Biti baaten

 जीवन में कुछ बातें ऐसी होती है ,कुछ स्मरण  रह जाती हैं ,कुछ हम ,भूल जाते हैं ,कुछ बातों को भूलना ही बेहतर है, किन्तु समय परिस्थिति के अनुसार कई बार ''बीती बातें ''हमारे समक्ष आ ही  जाती हैं और उसके साथ ही स्मृतियाँ भी। 

नेहा !कल मेरे बॉस आ रहे हैं ,कुछ खाने का प्रबंध कर लेना। कौन हैं ? नेहा ने पूछा। अभी कुछ दिनों पहले आये हैं ,हमारी ही बिरादरी के हैं , मैंने सोचा -इस बहाने उनसे जान -पहचान भी बढ़ जाएगी और उनके लिए ,जो ये शहर नया  है ,थोड़ा एक -दूसरे का सहयोग  जायेगा , अपनी सुनयना की नौकरी लगने पर कहने लगे - पारस दावत कब दे रहे हो ?मैंने भी कह दिया- कल ही सर !पारस ने बताया।  नेहा बोली -कल क्यों कहा ,आज क्यों नहीं ?यही सवाल मेरे बॉस ने भी पूछा था। तब तुमने क्या जबाब दिया ?नेहा ने उत्सुकता वश पूछा। तब पारस शरारत भरे लहज़े में बोला -तुम्हारी अनुमति भी तो लेनी थी ,तुम्हारी आज्ञा के बिना मैं कैसे निर्णय ले सकता था ?कहकर मुस्कुराया। नेहा ने  भी मुस्कुराकर 'हाँ' में अपनी गर्दन हिलायी। अगले दिन ,वो पारस से बोली -तुम्हारे बॉस को खाने में क्या पसंद है ?पारस बोला -पता नहीं ,अभी तुम अपनी समझ से ही कुछ अच्छा सा बना लो। बस, बॉस तुम्हारे बनाये खाने को खाये तो अंगुलियाँ चाटता रह जाये। पता नहीं क्या सोचकर ?नेहा ने आज बहुत दिनों पश्चात खाने में ''मलाई चाप '', पनीर दो प्याज़ा और चावल के साथ पीली वाली  दाल बनाई। जब नेहा ने पूरी तैयारी कर ली ,तब पारस एक बार रसोईघर में घुसा और खाने की खुशबु से ही उसके मुँह में पानी आ गया किन्तु पीली वाली दाल देखकर मुँह बनाया ,बोला -चावल के साथ छोले या महारानी दाल भी तो बना सकती थीं फिर ये पीली दाल क्यों ?


तभी उसे दरवाजे पर किसी के आने की आहट हुई और वो बिना कुछ सुने 'उल्टे पांव 'दरवाज़ा खोलने चला गया। नेहा ने भी अपने वस्त्र ठीक किये और सलाद सजाने लगी। उसने अंदाजा लगाया -अवश्य ही ,पारस का बॉस होगा। तब तक सुनयना भी आ चुकी थी और वो उन लोगों से बातें कर रही थी। कुछ समय पश्चात पुष्पा  ने खाना लगा दिया। तब पारस आया और नेहा को अपने बॉस से मिलाने के लिए ले गया। नेहा ने जैसे ही बॉस को देखा ,वो चौंक गयी , तुरंत ही अपने को संयत कर हाथ जोड़कर नमस्कार किया। बॉस के साथ उसकी पत्नी और उसकी पांच -छह बरस की बेटी थी। वे लोग खाना खाने लगे ,तभी बॉस [सुदीप ]की पत्नी बोली -अरे वाह !आज का सम्पूर्ण खाना तो, सुदीप की पसंद का ही बना है। पारस से बोली -तुम्हें कैसे पता चला ?कि सुदीप को 'मलाई चाप 'पीली दाल के साथ चावल और ''पनीर दो प्याज़ा ''पसंद है। पारस रौब मारते हुए बोला -अब हमें अपने बॉस की पसंद और नापसंद की भी जानकारी न होगी। मन ही मन उसे भी आश्चर्य हो रहा था कि ऐसा संयोग कैसे हुआ ?फिर सोचा -जो भी हुआ ,अच्छा ही हुआ। हंसी -ख़ुशी सब निपट गया और वो लोग अपने घर भी चले गए। 

