ऐ मेरी डायरी ,
तुझसे मैं ,अपने सभी ,दुःख -दर्द बांटती आई हूँ ,तुझे मेरे जीवन के हर लम्हें की जानकारी है। मेरे बचपन से लेकर बड़े होने तक ,तू ही मेरे साथ रही ,किन्तु तू तो जानती है -आज फिर मेरे अंदर दुःख की बदली छाई है। मेरे माता -पिता ,भाई और अन्य रिश्ते भी हैं ,किन्तु मैं फिर भी ,अपने ग़म तुझसे साझा कर रही हूँ। इस ज़िंदगी ने मुझे ग़म के सिवा दिया ही क्या है ?कारण मेरे माता -पिता ही हैं। अब तू कहेगी -कि माता -पिता !वो कैसे ?क्या वे तुझे प्यार नहीं करते ?क्या तुम लड़की हो या फिर भाई से प्रेम करते हैं? तुम भी न कितना सोचती हो ?हर जगह समस्या ये ही नहीं होती ,समस्या तो मेरे माता -पिता की आपसी समझदारी की है, जो एक -दूसरे को ठीक से समझ नहीं पा रहे। दोनों रात -दिन मेहनत करते हैं ,कमाते हैं किसके लिए ?अपने परिवार और बच्चों के लिए ,किन्तु न ही हमें समय दे पाते हैं ,न ही अपने आपको। और जब स्वयं ही प्रसन्न नहीं रहेंगे तब बच्चों से कैसे अच्छा व्यवहार कर सकते हैं ?
आज फिर दोनों में झगड़ा हुआ ,आज तो कोई' किरण 'आंटी उनके रिश्ते के बीच में आ गयी। भगवान ऐसी आंटियाँ बनाता ही क्यों है ?जो किसी का घर तोड़े। जो घर टूट गया तो भइया और मैं कहाँ जायेंगे ?और तुम भी क्या ?मेरे जीवन की तरह अधूरी रह जाओगी। सभी का जीवन अधूरा हो जायेगा। एक ख़ुशहाल परिवार ही न रहेगा तो डायरी कैसे पूरी हो सकती है ?
