Pahchan

''अँखियों के झरोखों से '' मैंने देखा जो सामने ,तुम दूर नजर आये ,बड़ी दूर नजर आये।'' ये गाना  हमने बचपन में कई बार सुना है। उस समय अँखियों में ,सजन -साँवरियाँ  के सपने होते थे।उन सपनों को लेकर ही वो घर से विदा लेती। उनके सपने बड़े मासूम ,भोले और प्यारे होते ,किन्तु जब वो सपने हक़ीकत के धरातल पर आते तो ,जीवन की कड़वी सच्चाई के सामने चूर -चूर हो जाते।  लड़कियों और माता -पिता का एक ही सपना होता था। माता -पिता भी सोचते,- कि बेटी गृह कार्य सीखकर ,अपने घर चली जाये और सुख पूर्वक अपनी गृहस्थी संभाले। बेटी भी एक ऐसे राजकुमार के सपने देखती-'' कि घोड़े पर सवार  होकर ,एक राजकुमार आएगा और उसे अपनी सपनों की दुनिया में ले जायेगा।'' ज्यादातर लड़कियों को पढ़ाने का भी ,यही उद्देश्य होता कि कोई शिक्षित और सुयोग्य वर मिल जाये ,उससे अधिक कुछ नहीं।


 

समय बदला ,लोग बदले ,सोच बदली। अब लड़कियों के ''अँखियों  में सिर्फ़ ''साजन ''के सपने ही नहीं होते वरन वो उससे कहीं ऊपर उठ गयी हैं। अब उनकी शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ़ सुयोग्य वर की तलाश ही नहीं वरन अब उनकी आँखों में ,अपने को आगे बढ़ने ,अपने को शिक्षित करने के सपने पनपते हैं। अब वो अपनी सपनों की उड़ान को, गति देने के सपने देखती हैं। वो अब किसी भी पुरुष के पीछे चलने वाली नाजुक़ ,कोमल, कोमलांगनी नहीं वरन उसके कंधे से कंधा मिलाकर साथ चलने वाली सहचरी के स्वप्न देखती हैं। उन सपनों में उनका अपना विशिष्ट स्थान है ,उनकी अपनी एक अलग पहचान है। अब वो पति अथवा सजन के नाम से नहीं ,अपने काम के कारण जानी जाने लगी हैं। 

ऐसा नहीं, कि वो किसी सजन के या हमसफ़र के ख़्वाब नहीं देखतीं। देखती हैं -किन्तु ऐसे हमसफ़र के जो उसका सम्मान करे ,उसे मार -पीट या गाली -गलौच द्वारा ,अपनी कमाई का एहसान न जताये। अब माता -पिता भी बेटी को विवाह के लिऐ ही नहीं पढ़ाते वरन उनको क़ाबिल होने के लिए ,अपने पैरों पर खड़ा हो सक्षम बनने के लिए पढ़ाते हैं। आज की नारी स्वप्न देखती  है -अध्यापक ,पायलेट ,डॉक्टर ,अभियंता या फिर कोई विशेषज्ञ  बनने के स्वप्न देखती है। उसकी अँखियों में अब भी स्वप्न पलते हैं किन्तु अपनी ''पहचान'' बनाने के।न  की'' सपने साजन के ''


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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