सब कुछ इतने अच्छे से हुआ ,पारस  बहुत ही प्रसन्न था , नेहा से बोला -यार !आज तो तुमने कमाल ही कर दिया ,वैसे तुम्हें मेरे बॉस की पसंद का कैसे पता चला ?नेहा बोली -मुझे क्या पता था ?कि तुम्हारा बॉस कौन है ?वो तो तुम कह रहे थे -कि मेरा बॉस उस क्षेत्र का है ,तभी उस क्षेत्र से जुडी ,कोई बात मुझे स्मरण हो आई और मेरा दिल किया- कि ये सब बनाऊं। तुम तो जानते ही हो , मैंने आज तक तुमसे कुछ नहीं छिपाया।

 तुम्हें पता तो है ,तुमसे पहले भी ,मेरा एक जगह रिश्ता हुआ था जो टूट गया। हाँ ,ये तो मैं जानता हूँ ,पारस  बोला -अब ये बात कहाँ से आ गयी ?नेहा बोली -मैं भी वे ''बीती बातें ''भुला चुकी थी ,किन्तु उस क्षेत्र और आज तुम्हारे बॉस को देखकर ,मैं अपने कई वर्ष पीछे चली गयी। क्या.... पारस  चौंकते हुए बोला। हाँ ,जिससे मेरा रिश्ता टूटा था ,वो तुम्हारा बॉस 'सुदीप' ही था। पारस पुनः चौंकते हुए बोला - सुदीप... फिर मुस्कुराते हुए बोला -ठीक ही किया ,उससे रिश्ता नहीं टूटता तो तुम मुझे कैसे मिलतीं ?और मैं इतनी प्यारी बीवी से वंचित रह जाता। पारस की बातें सुनकर नेहा भी मुस्कुरा दी और बोली -तुम्हारी यही अदा तो अच्छी लगती है ,तुम ज़िंदगी की गंभीर बातों को भी  कितनी आसानी से लेते हो ?जीवन को कठिन नहीं बनने देते तभी तो मैं, कोई भी बात तुमसे छुपाती नहीं। कोई और होता -तो शक़ भी कर सकता था ,ज़िंदगी को बेवजह दुष्कर बना देता और मुझे उससे बातें छुपानी पड़तीं। किन्तु तुम अलग हो ,इसीलिए सब कुछ तुम्हारे सामने खुली किताब की तरह है। 

पारस बोला -तो अब तुम ये बातें ,उठाकर क्यों ,अपना मन ख़राब कर रही हो ?जो बीत  गया सो बीत गया। हमारे साथ तो जो भी हुआ अच्छा ही हुआ। नेहा बोली -क्या तुम ये जानने का प्रयत्न नहीं करोगे कि रिश्ता टूटने का क्या कारण था ? नहीं... ऐसी कोई आवश्यकता नहीं ,पारस ने सपाट जबाब दिया। किन्तु मैं बताना चाहती हूँ ,नेहा जैसे - पारस से बताकर अपने मन का बोझ  हल्का करना चाहती थी। तुम मानोगी तो नहीं। बताओ  !पारस ने अपनी आँखें बंद करके कहा। मैं, अपनी दीदी की ससुराल गयी थी ,तभी मैंने सुदीप को देखा ,मैं भी अपना अध्य्यन कार्य पूर्ण कर रही थी और ये भी अपनी तैयारियों में जुटा था। मेरा और मेरे माता -पिता का  सपना था- शिक्षा ग्रहण करो और समय से विवाह कर अपने घर जाकर नौकरी करो ,अपना घर सम्भालो ,जो भी इच्छा हो करो। मैं अपनी रिसर्च के पश्चात विवाह करने के लिए ,तैयार थी। सुदीप बहुत बड़ा आदमी बनना चाहता था ,इसके लिए सब चीजें बाद में ,पहले अपने ''करियर को बुलंदियों ''पर पहुंचाना था। हम एक -दूसरे को मन ही मन पसंद करने लगे ,ऊपर से बहन के परिवार ने भी बढ़ावा दिया। दोनों की जोड़ी बहुत ही अच्छी लगेगी। नेहा को लगा -शायद पारस सो गया ,उसने बीच में ही ,उसे टोककर पूछा -तुम सुन रहे हो न ?पारस ने आँखें बंद किये ही ,हाँ में गर्दन हिलाते हुए हूँ... कहा। 


