Dadi ke kisse

'दादी 'मेरी प्यारी दादी ,उनका स्मरण होते ही चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ जाती है। रही बात ,उनके किस्सों की ,उनके उन किस्सों में ,उनका सम्पूर्ण चरित्र उजागर होता है। उनके एक किस्सा  हो तो ,गिनाऊँ।ऐसे अनन्त किस्से हैं जिन्होंने हमारे' बाल मन 'को भी प्रभावित किया।इससे  तो मैं उनकी छोटी -छोटी झलकियां ही प्रस्तुत करती हूँ -

दयालु -वो दयालु थीं ,किसी को भी कोई काम की या खाने -पीने की परेशानी होती तो उसके घर जाकर कह आतीं -आकर घर से तेल ,आटा ,गुड़ अथवा कोई भी आवश्यक सामान ले आना या फिर स्वयं भी दें  आतीं। कहतीं -कोई नहीं ,ये भी बच्चे अपने बच्चों जैसे ही हैं। किसी को काम की आवश्यकता होती तो उसे खेतों में या घर में कोई न कोई काम दिलवा ही देतीं। एक बार तो घर में कुछ भी काम नहीं था और उस महिला को काम की आवश्यकता थी बिना काम के वो भी मदद नहीं लेना चाहती थी ,तब दादी ने उससे आटा छनवाने का ही काम करवा लिया ताकि उसके घर में कुछ पैसे आ जाएँ काम होने के पश्चात ,पैसे ही नहीं वरन उसे खाना गुड़, छाछ भी दिया। 
धार्मिक -वो धार्मिक भी थीं ,वैसे तो वो कुछ ज्यादा पढ़ी -लिखी नहीं थीं किन्तु सुबह उठकर नहाना ,सूर्यदेव को अर्ध्य देना ये उनके नियम में शामिल था। एकादशी ,पूर्णिमा इत्यादि व्रत पूरी श्रद्धा और विश्वास से करती थीं घर में किसी भी तरह की परेशानी में ,पंडितजी के घर के चक्कर लगातीं ,उनके बताये ,नियमों का पालन करतीं। 
मिलनसार -सम्पूर्ण गांव ही जैसे उनका अपना था ,पूरे गांव में ,किसी की ताई ,किसी की चाची तो किसी की दादी थीं। वे सभी उनके अपने थे। कहीं किसी के चोट लग जाये ,किसी  परिवार में  कोई कार्यक्रम हो और उसमें दादी न हो, हो ही नहीं सकता। सभी उनका सम्मान करते। या यूँ भी कह सकते हैं ,वो छोटा सा गांव ही उनकी दुनिया थी। एक -दूसरे के सुख -दुःख ,सबके होते थे। नये ज़माने की बहुएं भी आतीं और वो उनके मुताबिक़ कार्य न करतीं तो उन्हें भी डपट देतीं। उन्हें संस्कार और बड़ों के मान -सम्मान पर लंबा भाषण पिला देतीं ,कोई उनका बुरा भी नहीं मानता था।
खुशमिज़ाज -ऐसा नहीं कि वे हमेशा ,सख़्त ही रहतीं ,वे हमें मनोरंजक कहानियाँ भी सुनाती थीं और साथ में अभिनय करके ,हमें भी हंसाती और स्वयं भी बच्ची बन जातीं। उस समय दूरदर्शन अथवा फोन नहीं थे। कार्यक्रमों में ,उस कार्यक्रम की मुख्य नायिका होतीं। कभी किसी की चलने का अभिनय करके अथवा किसी की बोली की नकल करके ,सबको हंसा हंसाकर लोटपोट कर देतीं। एक बार हमारे गांव में कुछ अंग्रेज़ लोग आये और दादी उन्हें गांव दिखाने में सबसे आगे , जब उन्होंने उपले के लिए पूछा- कि ये क्या है ?अंग्रेजी तो उन्हें आती नहीं थी ,बोली -ये टो उपला है ,उन्हीं की तरह बोलने का प्रयत्न करते हुए बोलीं और सब लोग हँस रहे थे। जब उन्होंने' बिटौड़े' के लिए पूछा -उससे पहले ही मुझसे उन्होंने घर को अंग्रेजी में क्या कहते हैं ?पूछ लिया और उनसे बोलीं -ये टो उपला हाउस है। थोड़ी शरारती चुलबुली सी भी थीं। 
सख़्त मुखिया -घर के नियम -कायदों का सख़्ती से पालन करवाती थीं। 
मैं तो दो बरस ही उनके समीप रही ,उन दो वर्षों में ,मैंने उनके चरित्र और स्वभाव को जितना भी जाना ,मेरे लिए आज भी स्मरणीय है ,उनका प्रेम ,वात्स्ल्य भूलाये नहीं भूलता।  
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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