Badli ka chand [part 1 ]

करतार अपनी शब्बो के संग छत पर बैठा था। चंदा की चांदनी में शब्बो का चेहरा चमक रहा था। शब्बो ने अपनी घनी रेशमी ,घुँघराली जुल्फें ,अपने हाथों में समेटी और उन्हें कसकर ,एक जूड़े का रूप दिया।  जिस कारण शब्बो का चेहरा और चमक उठा। एकाएक करतार के मुँह से निकला -''बदली से निकला है चाँद। '' शब्बो मुस्कुराते हुए ,उसके सीने  पर सिर रखकर बोली -तेरे लिए तो ये चाँद ,हमेशा से ही निकला रहेगा ,कुछ सोचते हुए  उसकी तरफ देखते हुए ,बोली -तू है ही ,इतना सोहणा। जिसका अर्थ उसके लिए करतार की मन की सुंदरता से था। 


करतार लेटा हुआ था ही ,शब्बो भी अपना चेहरा आसमान की तरफ कर ,करतार का तकिया सा बना ,सीधी लेट गयी। चंदा की चांदनी तो सभी पर पड़ रही होगी ,क्या हमारे लिए कोई विशिष्ट है ?तारे भी टिमटिमा रहे हैं ,इन तारों की भीड़ में ,शब्बो को ,कुछ वर्ष पहले की कुछ घटनाएँ स्मरण होती हुई ,दिखलाई देने लगी। जब वो तेरह बरस की थी। तभी पिंड के छोटे बड़े सभी की निगाहें उसे घूरती नज़र आतीं। कुछ निग़ाहें उसकी सुंदरता की प्रशंसा के लिए होतीं और कुछ उसे खा जाने वाली दृष्टि से देखतीं। 

उसकी छत से लगी ,सुरेंद्र के घर की छत थी ,उसे सभी' टोनी 'कहते थे। एक दिन उसकी छत की  दीवार से  कूदकर एक लड़का आया और बोला -ऐ जलपरी ! तूने क्या मेरी पतंग देखी ?शब्बो ने न में गर्दन हिलाई और बोली -तुझे क्या मैं ,जलपरी दिखती हूँ  ?मेरा भी  नाम है। ओहो ! तेरा भी नाम है, उसे घूरते हुए बोला ,क्या नाम है तेरा ?सारा मौहल्ला जानता है- कि मेरा नाम ''शब्बो ''यानि शबनम। तू क्या, इस मौहल्ले में नया  आया है ? तू क्या कहीं की राजकुमारी है ?जो मुझे तुझसे जान -पहचान करनी होगी या मैं  तुझे जानूँगा। मेरा भी नाम है उसने अपना कॉलर पकड़ते हुए ,इस तरीक़े से कहा ,शब्बो तो जैसे उस पर मुग्ध हो गयी और बोली -हम भी तो सुनें ,क्या नाम है ,तेरा ?बलविंदर नाम है मेरा और अपनी पतंग ढूंढते हुए ,छत के दूसरे कोने तक पहुंच गया। शब्बो भी थोड़े तेज़ स्वर में बोली -बल्लू... ओये बल्लू.... वो अपनी पतंग लेकर वापिस आकर बोला -ये बल्लू कौन है ?तुम.. शब्बो बदला लेने की तर्ज़ में बोली -जैसे मैं' जलपरी 'तुम बल्लू। 
बलविंदर  चिढ़ता हुआ बोला -ये नाम मुझे नहीं पसंद ,''जलपरी ''तो मैंने तुम्हारे सुंदर रेशमी भीगे बाल देखकर कहा ,तुम भीगे बालों में बिल्कुल ''जलपरी ''की तरह सुंदर लग रहीं थीं। अपनी प्रशंसा सुनकर शब्बो ,जो पहले उससे आक्रमण की तैयारी में जुटी थी , लजा गयी। बोली -तो तुम मेरी तारीफ़ कर रहे थे। होर नहीं तो क्या ?कहकर  उसी दीवार से सुरेंद्र की छत पर कूद गया। लो ,वो तो चला भी गया और अपने झगड़े में बताकर भी नहीं गया कि वो कौन है ?कहाँ से आया है ?कहकर उसने अपने माथे में हाथ मारा। तभी उसे स्मरण हुआ -नाम तो उसने मुझे अच्छा दिया है -''जलपरी ''सोचकर मन ही मन मुस्कुराने लगी। मैंने भी तो उसे एक नाम दिया -बल्लू... सोचकर मन ही मन मुस्कुराने लगी ,बल्लू नाम ऐसा लग रहा है ,जैसे -बिल्ला ,अब तो मैं उसे बल्लू ही कहूँगी ,चाहे वो कितना भी बुरा माने ,मैंने भी तो उसका दिया नाम ,अपना लिया।