नेहा आश्वस्त होकर बोली -मैं तो अपने परिवार के सपने सजाने लगी ,मैंने एक -दो बार सुदीप से पूछ भी लिया -क्या तुम्हें मैं पसंद हूँ ?उसने कहा -कोई मूर्ख ही होगा ,जो तुम्हें देखकर इंकार करें। एक माह वहां रहकर ,मैं अपने घर चली आई, किन्तु हम फोन पर एक -दूसरे से बातें करते कभी पढ़ाई की ,कभी नौकरी की। जब मेरी' रिसर्च 'पूर्ण हुई ,तब मैंने मम्मी को बताया और उन्होंने पापा को, वे भी प्रसन्न हुए और उन्होंने दीदी से इस विषय में सुदीप से बात करने के लिए कहा। सुदीप ने जबाब दिया -नेहा मुझे पसंद तो है ,किन्तु पहले मैं, कुछ और उन्नति कर लूँ तभी विवाह के विषय में सोचूंगा। दीदी ने समझाया - तुम दोनों की सगाई करा देते हैं ,दोनों पढ़े -लिखे हो ,उन्नति भी धीरे -धीरे हो जायेगी। विवाह के पश्चात भी ,उन्नति करते रहना, किन्तु उस समय सुदीप को कुछ ज्यादा पगार नहीं मिलती  थी  और वो ऐसे ही तरक्क़ी के लिए तत्पर रहता। बात पक्की होने के पश्चात ,मैंने भी उसे समझाया -कि हम दोनों एक -दूसरे की कमज़ोरी नहीं ताकत बनेंगे। मैं भी नौकरी कर लूँगी ,लेकिन सुमित तो सब कुछ पाकर ही आगे बढ़ना चाहता था। मैं उसके इंतजार में छब्बीस की हो गयी और वो तीस से ऊपर। माता -पिता निराश होकर ,और जगह लड़का ढूंढने लगे। 

मैं भी निराश हो चुकी थी ,और तुम मिले और हमारा विवाह हो गया। तब से ये ,अब मिला है ,सारे बाल सफ़ेद हो गए ,चेहरे पर भी झुर्रियां आ गयीं ,आज हमारी स्वयं की बेटी उन्नति  की सीढ़ियाँ चढ़ रही है और बेटा भी आगे बढ़ रहा है ,कुछ वर्ष पश्चात ,हम अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जायेंगे। किन्तु आज सुदीप की पांच -छह बरस की बच्ची को देखकर ,मुझे उसके निर्णय पर दुःख हुआ ,जिस उम्र में हमें अपनी जिम्मेदारियों से मुक़्त होना चाहिए उस उम्र में ,और ज़िम्मेदारियों का बोझ लिए बैठा  है। कब ये लड़की बड़ी होगी ,कब इसका विवाह होगा ?हर चीज़ असंतुलित हो रही है। जिस उम्र में बच्चों का भविष्य संवारना चाहिए, उस उम्र में ,अपने लिए लड़की देखने चलते हैं। दादा बनने की उम्र में पिता बनकर विद्यालय जाते हैं ,तब बच्चे हँसते हैं तो हमारे बच्चे भी, हीनभावना का शिकार हो जाते हैं। नेहा की बातें सुनकर ,पारस ने आँखें खोलकर पूछा -तुम कहना क्या चाहती हो ?मैं तो सोच रहा था -तुम अपने प्रेम की कहानी सुनाओगी ,-हम यहां -वहां घूमे फिर मैं सुदीप के बच्चे की माँ बनने वाली थी और उसने मुझे प्यार में धोखा दिया किन्तु तुमने तो पता नहीं ,कहानी को किस मोड़ पर ले जाकर छोड़ा ?न ही इसमें प्रेम  है ,न ही विरह ,बल्कि तुम तो सीख दे रही हो ,कहकर पारस जोर -जोर से हंसने लगा। नेहा को लगा -शायद पारस  उसकी बातें नहीं समझ पाया या फिर उसकी हंसी उडा  रहा है ,उसने अपने नज़दीक पड़ा तकिया उठाया और पारस को मारने लगी ,वो तेजी से उठा और पलंग के पीछे छिपने का अभिनय करने लगा। आज अपनी ''बीती बातों ''से मन की ग्रंथि खोलकर नेहा भी खुलकर हँस रही थी। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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