फूलों से अमृत ले ,
इस पुष्प से ,उस पुष्प तक ,
अठखेली करती ,
कभी उड़ जाती ,
कभी चूमती।
कुछ फूलों का रंग चुराती ,
कभी उनके रंगों में छिप जाती।
बिन पुष्पों के, वो भी न दिख पाती।
छिप जाती ,मेरे सूने आंगन में ,
बाढ़ आई, पुष्पों की ,
उड़ती स्नेह दिखलाती ,
मैं भी ,उसके संग तितली बन जाती।
मेरे , घर आंगन में ,
इंद्रधनुष ,अपने नए रंग ले आता ,
पुष्पों ओ तितली के रंगों में नजर आता।
यूँ ही नहीं ,इतने रंग पाए ,
इसने भी अपने को मारा।
कोकून बनी ,जब जीवन तारा।
जीवन सुंदर पाना है ,
जीते जी ,मन को त्यागो ,
भेदभाव को त्याग ,शुद्ध विचार पालो !