रत्ना और चिराग़ मंदिर में विवाह करके ,अपने घर की तरफ रवाना होते हैं ,इससे पहले रिया चिराग से प्रेम करने का दम भरती है ,किन्तु चिराग़ रत्ना का हाथ पकड़कर उससे विवाह कर लेता है। और दोनों ख़ुशी -ख़ुशी अपने गंतव्य की ओर बढ़ते हैं। जब वो अपने शहर पहुंचते हैं तो देखते हैं ,-वहाँ तो सजावट हो रही थी ,उस स्थान को देखकर, रत्ना चिराग़ से पूछती है -तुम मुझे यहाँ कहाँ ले आये ?तुम्हारा घर किधर है ?तब चिराग़ उस सजावट होते घर की ओर इशारा करके कहता है -यही तो हमारा घर है। अब आगे -
दोनों हैरान परेशान हो जाते हैं , कि यहाँ क्या हो रहा है ? तब चिराग़ एक व्यक्ति से पूछता है -यहां क्या हो रहा है ?तब वो व्यक्ति बोला -देख नहीं रहे, सजावट हो रही है। हाँ -हाँ देख तो रहा हूँ, किन्तु किस लिए सजावट हो रही है ? चिराग ने मुस्कुराकर कहा। इस घर के बेटे का कार्यक्रम है और मुझे कुछ नहीं पता। पास ही खड़ी ,रत्ना उसकी बातें सुनकर हँसने लगी और बोली -तुम्हें तो कोई जानता भी नहीं ,और तुम कह रहे हो कि - ये मेरा घर है। क्या और भी कोई तुम्हारा भाई है ?चिराग बोला -मेरा और कोई भाई नहीं है।
तो फिर ये तो तुम्हारे लिए ही हो रही होगी ,क्या तुम्हारे मम्मी -पापा को पता तो नहीं चल गया ? कि तुम आ रहे हो। चिराग़ ने 'नहीं', में गर्दन हिलाई और बोला -मैंने तो कोई सूचना नहीं दी ,मैं अंदर जाकर देखता हूँ। कहकर वो अंदर जाने लगा, तभी रत्ना ने ,उसका हाथ पकड़ लिया और बोली -मुझे इस तरह अकेले छोड़कर जा रहे हो ,मैं यहाँ कब तक खड़ी रहूंगी ?
चिराग़ बोला -तुम कुछ देर यहां खड़ी रहो ,मैं अभी देखकर आता हूँ। तुम्हें साथ ले जाने से , कहीं बात न बिगड़ जाये कहकर चिराग़ चला गया।
उसके जाने के कुछ समय पश्चात ही कुछ लड़कियाँ ,रत्ना का हाथ पकड़कर ,खींचकर ले जाती हैं। रत्ना पूछती है -अरे , ये आप लोग क्या कर रही हैं और मुझे कहाँ ले जा रही हैं ?वे लड़कियाँ बिना कोई जबाब दिए ,बढ़ती जाती हैं और एक कमरे में छोड़कर चली जाती हैं। उस कमरे में पहले से ही एक महिला मौजूद थी ,बोली -आओ और तैयार हो जाओ !रत्ना बोली -मैं तो पहले से ही तैयार हूँ , नहीं.... पहले तुम और अच्छे से तैयार हो जाओ फिर तुम्हारे विवाह का कार्यक्रम होगा। इसीलिए तुम्हें अब यहाँ के कपड़े पहन ,यहां के हिसाब से तैयार होना होगा उस महिला ने लगभग उसे आदेश सा दिया। क्या..... आप जानती हैं ,मैं इस घर की बहु हूँ ? नहीं.... किन्तु तुम्हें तैयार होने के लिए भेजा है तो तुम्हीं होंगी। रत्ना ने उससे चिराग़ के विषय में पूछना चाहा किन्तु [ इससे पूछना व्यर्थ है ]ये सोचकर ,कुछ नहीं बोली। वो चुपचाप तैयार हो गयी ,तब उसे लेने वही लड़कियाँ आईं और उसे मंच पर ले गयीं। वहाँ चिराग़ पहले से ही तैयार बैठा था उसे देखते ही वो उठा और अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। वो उससे पूछना चाह रही थी -कि ये सब क्या हो रहा है ? किन्तु मौक़ा ही नहीं था। उन दोनों को मालाएँ दी गयीं और दोनों ने एक -दूसरे को माला पहनाई। इस तरह दोनों का एक बार फिर से विवाह हो गया। किन्तु रत्ना के मन में अब भी अनेक प्रश्न थे। दोनों ने अपने बड़ों का आशीर्वाद लिया ,तब मौक़ा मिलते ही रत्ना ने पूछ ही लिया कि ये सब कैसे हो गया ,क्या इन लोगों को मालूम था।
तब चिराग़ की मम्मी ने बताया -मुझे सुबह ही कोकिला का फ़ोन आया था ,तब हमें बहुत प्रसन्नता हुई कि चलो ,किसी ने तो हमारे बेटे का दिल जीता ,इसे तो कोई लड़की पसंद ही नहीं आ रही थी। रत्ना से बोलीं -तुम वास्तव में ही ,खूबसूरत हो। मैं बहुत खुश हूँ। रत्ना मुस्कुरा दी। सोच रही थी -चिराग ने तो मुझे व्यर्थ में ही डरा रखा था ,ये तो बहुत अच्छी हैं।
विवाह के नौ बरस पश्चात ,आज रत्ना और चिराग ,आज उन्हीं सड़कों पर पुनः आये हैं ,रत्ना डाक्टर तो नहीं बनी किन्तु नर्स अवश्य बन गयी और चिराग़ के साथ ही कार्य करती है। उनके दो बच्चे भी हैं।आज चिराग़ ने अपनी गाड़ी ,उन्हीं सड़कों पर दौड़ा दी ,जिन सड़कों से वो कभी चोरी -छिपे भागे थे। रत्ना को कई बार चिराग़ ने अपने मायके की याद में ,अपने आँसू छिपाते देखा है। अब इतने दिनों बाद कोई पहचान भी नहीं पायेगा ,इसी कारण वो अपने बच्चों के संग ,उनके मामा का घर दिखाने ले जा रहा है। अंदर घबराहट भी है ,पता नहीं ,वो लोग कैसा व्यवहार करेंगे ?
उसी शहर में पहुंचकर ,जब वो वहां रुका ,कई लोगों की नज़रें ,इन अनजान लोगों पर थीं। उनकी परवाह न करते हुए ,उसने गाड़ी एक स्थान पर खड़ी की। पहले से शहर बहुत बदल चुका था और आगे बढ़ा ,रत्ना ने अपने घर की तरफ देखा और उसकी आँखों में अश्रु आ गए। कोने में अब भी उसके मामा की दुकान खुली थी। घर के आगे पत्थर की सिल्लियों का स्थान पर सीमेंट के फर्श ने ले लिया था। बाकि सब उसी तरह था जैसा वो नौ बरस पहले छोड़कर गयी थी। लग रहा था -जैसे समय चक्र उसी स्थान पर आकर ठहर गया था। बच्चों ने अपने माता -पिता का मुँह देखा और बोले -हमें यहाँ क्यों लाये हैं ?किसी से मिलवाने चिराग बोला ,और उस और बढ़ चला। सबने वो सीमेंट का चबूतरा पार किया और अंदर दालान में पहुंचे। तभी एक लड़की बाहर आई और बोली -कौन है ?
वो लड़की लम्बी छहररे बदन की ,आँखों में शरारत गोल चेहरा ,कमर पर नीचे तक लटकती चोटी ,रत्ना उस लड़की को पहचानने का प्रयत्न करते हुए ,बोली -लता !जी..... कहिये आप मुझे कैसे जानती हैं ?लता ने पूछा। अरे !अपनी रत्ना दीदी को नहीं पहचानी। वो लगभग चीखते हुए उससे लिपट गयी ,दीदी आप...