शब्बो बलविंदर  के विषय में ही  सोचे जा रही थी - उसे चिढ़ाने में मज़ा आएगा। वैसे पता तो लगाना पड़ेगा कि सुंदर मुंडा कौन है ?कहाँ से आया है ?सोचते हुए ,वो छत से नीचे आ गयी। उसकी मम्मीजी ने देखा तो बोलीं -शब्बो तेरे बाल ,सूख गए ,पर तू मन ही मन क्यों मुस्कुरा रही है ?मम्मीजी !हमारा पड़ोसी सुरेंद्र जो है उसके घर कोई आया है कि ? क्यों ?तू क्यों पूछ रही है ?उन्होंने पूछा। शायद उन्हें भी ,नहीं पता था। शब्बो बोली -एक सोहणा मुंडा देखा ,पतंग लेने वास्ते आया था। अच्छा !कौन है वो सोहणा मुंडा ,जिसका मुझे नहीं पता। आज ही तेरी ये मम्मीजी पता कर लेंगी। तभी उनका ध्यान अपनी बेटी के शब्दों पर गया और उसकी तरफ तीख़ी नजरों से देखते हुए बोलीं -क्या वो मुंडा घणा सोहणा है ?तब तक तो शब्बो भी शरमाकर बोली -मेेनू कि पता ,तूसी देख ल्यौ। ओय !अभी तो तू ही बोली -सोहणा मुंडा। 

शब्बो की मम्मीजी भला पता न कर सकें कि मौहल्ले में कोई नया बंदा आया है और वो कौन है ?ये तो हो ही नहीं सकता।'' शाही पनीर ''की कटोरी लेकर ,जा पहुँची ,अपने पड़ोसी के घर। टोनी की मम्मी ,टोनी की मम्मी किथे हो ?वो अंदर से बाहर आकर बोलीं -हान्जी ,शब्बो की मम्मीजी कैसे आना हुआ ?अरे क्या बताऊँ ?घर के कामों से बाहर निकलना  ही नहीं होता ,आज'' शाही पनीर ''बनाया था तो सोचा -मेरे हाथ का ''शाही पनीर ''''टोनी ''को बहुत पसंद है ,सोचा -उसे दे ही आऊँ ,अब घर में कोई चीज़ बने और उसे मिल बांटकर न खाएं ,तो मज़ा ही नहीं आता। शब्बो की मम्मी वैसे तो सब्ज़ी हरमिंदर सिंह जी के लिए लाई थी क्योंकी ,उनके हाथ का बना ''शाही पनीर ''उन्हें बहुत पसंद है किन्तु एक बार हरमिंदर जी ने टोनी की मम्मी के आगे ,उनकी प्रशंसा में कुछ शब्द ही क्या बोल दिए ?उनके यहां तो ज्वालामुखी फूट पड़ा जिसका लावा आस -पड़ोस के लोगों ने भी महसूस किया। ''टोनी ''की मम्मी भी ऐं  वई थोड़े ही हैं ,समझती तो वो भी हैं कि ये सब्ज़ी किसके वास्ते आई है ?किन्तु बोली कुछ नहीं। 

