Jigyasavash

मन में कुछ विचार जगे ,
सोचा ! ऐसा होता, तो क्या होता ?
कुछ वैसा होता ,तो क्या होता ?
कुछ इस तरह का होता ,

कुछ उस तरह का होता। 
इस परिस्थिति में ऐसा होता,
 तो उस परिस्थिति में केेसा होता ?
'' जिज्ञासावश !कुछ करके देखा ,
 कुछ  उधेड़ -बुन की।
 कुछ उलट -पलटकर देखा।
''जिज्ञासा'' बढ़ती गयी ,बढ़ती गयी..... 
रात -दिन ढले ,दिन -महीने चले ,
बीत गया बरस। 
कठोर परिश्रम किया ,किन्तु 
''जिज्ञासा' को तनिक न आया तरस।
प्यासे पंथी की तरह , बढ़ती गयी प्यास ,
इस मेरी खोज में ,मन होने लगा हताश।
''जिज्ञासावश ''कुछ नया किया। 
हो गया बेहतर काम ,
तब मन को मिला ,तनिक आराम।
''जिज्ञासावश ''कुछ दिन बाद ,
 फिर से ''जिज्ञासा ''जाग उठी। 
      फिर से हुआ आराम -हराम।   
   
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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