उनकी चीखें और उत्साह सुनकर उसकी मम्मी भी बाहर आ गयी -चश्मे के शीशे पोंछते हुए ,बोलीं -कौन आया है ?रत्ना ने देखा -मम्मी ,अब कुछ थकी सी और बूढ़ी सी लगने लगी हैं। ग़रीबी ने भी ,इनसे जीभरकर बदला लिया या इन्हें परखा। उत्साह से बोली -मम्मी रत्ना दीदी आई हैं। उनके चेहरे पर कुछ पल के लिए मुस्कान आई और चली गयी। लता बोली -आओ दीदी !कहकर उसे उसी कमरे में ले गयी ,जहाँ चिराग़ और रत्ना पहली बार मिले थे। उस कमरे में अब चारपाई की जगह दिवान ने ले ली थी ,उस पर साफ -सुथरी चादर बिछी थी। तब तक अपनी दुकान बंद कर उसके मामा भी आ गए थे। सभी वही बैठ गए ,बच्चों ने पूछा -मम्मी ये लोग कौन हैं ?तब रत्ना ने उन्हें बताया -ये मेरे मम्मी -पापा का घर है और तुम्हारे मामा का। लता ने उन्हें सारा घर दिखाया ,अब छत पर भी दो कमरे पड़ गए थे ,जिनमें अब किरायेदार रहते हैं। लता भी किसी विद्यालय में नौकरी करती है।
तभी रत्ना ने सपना के लिए पूछा -तब लता चुप रही और चाय लेने चली गयी। तब मामा जी ने बताया -तुम लोगो के जाने के पश्चात, जब दीदी को पता चला -कि तुम भाग गयी हो और इस बात का मुझे मालूम था कि तुम चिराग़ से मिलती थीं। तब दीदी ने मेरी दुकान ही बंद करा दी और मेरा सारा सामान बाहर फेंक दिया। तुम्हारी नानी के जाने के बाद ,इन्होंने मेरी दुकान खोली और मेरा विवाह भी कराया। अब मैं भी इसी मौहल्ले के आखिरी कोने में रहता हूँ। और सपना कहाँ है ?रत्ना के प्रश्न पूछते ही ,लता भी चाय लेकर आ गयी और बोली -दीदी ,सबका भाग्य एक जैसा नहीं होता। पढ़ने के पश्चात ,उसने भी प्रेम विवाह किया वो भागी तो नहीं ,किन्तु विवाह करके आ गयी। सारे मौहल्ले में थू.... थू.... हुई। सब कह रहे थे बड़ी भाग गयी और छोटी ने विवाह कर लिया ,बिना बाप की बच्चियों का यही हाल होता है। इन बातों पर रत्ना ने घ्यान नहीं दिया और बोली -अब वो कहाँ है ?पास ही के शहर में रहती हैं किन्तु परेशान हैं । नौकरी करती है उसका पति उसकी कमाई लुटाता है कुछ नहीं करता। रत्ना को उसके विषय में सुनकर दुःख हुआ।
तब तक उसकी मम्मी भी आ चुकी थी ,उसके छोटे -छोटे प्यारे बच्चों को देखकर ,उनके सिर पर हाथ फेरा। रत्ना उनके पास आ गयी ,बोली -मम्मी मुझे माफ़ कर दो ,मैंने आपका दिल दुखाया। वो आंसूं पोंछते हुए बोलीं -माफ़ तो मैंने तुझे तभी कर दिया ,जब मैंने तुझे तेरे ख़ुशहाल परिवार के साथ देखा। माता -पिता तो इसीलिए परेशान होते हैं कि बेटी कहीं गलत राह न चुन ले ,ग़लत रिश्ते में न पड़ जाये। तू खुश है तो मुझे क्या दुःख होगा ?
मैं तो ऐसे दामाद का ''आभार ''मानती हूँ , जिसने मेरी बेटी को एक अच्छी ज़िंदगी दी ,उसे घर -परिवार दिया और माता -पिता को क्या चाहिए ? और समाज में सम्मान से जीने का अधिकार दिया। मैं तो चाहकर भी ,इसके लिए ऐसा लड़का नहीं ढूँढ़ पाती, कहकर उन्होंने चिराग़ के आगे हाथ जोड़े। चिराग़ बोला -आप ये क्या कर रही हैं ? मैं तो आपके बेटे जैसा हूँ। तब तक सारे शहर में ,ये बात भी फैल चुकी थी- कि रत्ना अपने परिवार के साथ गाड़ी में ,अपनी माँ से मिलने आई है और अब सब ठीक कर देगी। ऐसी होती हैं -''होनहार बेटियाँ '' सुनकर रत्ना के दिल पर जो बोझ था ,वो जैसे उतर गया। वास्तव में ही उसे बहुत कुछ करना है।