टोनी यानि सुरेंद्र की मम्मी ने ''शाही पनीर ''की सब्ज़ी तो अंदर रसोईघर में रखने चली गयीं और वहीं चाय के लिए पानी ,चूल्हे पर  चढ़ाकर बोलीं -बहनजी ! चाह तो पि ही लोगी। शब्बो की मम्मी जिस उद्देश्य से उनके घर आईं थीं ,वो तो पूर्ण ही नहीं हुआ। बोलीं -वैसे तो अभी थोड़ी देर पहले चाय पी  थी पर चलो ,एक प्याली तुम्हारे साथ भी हो जाये। चाय पीते हुए ,पहले तो इधर -उधर देखने लगीं फिर बोलीं -क्या घर में कोई नहीं ?हाँ बहनजी ! टोनी तो अपनी क्लास लेने गया है और इसके डैडीजी तो शाम को ही आते हैं। ओ नई जी ,कल मैंने छत पे किसी मुंडे को देखा ,मैंने सोचा -शायद कोई रिश्तेदार आये हों। टोनी की मम्मी मन ही मन मुस्कुराई ,और सोचने लगी -अब आई ,असली मुद्दे पर। किसी के घर में कौन आया है ?इसे पता न चले तो पेट में दर्द होने लग जाता है। प्रत्यक्ष बोलीं -ओ....  बलविंदर !मेरे भाई का मुंडा ,वो तो यहाँ अपने बारहवीं के पेपर देने वास्ते आया है। तभी बाहर से एक बहुत सुंदर गोरा ,हट्टा -कट्टा लड़का प्रवेश करता है ,उसे तो पम्मीजी देखती  गईं। 


बलविंदर घर के अंदर प्रवेश करता है तो टोनी की मम्मी पम्मीजी से उसका परिचय कराती हैं। ये लो जी इसका नाम लिया और ये हाजिर ,बड़ी लम्बी उम्र है ,ये ही है मेरे भाई का बेटा बलविंदर। हाय !ये तो बड़ा सोहणा मुंडा है वो अभी  अपनी बात पूरी  भी नहीं कर  पाईं ,तभी टोनी की मम्मी अपने भतीजे की प्रशंसा सुनते हुए, ख़ुश होते हुए कहती हैं -हो भी क्यों न बुआ पर जो गया है। पम्मीजी ने मन ही मन ,जैसे ज़हर का घुंट पीया और बोली -इसकी मम्मी और पापा भी तो  सोहणे होंगे। टोनी की मम्मी भी कम थोड़े ही थी ,बोली -आखिर भइया किसका है ? पम्मी जिस काम के वास्ते आई वो  तो हो गया ,बोलीं  - अब चलती हूँ ,घर में शब्बो अकेली होगी ,कटोरी भिजवा दोगी या अभी ले  जाऊँ। अब यहाँ  से कौन देने जायेगा ?आप लेते जाइये ,अपनी कटोरी। 

घर आकर पम्मी ने अपने पति को ,उस मुंडे के बारे में बताया ,किन्ना सोहणा मुंडा है ?हमारी शब्बो के लिए ऐसा ही मुंडा होना चाहिए। दोनों की  जोड़ी क्या खूब लगेगी ?जैसे आसमान से उतरे फ़रिश्ते हों। तभी एकाएक बोली -क्या ऐसा हो सकता है ?ये  ही हमारी शब्बो का रिश्ता ले लें ,अभी तो वो बारहवीं ँ में है। कल को बड़ा होकर कुछ बन जाये तो उससे ही शब्बो के ब्याह की बात चला लेंगे। उसके पति ने कुछ कहा या नहीं किन्तु ये सभी बातें ,शब्बो ने अवश्य सुन लीं । उसे तो पहली  ही  नजर में ''बल्लू ''पसंद आ गया था। अब तो मम्मीजी को भी पसंद आ गया ,यही सोचकर वो मन ही मन प्रसन्न होने लगी। 





















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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