्वारा समुन्द्र मंथन किया जाता है यानि अपने -अपने स्वार्थ के लिए ,देवता भी असुरों के साथ हो गए या यूँ कहिये -देवता -दानव एकजुट हो गए। उस मंथन में से अनेक उपहार निकले ,जैसे -ऐरावत , पारिजात , लक्ष्मी ,उच्चे श्रवा घोडा और अमृत के साथ भी कुल मिलाकर चौदह रत्न प्राप्त हुए। दोनों ही तरफ से कुछ छल भी हुए और अंत में ,विष की प्राप्ति हुई , जिसने सभी जीवों के प्राण संकट में डाल दिए ,देवता तथा दानव दोनों के लिए ही ,वो विष और उसकी गर्मी असहनीय थे। तब ऐसे समय में देवो के देव'' महादेव ''ने उन लोगों के संकट में आये प्राणों को बचाने के लिए उस विष को स्वयं ग्रहण करने का निर्णय लिया।
आभूषण , श्री ,ऐरावत जैसे अन्य उपहार तो सभी ने बाँट लिए किन्तु विष को कोई धारण नहीं करना चाहता था। तब भगवान ''शिव ''ने आगे बढ़कर उस '' कालकूट ''विष को ग्रहण किया। संसार का सम्पूर्ण ''विष ''उन्होंने अपने कंठ में धारण किया। ये कार्य तो ''महादेव ही कर सकते थे।जो हमें दर्शाता है -कि बुराइयों को कभी अपने पर हावी नहीं होने देना चाहिए और उनका सामना करना चाहिए। आज भी संसार में ''कालकूट '' विष तो नहीं ,किन्तु अन्य प्रकार के अनेक विष हैं जिन्हें कोई ग्रहण नहीं करना चाहता। सभी आरामदायक जो आसानी से मिल जाये ,'ऐसे उपहारों की खोज में ''श्री ''के पीछे दौड़ते नजर आते हैं। आज भी मंथन हो रहा है - ,लोगो की सोच ,उनके आचार -विचारों का ,उनके द्वारा किये गए आविष्कारों का ,जो कुछ संसार को उन्नति के शिखर पर ले जा सकती है और कुछ सर्वनाश की ओर। ये कलियुग का मंथन है- न जाने कब जाकर समाप्त होगा ?इसमें भी कुछ लोग देव प्रवृत्ति के हैं ,तो कुछ दानव के। लेकिन उस मंथन ने हमें सिखाया -उस समय भी देवताओं की जीत यानि सच्चाई की जीत और दानवों की हार हुई थी। आज भी यही प्रश्न उठता है कि जीत किसकी होगी ?तब एक ही उत्तर सामने आता है ,कलियुग है ,देर से ही सही -''जीत अवश्य ही सत्य की होगी। ''कलियुग में भी कोई न कोई 'शिव 'जैसा विष पीने वाला होगा।