Akhiri baar

 जीवन से हताश बेटी ने ,''आख़िरी बार ''सोच ,अपने पापा को फोन किया। 
 पापा.... मैं क्या करूं ?
             पैसा या दहेज ही ,जीवन की सम्पत्ति नहीं होते। जीवन में ,, कुछ और भी तो  चाहिए। वो है -विश्वास ,प्रेम ,सम्मान ,ये भी तो जीवन की धरोहर हैं  , ये सम्पत्ति तो मुझे मिली ही नहीं। मैं आज भी  तरसती  हूँ ,''अपने कहे जाने वाले, अपनों के ,अपनेपन के लिए '',मेरी नज़रें इन अज़नबियों की बस्ती में ,किसी काँधे को तलाशती हैं। उस हाथ को, थामे  जो प्रेम और  विश्वास से , थाम ले ,मुझे सहारा दे। कौन है ?जो मेरी उम्मीदों का सहारा बने ,मेरी ज़िंदगी को नई राह या दिशा दिखाये। 

पापा.... यहां तो धोखे और अविश्वास के सिवा कुछ भी नहीं ,आपकी बेटी हूँ ,आपसे नहीं कहूँगी ,तो मेरा इस जहाँ में कौन है ? माना ! कि मेरे उज्ज्वल भविष्य के लिए ,आप थोड़ा कठोर हुए ,इतना भी कठोर मत बनिये कि मेरी जान पर बन आये। इस जंगल में ,मैं अनेक हिंसक पशुओं के बीच घिरी हूँ ,जो मेरा शारीरिक ही नहीं ,मानसिक शोषण भी कर रहे हैं। आँसू देने वाले तो हैं ,पोंछने वाला कोई नहीं। जिसको मेरा सहारा बनाया, जिसे मेरा जीवन सौंपा ,वो तो स्वयं ही ,अँधेरी गलियों में भटका है। बताओ पापा !मैं क्या करूँ ,कहाँ जाऊँ ?कहीं ऐसा न हो ,मेरा ये फ़ोन ''आख़िरी बार ''हो।
 
बेटा.... तू तो मेरा गरूर है ,अपने पापा की ताकत है ,तू ! इस जीवन का मजबूत सिपाही है ,तू !इस जीवन से नज़रें न चुराना ,उससे नजरें मिलाकर ,आगे बढ़ना ,तुझे पढ़ाया -लिखाया ,मजबूत बनाने के लिए ,कमज़ोर बनने के लिए नहीं।  ''नासूर ''बने अंगों  की तरह ,उन रिश्तों को काट आगे बढ़ो !ये हमारा दिया जीवन तुझे मिटाना नहीं ,इसे जीना है। तुम कोई लाचार ,असहाय, बेबस ,बेचारी नहीं। इसे बर्बाद या फ़ना करने का तुझे अधिकार नहीं।अपनी शक्ति को पहचान , तुझे लड़ना और जीना है ,कमर कस, तुझे आगे बढ़ना है। ये न समझना ,पापा तेरे साथ नहीं। 

ये बाप -बेटी का  कोई आखिरी वार्तालाप नहीं ,उसके पश्चात किसी ने भी उसे टूटते -बिखरते  नहीं देखा। वो जीवन को जीत आगे बढ़ी और अपना जीवन जीने लगी। जीवन की तमाम बंदिशों को पार कर ,आगे बढ़ने लगी। 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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