मन में कुछ विचार जगे ,
सोचा ! ऐसा होता, तो क्या होता ?
कुछ वैसा होता ,तो क्या होता ?
कुछ उस तरह का होता।
इस परिस्थिति में ऐसा होता,
तो उस परिस्थिति में केेसा होता ?
'' जिज्ञासावश !कुछ करके देखा ,
कुछ उधेड़ -बुन की।
कुछ उलट -पलटकर देखा।
''जिज्ञासा'' बढ़ती गयी ,बढ़ती गयी.....
रात -दिन ढले ,दिन -महीने चले ,
बीत गया बरस।
कठोर परिश्रम किया ,किन्तु
''जिज्ञासा' को तनिक न आया तरस।
प्यासे पंथी की तरह , बढ़ती गयी प्यास ,
इस मेरी खोज में ,मन होने लगा हताश।
''जिज्ञासावश ''कुछ नया किया।
हो गया बेहतर काम ,
तब मन को मिला ,तनिक आराम।
''जिज्ञासावश ''कुछ दिन बाद ,
फिर से ''जिज्ञासा ''जाग उठी।
फिर से हुआ आराम -हराम।
